उत्तर पूर्वी राज्यों के माध्यम से ‘एक्ट ईस्ट’

Afeias
24 Jan 2018
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Date:24-01-18

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1990 के दशक के शुरूआती वर्षों में आरंभ हुए भारत-आसियान संबंधों ने अनेक मील के पत्थर पार किए हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को मुक्त अर्थव्यवस्था बनाए जाने के दौर से गुजरे और जिन्हें परवर्ती सरकारों ने उत्साह से कार्यान्वित किया। आसियान के साथ भारत की मजबूती के तीन स्तंभ हैं-वाणिज्य, संस्कृति और संपर्क (कनेक्टिविटी)। वर्तमान सरकार भी सत्ता संभालने के साथ ही ‘लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट’ नीति को बहुत महत्व दे रही है।

सरकार की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को सफल बनाने के लिए दो स्तरों पर जमकर मोर्चा संभालने की आवश्यकता है। (1) सुरक्षा, (2) कनेक्टिविटी। इन दो पहलुओं पर काम करके उत्तरपूर्वी भारत के द्वारा दक्षिण एशियाई देशों से संपर्क एवं व्यापार को बहु-स्तरीय बनाया जा सकता है।

जहाँ तक कनेक्टिविटी की बात है, इसे तीन स्तरों पर बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। (1) जमीनी स्तर पर, (2) डिजीटल और (3) क्षेत्र को भावना के स्तर पर देश के अन्य भागों से जोड़ना।

  • जमीनी स्तर पर संपर्क बढ़ाने के लिए सड़क और रेलमार्ग महती भूमिका निभाते हैं। व्यापार-व्यवसाय में उन्नति के लिए हवाई मार्ग में विस्तार किए जाने की आवश्यकता है। इससे निवेश में वृद्धि होगी। साथ ही म्यांमार और उसके आगे के क्षेत्रों तक व्यापार बढ़ाने के लिए एक स्वस्थ पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित किया जा सकेगा।

                    भारत, बांग्लादेश और म्यांमार के बीच सड़क, रेल एवं जलमार्ग परिवहन की सुविधाओं पर योजनाएं लाई गई हैं। बांग्लादेश और भारत के बीच 10 वर्ष पूर्व इससे जुड़ा समझौत हुआ था। उस समय निवेशकों ने पारगमन बिन्दु पर वेयरहाउस एवं अन्य ढांचे खड़े कर लिए थे। समय के साथ इनका उपयोग अन्य प्रकार के कामों में होने लगा। इसकी फिर से शुरूआत करने में समय लगेगा। भारत-म्यांमार मित्रता के तहत बने पुराने पुलों में से लगभग 80 को बदलने या सुधारने की जरूरत है। इसे 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसी प्रकार सिल्चर और अन्य उत्तरपूर्वी नगरों से चलने वाली योजनाएं काफी मंद गति से आगे बढ़ रही हैं।

  • डिजीटल एकीकरण के लिए त्रिपुरा के रास्ते बांग्लादेश को इंटरनेट से जोड़ने का काम चल रहा है।
  • पिछले तीन वर्षों में वर्तमान सरकार ने उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के अन्य भागों से जोड़ने के लिए एवं इन राज्यों के आपसी संबंधों में बढ़ोत्तरी के लिए केन्द्र के निरीक्षण में सड़क विकास एवं कनेक्टिविटी आर्गनाइजेशन बनाया है।

संपूर्ण उत्तर-पूर्वी भारत में सुरक्षा का वातावरण तभी बन सकता है, जब वहाँ पर्याप्त विकास हो एवं एकीकरण की भावना का संचार हो। सुरक्षित वातावरण ही निवेशकों की रुचि में वृद्धि करेगा। फिलहाल, इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को लेकर जो भी कदम उठाए जा रहे हैं, वे पर्याप्त सिद्ध नहीं हो रहे हैं। लूट-मार, अपहरण, गुटीय संघर्ष एवं अवैध कर वसूली कुछ ऐसे अपराध हैं, जो इन क्षेत्रों में रूकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।

सस्पेंशन ऑफ ऑफरेशन (500) एवं ‘सीज़ फायर’ की सरकारी नीतियों को यहाँ अशांति फैलाने वाले गुटों के आर्थिक आधार पर चोट करने की जरूरत है। पुलिस बल को संघीय बनाने की जरूरत है। इससे उनमें परस्पर तादात्म्य बढ़ेगा। वे सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकेंगे एवं संयुक्त अभियान चला सकेंगे। केन्द्रीय पुलिस पर इस क्षेत्र में फैले जनजातीय गुटों का दबाव भी नहीं रहेगा। क्षेत्र की सरकारी मशीनरी को  भी आतंक के विरूद्ध सक्रिय रहना होगा।

सुरक्षा के साधनों को सशक्त और सुदृढ़ रखते हुए विकास एवं व्यवसाय पर भी ध्यान देना होगा। दरअसल, यहाँ के समाज में विकास एवं सुरक्षा के लिए एक ‘बौद्धिक प्रतिध्वनि’ जागृत करने की आवश्यकता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अरूण साहनी के लेख पर आधारित।

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