महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर को कैसे बढ़ाया जाए

Afeias
03 Nov 2023
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भारत के कार्यबल में महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम है। इस वर्ष की अर्थशास्त्र की नोबेल विजेता क्लाउडिया गोल्डिन ने श्रम बाजार में महिला कार्यबल के इतिहास पर काम किया है। यद्यपि उनका शोध अमेरिका पर केंद्रित है, तथापि भारत के लिए इसके स्पष्ट और महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं।

कुछ बिंदु –

  • महिलाओं के काम की स्थिति के मामले में 2020 के दशक में भारत लगभग वैसा ही है, जैसा सौ साल पहले अमेरिका हुआ करता था। आज भारत में महिला कार्यबल का प्रतिशत लगभग 25 है, जो कि 1920 के अमेरिका में हुआ करता था।
  • यह भी लगातार गिर रहा है। इसका आंशिक कारण महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता से पुरूषों के मन में पनपती असुरक्षा की भावना है।
  • महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर कितनी कम है, इस पर विवाद भी है, क्योंकि अधिकांश महिलाएं खेतों और पारिवारिक व्यवसायों में काम करती हैं। इसकी कोई गिनती नहीं होती है। भारत की विवाहित महिलाओं के लिए घर पर बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के साथ काम का इतना बोझ होता है कि वे बाहर निकलकर काम करने का समय ही नहीं निकाल पाती हैं।
  • अमेरिका से अलग, भारत की अविवाहित युवतियों का भी श्रम बल भागीदारी का प्रतिशत बहुत कम है। इसका कारण लड़कियों को बाहर भेजने में असुरक्षा की भावना मुख्य कारण है।

उम्मीद की किरण –

  • भारत को एक महान आर्थिक शक्ति बनने के लिए महिलाओं की श्रम बल भागीदारी बढ़ानी ही होगी। ‘शोध के अनुसार अच्छी खबर यह है कि अंततः अमेरिका में भी मानदंड बदले। यह जरूर है कि ये मानदंड आर्थिक महामंदी और विश्वयुद्ध के कारण बदले थे। यदि भारत में इन्हें राजनीतिक और सामाजिक नीतियों में परिवर्तन से बदला जा सके, तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है।
  • क्लाउडिया के शोध की दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रम शक्ति में महिलाओं की प्रतिभा का पूरा लाभ उठाने के लिए हमें आर्थिक और सामाजिक संरचनाओं में बदलाव की आवश्यकता है। इस हेतु कार्यस्थल में और उससे बाहर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को कम करना होगा।
  • सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली शिशु और बुजुर्ग देखभाल की उपलब्धता बढ़ानी होगी।

भारत में ये मुद्दे अभी तक नीति-निर्माण का भाग नहीं बन पाए हैं। यूरोपीय देशों की तुलना में अमेरिका भी इस क्षेत्र में अभी पीछे है। भारत को इस दिशा में सफल देशों के मॉडल को अपनाना चाहिए। तभी नए भारत का निर्माण किया जा सकेगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित एस्थर डफलो और अभिजीत बनर्जी के लेख पर आधारित। 11 अक्टूबर, 2023