मानव पूँजी को पोषित करें

Afeias
04 Dec 2017
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Date:04-12-17

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भारत के सामने सबसे बड़ा ज्वलंत प्रश्न यह है कि आने वाले दशकों में उसकी आर्थिक प्रगति में सबसे अधिक योगदान किस तत्व का हो सकता है? प्रश्न जटिल है, परन्तु उत्तर बहुत सीधा सा है। स्वास्थ्य और पोषण या अर्थशास्त्रियों की दृष्टि में मानव- पूँजी में निवेश ही भारत की प्रगति में चार चाँद लगा सकता है।

  • मानव रूपी पूंजी किसी भी देश के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। शोधों से पता चलता है कि सन् 1970 से लेकर अब तक स्वास्थ्य एवं पोषण जैसी मूलभूत सुविधाओं में निवेश ही चीन की 40 प्रतिशत आर्थिक प्रगति का कारण बना। जबकि भारत के कर्मचारियों की गिरी हुई उत्पादकता एवं कौशल का स्तर ही घातक सिद्ध हो रहा है।
  • निर्यात पर आधारित, कम कौशल वाले, निर्माण उद्योग से जुड़े रोजगार के जिन अवसरों पर विकासशील अर्थव्यवस्थाएं निर्भर करती थीं, वे पूरे विश्व में गिरावट की ओर हैं। इसका कारण स्वचालन है। दूसरी ओर विकास के लिए उच्च तकनीक वाले क्षेत्र आवश्यक बनते जा रहे हैं। अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन आधारित नवाचार के ऐसे नए क्षेत्र आ गए हैं, जिनसे भारत पूंजी बना सकता है। इन उच्च तकनीक क्षेत्रों के पर्याप्त विकास के लिए भारत को अपने ही कर्मचारियों पर निर्भर रहना चाहिए। ऐसे कर्मचारियों को तैयार करने के लिए पूरे देश में पोषण और स्वास्थ्य पर निवेश को प्राथमिकता देनी होगी।
  • इस निवेश का कारण उत्पादकता से जुड़ा हुआ है। भारत की आधी से अधिक कामकाजी महिलाएं और एक चैथाई पुरूष रक्तल्पता का शिकार हैं। वे अपनी क्षमता से 5 से 15 प्रतिशत तक कम काम कर पाते हैं। भारत में क्षय रोग के सबसे ज्यादा मरीज हैं। इनके कारण भारत को वार्षिक रूप से 17 करोड़ कार्य दिवसों की हानि उठानी पड़ती है।
  • 2005-2006 में एकत्रित डाटा से पता चलता है कि 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषित थे। ये बच्चे तब 12 से 17 वर्ष के बीच की आयु के थे। अब यही बच्चे कामकाजियों की जमात में शामिल हो रहे हैं। इस वर्ग में प्रतिवर्ष 4 करोड़ 50 लाख लोग शामिल हो रहे हैं। खराब स्वास्थ्य एवं कुपोषण के चलते इनकी कार्यक्षमता की गिरावट का अंदाजा लगाया जा सकता है।
  • आने वाले 15 वर्ष भारत के लिए सुनहरे साबित हो सकते हैं। इस दौरान इसकी कामकाजी जनसंख्या ही सबसे ज्यादा बढ़ने वाली है। काफी लंम्बे समय तक भारत अभी अनुकूल निर्भरता अनुपात (आर्थिक रूप से निर्भर जनसंख्या की तुलना में आर्थिक उत्पादकों का अनुपात अधिक होना) का उपभोग करता रहेगा।
  • स्वास्थ्य और पोषण के अलावा भी कई ऐसे कारक हैं, जो भारत के विकास में सहयोग देंगे। बुनियादी रूपांतरण, अधिक उत्पादक एवं उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में पूंजी का अधिक निवेश भी अति आवश्यक है। जैसे-जैसे भारतीय ग्रामीण शहरों की ओर पलायन करते जाएं, उसके साथ ही निवेश में भी बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए।
  • भारतीय कामकाजी वर्ग की उत्पादकता में वृद्धि के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में जन भागीदारी की बहुत जरूरत है। सार्वजनिक स्वास्थ सेवा को दुरूस्त करने के साथ ही जेब पर पड़ने वाले स्वास्थ्य खर्च को बांटे जाने की व्यवस्था करनी होगी। प्राथमिक स्वास्थ्य एवं पोषण केन्द्रों का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र की सेवाओं को बेहतर बनाया जाए। संक्रामक रोगों पर रोकथाम के लिए युद्ध-स्तर पर कार्य किया जाना चाहिए।

इन परिवर्तनों से देश को स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च से मुक्ति मिलेगी। लोगों का जीवन-स्तर एवं देश का आर्थिक भविष्य सुधरेगा।

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित बिल गेट्स के लेख पर आधारित।

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