भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी – 2

Afeias
30 Mar 2017
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Date:30-03-17

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भारत की अर्थव्यवस्था जिस गति से बढ़ रही है, उससे ऐसा लगता है कि 2050 तक अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भारत विश्व में दूसरे पायदान पर पहुँच जाएगा। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के उत्थान में उस देश के प्राकृतिक संसाधनों का बहुत महत्व होता है। यही वह संपदा है, जो रोज़गार बढ़ाने और देश की अर्थव्यवस्था को आसमान पर पहुँचा सकती है। प्राकृतिक संसाधनों के मामले में हमारा देश पीछे नहीं है। लेकिन कमी है तो इन संसाधनों के इस्तेमाल में महिलाओं की भागीदारी की। अब समय आ गया है, जब हम आर्थिक जगत में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर कृषि, पशु-पालन और छोटे-मोटे व्यवसायों में उनकी क्षमता और योगदान को एक पहचान दे दें।

  • वर्तमान में देश की आर्थिक भागीदारी में महिलाओं की स्थिति और उसे सुधारे जाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर एक नज़र डालते हैं।
    • ग्लोबल इंटरप्रेन्योरशिप एण्ड डेवलेपमेंट इंस्टीट्यूट ने उद्यमी महिलाओं के मामले में भारत को विश्व के पाँच निचले देशों में रखा है। हमारे यहाँ लगभग 73% महिला उद्यमियों को पूंजीपतियों से आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाता है। बैंक ऋण की भी यही स्थिति है।
    • निजी क्षेत्र को आगे बढ़कर महिला उद्यमियों को आर्थिक सहयोग देना चाहिए।
    • आर्थिक सहायता के साथ महिलाओं को उद्यम शुरू करने और उसके प्रबंधन से संबंधित प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में स्टार्ट अप इंडिया और स्टैण्ड अप इंडिया की सरकारी वेबसाइट बहुत मददगार हैं। सरकारी मदद के अलावा अगर निजी क्षेत्र भी एक कदम आगे बढ़ाए, तो प्रगति जल्दी हो सकेगी। मेकिंस्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अध्ययन के अनुसार भारत महिलाओं की आर्थिक भागीदारी से 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद में 60% की बढ़ोतरी कर सकता है।
    • भारतीय ग्रामीण महिलाओं में काम करने की अद्भुत शक्ति है। उन्हें मुख्यधारा से जोड़कर अपने सामथ्र्य में कई गुना वृद्धि की जा सकती है। देश में आंगनबाड़ी की शुरूआत इसी सोच के साथ की गई थी। जब ग्रामीण महिलाएं काम करती हैं, तो उनके बच्चों की समुचित देखभाल इन आंगनबाड़ियों के द्वारा की जाती है। इन केंद्रों के माध्यम से सरकार, कामकाजी महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य पर भी नज़र रखती है।

इन केंद्रों के माध्यम से ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं को व्यावसायिक और प्रबंधकीय प्रशिक्षण देकर सशक्त और समृद्ध बनाया जा सकता है। देश की सवा अरब से अधिक की जनसंख्या में लगभग 60 करोड़ महिलाएं हैं। अगर हम इन महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सकें, तो देश की समृद्धि बहुत बढ़ सकती है।

इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित अनिल अग्रवाल के लेख पर आधारित।

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