‘ऑनर किलिंग’ में कैसा सम्मान ?

Afeias
04 Jan 2022
A+ A-

To Download Click Here.

हमारे देश में सम्मान से जुड़ी हत्याएं या ‘ऑनर किलिंग’ बहुत समय से चली आ रही है। हाल ही में एक 17 वर्षीय किशोर ने औरंगाबाद के ग्रामीण क्षेत्र में अपनी गर्भवती बहन की हत्या इसी सिलसिले में कर दी। इसमें उसकी मां ने भी साथ दिया था। समस्या यह भी है कि इन मामलों में अपराधी स्वयं को सामान्य हत्यारा नहीं मानता। वह इसे अपने वंश का सम्मान बनाए रखने की दिशा में एक गर्व की बात मानता है।

आखिर सम्मान की यह कैसी अवधारणा है ? पारंपररिक विचारधारा यह है कि महिलाएं सम्मान का भंडार है, और पुरूष इसके नियामक हैं। चाहे मध्य युग का द्वंद हो या विभाजन की हिंसा, सम्मान हमेशा ही स्त्री के शरीर से जुड़ा होता है। यही कारण है कि उसका व्यवहार, कपड़े, मुद्रा और सैक्स से जुड़ी पसंद सभी पुरूषों की चिंता का कारण बन जाती हैं।

लगभग हर तरह की यौन हिंसा में, अपराधी को ही ‘पीड़ित’ की भूमिका निभाने का अवसर दे दिया जाता है, क्योंकि महिला को दुनिया में उसकी जगह बताने और यथास्थिति को बहाल करने के लिए उस पर अत्याचार किया जाना जरूरी था। हरियाणा में किए गए एक शोध से पता चलता है कि परिवार, समुदाय और गांव उन पुरूषों के लिए वीरता का दावा करते हैं, जिन्होंने इज्जत की खातिर महिलाओं को मार डाला। 1994 में हरियाणा के नयनगांव में आशा और मनोज के हत्यारों को जमानत मिलने पर गांव वालों ने उनके साथ बहुत ही सम्मानजनक व्यवहार किया था। आक्रोश इस बात को लेकर था कि उन्हें कानून ने दंडित किया ही क्यों।

2014 और 2016 के बीच ऐसे 288 मामले दर्ज किए गए थे। 2020 में भी ऐसे मामले आए हैं। इन सबके मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि “ऑनर किलिंग” का कृत्य कानून के शासन को एक भयावह संकट में डालता है। साथ ही एक वयस्क के स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाने को कहा। इस अपराध से निपटने के लिए राजस्थान में ऑनर एंड ट्रेडिशन बिल, 2019 के नाम पर फ्रीडम ऑफ मैट्रिमोनियल अलांयेस का कानून है।

सम्मान के नाम पर होने वाले अपराध, रिवाज और परंपरा के ऊँचे स्थान पर बैठे हैं। जैसे-जैसे महिलाएं अपनी स्वतंत्रता के लिए दबाव डालती हैं, वैसे-वैसे इस परंपरा का बोझ बढ़ता जाता है। कभी इस प्रकार के अपराध की खबरें केवल उत्तर भारत से आया करती थीं। परंतु अब दक्षिण भारत में भी यह कुरीति चल पड़ी है।

तथ्य निराशाजनक कहे जा सकते हैं। महिलाओं की 38% से अधिक हत्याएं, उनके पार्टनर द्वारा ही की जाती हैं। दहेज विरोधी कानून के 40 वर्ष बाद भी, पिछले वर्ष इसके अंतर्गत 6,966 मामले दर्ज किए गए हैं। यह इस बात का संकेत है कि समाज में स्त्री-द्वेष की जड़ें कितनी गहरी हैं। लैंगिंक समानता, शिक्षा, नौकरियों और बेहतर स्वास्थ्य पर बनने वाले सभी कानून भी इस बुराई को खत्म क्यों नहीं कर पा रहे हैं ?

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित मालिनी नैयर के लेख पर आधारित। 19 दिसम्बर, 2021

Subscribe Our Newsletter