महिलाओं के सम्मान की रक्षा कैसे हो?

Afeias
08 Feb 2017
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Date:08-02-17

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 31 दिसम्बर 2016 को बेंगलरू की सड़कें शायद औरतों के लिए सबसे भयावह बन गई थीं। नए साल की पूर्व रात्रि को वहाँ महिलाओं की शालीनता को जिस तरह से भंग किया गया, उससे पूरा देश विचलित हो गया था।

इस प्रकार की घटनाएं समय-समय पर विदेशों में भी घटित होती रही हैं। 2005 में मिस्त्र के तहरीर स्क्वायर  में और 2015 में जर्मनी के कोलोन में भी ऐसी दुर्घटनाएं हुई हैं। लेकिन भारत जैसे देश में; जहाँ स्त्री को देवी का अवतार समझा जाता है तथा माँ, बहन एवं बेटी को इज्जत की नज़रों से देखा जाता है, वहाँ ऐसा होना लज्जाजनक एवं असहनीय है।दरअसल, अभी तक पुरूष नैतिक दायित्व के उस बोझ से परे एक ऐसी जिंदगी जीते आए हैं, जहाँ उनकी दूषित कामोउत्तेजना  के लिए कभी उन्होंने सदाचार दिखाने की कोई जरूरत ही नहीं समझी। ख़ास तौर पर भारत में घटने वाली ऐसी घटनाओं के प्रति किशोरों से लेकर पुरूषों तक की संवेदना जोर नहीं मारती। ऐसा लगता है, जैसे ये उन्हें अपने दादा-परदादा से विरासत में मिला है कि वे नारी को सम्मान या उपभोग करने वाली वस्तु से अधिक कुछ न समझें।

हमारी करोड़ों की जनसंख्या में लगभग 58.6 करोड़ की जनसंख्या के प्रति अब राजनीतिक शक्तियों और आम जनता को जागृत होना होगा और नारी के सम्मान के लिए कमर कसनी होगी।

  • सबसे पहले तो हमारे परंपरागत पितृसत्तात्मक पारिवारिक ढांचे और रूढ़िवादी सोच से अलग, पुरूषों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार करनी होगी, जो महिलाओं के प्रति संवेदनशील हो; एक ऐसी पीढ़ी; जो अपनी आगामी पीढ़ी को भी अपनी यह संवेदनशीलता विरासत में दे सके। यहाँ एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि यह संवेदनशीलता केवल पारिवारिक स्तर तक सीमित न रहकर समाजव्यापी हो।
  • यह बदलाव ऐसा हो, जो वैश्वीकरण से उपजी स्त्री-देह-व्यापार और उनके अश्लील चित्रण जैसी बुराइयों के खिलाफ लड़ाई न सही, लेकिन एक माहौल तैयार करने में सक्षम हो।
    • सरकार को चाहिए कि वह विद्यालयीन स्तर से ऐसी शिक्षा की शुरूआत करे, जिससे लिंग-भेद एवं यौन-हिंसा के प्रति घृणा की भावना पैदा की जा सके। लिंग आधारित संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए यह बेहतर हथियार हो सकता है।
    • हमारे देश में महिलाओं के प्रति हिंसा के मामलों की संख्या को देखते हुए कड़े कानून बनाए जाने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। इस क्षेत्र में अपराध और हिंसा की भयावहता को देखते हुए कानून की पकड़ बहुत प्रभावी नहीं लगती। हांलाकि 2012 के दिल्ली गैंग रेप के मामले के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 354 में अनेक बदलाव किए गए हैं। इसकी मदद से ऐसे अपराधियों पर कड़ाई से शिकंजा कसा जा सका है।
    • अत्यधिक यौन-हिंसा वाले मामलों के लिए फास्ट ट्रैक न्यायालय एवं कठोरतम दंड का प्रावधान कुछ मददगार हो सकते हैं।
    • इन सबसे ऊपर, यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं के प्रति पुलिस और आम जनता के दृष्टिकोण को बदलने की सबसे ज्यादा जरूरत है। अगर भारत को सचमुच अपनी महिलाओं की सुरक्षा की चिंता है और उनके प्रति आदर-सम्मान की भावना है, तो सबसे पहले ऐसे अपराधों के बाद पुलिस की कार्यवाही पर कड़ी नज़र रखी जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जा सकता, तो अभी की तरह ही महिलाओं से संबंधित बहुत से अपराध न तो दर्ज हो पाएंगे या उनका स्वरूप बदलता रहेगा। पुरूषों की मनमानी यूं ही चलती रहेगी।

बदलते सामाजिक परिवेश में महिलाओं की शालीनता को भंग करने की हिम्मत करने वाली मानसिकता का खत्म होना बहुत जरूरी है। यौन-उत्पीड़न से बचने के लिए किसी महिला पर ‘शालीन‘ होने की शर्त को क्यों लादा गया है ? क्या किसी भी महिला को अपने कपड़ों, अपनी स्थिति, स्थान या अपने रवैये से परे सुरक्षित और मर्यादित रहने का हक नहीं है ? इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर  समझ में आता है कि जब तक हमारे बच्चे और युवा पुरूष अपनी पूर्व पीढ़ी से महिलाओं के सम्मान और मर्यादा की रक्षा करना नहीं सीखेंगे, तब तक हमारा देश समानतावादी नहीं कहा जा सकेगा।

हिंदू में प्रकाशित नारायण लक्ष्मण के लेख पर आधारित।

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