आर्थिक प्रगति के लिए महिलाओं की भागीदारी आवश्यक है

Afeias
25 Jan 2018
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Date:25-01-18

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  • विश्व की 188 अर्थव्यवस्थाओं में महिला श्रम शक्ति के मामले में भारत का 170वां स्थान है। भारत में कुल 27 प्रतिशत महिलाएं कामकाजी हैं। एक शोध के अनुसार इसके और भी घटने की संभावना है।
  • शिक्षा के बढ़ते स्तर एवं प्रजनन में कमी के बावजूद आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में कमी एक चिंता का विषय है।
    • भारत की आर्थिक प्रगति में महिलाओं का योगदान बहुत कम हो जाता है। दूसरे, कामकाजी महिलाओं की स्थिति अपने घरों में बेहतर होती है। इसके चलते वे अपने और बच्चों के विकास से जुड़े सही निर्णय नहीं ले पाती हैं।
  • भारतीय महिलाओं के अधिक संख्या में कामकाजी न होने का एक बहुत बड़ा कारण कार्यालय स्थल में उचित वातावरण का अभाव है।
    • रूढ़िवादी सोच के चलते महिलाओं के घर पर रहने को पुरूषों के अच्छे आर्थिक स्तर से जोड़कर देखा जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार ऐसी सोच रखने वालों की संख्या 40 प्रतिशत से ज्यादा है। वहीं अमेरिका में 1972 में भी ऐसा सोचने वाले लोग 30 प्रतिशत से भी कम थे। भारतीय महिलाएं भी अधिकतर ऐसा ही सोचती हैं।
  • 2011 के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में घर में रहने वाली एक तिहाई से भी ज्यादा महिलाओं ने बाहर जाकर काम करने की इच्छा जताई थी। साक्ष्यों से यह सिद्ध भी होता है कि बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं में एक नागरिक एवं राजनैतिक चेतना विकसित होती है, जो समुदायों, समाज और अंततः देश के लिए लाभदायक होती है।
  • महिलाओं के कामकाजी होने से जुड़ी रूढ़िवादी सोच से निपटने के लिए सरकार को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे विचार रखने वाले लोगों को रोकना चाहिए। द आर्गनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक को-आपरेशन एण्ड डेवलपमेंट (OECD) के देशों का सुझाव है कि चाइल्ड केयर सब्सिडी दिए जाने से महिला के कामकाजी होने की संभावना बढ़ जाती है। परन्तु भारत में कामकाजी महिलाओं को सुविधा देने के नाम पर क्रेच या डेकेयर या तो बंद पड़े हैं या फिर वहाँ उपलब्ध ही नहीं हैं, जहाँ इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
  • पैतृक अवकाश दिए जाने का भी महिलाओं के कामकाजी होने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हाल ही में भारत की मातृत्व अवकाश नीति अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी उतर रही है। परन्तु अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली असंख्य महिलाएं इस नीति के दायरे में नहीं आतीं। अतः इन्हें रोजगार देने से बचा जाता है।

हमारे पितृसत्तात्मक समाज में विकसित देशों द्वारा अपनाई गई महिलाओं के प्रति नीति कारगर नहीं हो सकती। अतः भारतीय महिलाओं के समय के उपयोग और उससे जुड़े आर्थिक लाभ को जगजाहिर किया जाना चाहिए। उनके मार्ग में आने वाली अड़चनों को समझकर उनके अनुसार नीतियां बनाई जानी चाहिए। तभी उन्हें कामकाजी होने के समान अवसर प्राप्त हो सकेंगे।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित पायल हथी के लेख पर आधारित।

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