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मानव विकास में व्यापक असमानताएं
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सच्चाई यह है कि भारत के विशाल भौगोलिक क्षेत्र और राज्यों की भिन्नताओं को देखते हुए इस विकास को दूसरी तरह से भी मापा जा सकता है। यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेन्ट प्रोग्राम और एनएसओ या नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस की सुझाई गई इस नई पद्धति से 2019-20 के मानव विकास को उप-राष्ट्रीय स्तर पर मापने का प्रयत्न किया गया है।
मानव विकास को यहाँ चार बिंदुओं पर मापा गया –
1) जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा
2) स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष
3) स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष
4) प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय
- जीवन-प्रत्याशा के आंकड़े नमूना पंजीकरण तंत्र से लिए गए। स्कूली शिक्षा से संबंधित आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से लिए गए।
प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आंकड़े उप राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध नहीं थे। अतः सकल राज्य घरेलू उत्पाद प्रति व्यक्ति को जीवन स्तर मापन के लिए प्रॉक्सी संकेतक के रूप में लिया गया।
- इस पद्धति में संकेतकों को 0 से 1 के स्केल पर देखा गया है। इस आधार पर कुछ राज्यों ने बहुत अच्छा किया है, जबकि कुछ पिछड़ गए हैं।
- दिल्ली को शीर्ष पर रखा जा सकता है, जबकि बिहार सबसे नीचे है। फिर भीए पिछली मानव विकास रिपोर्ट के हिसाब से बिहार की स्थिति उतनी खराब नहीं है।
- दिल्ली, गोवा, केरल, सिक्किम और चंडीगढ को सूचकांक में 0.799 स्कोर मिला है। यह पूर्वी यूरोप के देशों की तरह का विकास-स्तर है। जबकि 19 राज्यों का विकास-स्तर 0.7 – 0.799 के बीच पाया गया, जो काफी अच्छा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड और असम का स्तर अभी भी नीचे है। ओडीशा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल का स्कोर राष्ट्रीय औसत से नीचे है। ये राज्य कई पिछड़े अफ्रीकी देशों के स्तर पर ही माने जा सकते है।
- केरल में शिक्षा के अच्छे स्तर के कारण वह मानव विकास की दृष्टि से हमेशा ऊपर रहा है। जबकि बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य और आय के निम्न स्तर से गरीबी छाई रहती है।
विसंगतियों के कारण –
- आर्थिक विकास का असमान वितरण होना। शीर्ष 10% जनसंख्या के पास 77% से अधिक संपत्ति है। परिणामस्वरूप बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा का अभाव हो रहा है।
- सेवाओं की गुणवत्ता बहुत खराब है। उदाहरण के लिए प्राथमिक शिक्षा में पंजीकरण का स्तर सार्वभौमिक स्तर के करीब पहुंच चुका है। लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता बहुत खराब है।
आर्थिक विकास के साथ-साथ मानव विकास के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की जरूरत है। यह आय और लैंगिक असमानता को ठीक करने वाला होना चाहिए। साथ ही गुणवत्तापूर्ण सामाजिक और बुनियादी सेवाओं तक पहुंच बननी चाहिए। पर्यावरण की चुनौतियों को संबोधित किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर मानव विकास और रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित नंदलाल मिश्रा के लेख पर आधारित। 21 मार्च, 2023