अंधविश्वास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

Afeias
06 Mar 2018
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Date:06-03-18

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भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों (अनुच्छेद 51ए) के अंतर्गत स्पष्ट लिखा गया है कि प्रत्येक नागरिक का कत्र्तव्य है कि वह ‘‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।’’ जवाहरलाल नेहरु ने अपनी पुस्तक ‘भारत एक खोज’ में पहली बार ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ जैसे पारिभाषिक पद का प्रयोग किया था।इसके दशकों बाद भी भारत के प्रायः हर वर्ग में अंधविश्वास से जुड़ी प्रथाएं चलती चली आ रही हैं।

ऐसा नहीं कि अंधविश्वास भारत में ही है। यह दुनिया के कई देशों में फैला हुआ है। चेकोस्लोवाकिया में काफी लंबे समय तक अंधविश्वास प्रचलित रहने की बात कही जाती है। माओ जेडाँग के शासनकाल में चीन में इस प्रकार की प्रथाओं को खत्म करने के बहुत प्रयास किए गए। आर्थिक सुधारों और स्वतंत्र विचारों के बाद भी चीन में अंधविश्वास का प्रचलन रहा है। भारत में पेरियार में चले तर्कवादी आंदोलन के बाद भी अंधविश्वास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। ऐसा देखा जाता है कि किसी देश के वैज्ञानिक विकास का कोई प्रभाव अंधविश्वास पर नहीं पड़ता।

पूरे विश्व में, विकास के साथ-साथ अंधविश्वासों में कमी आई है। भय उत्पन्न करने वाली कई प्रथाओं एवं आस्थाओं को खत्म किया जा चुका है। भारत में भी सती प्रथा और मानव बलि की समाप्ति इसके उदाहरण हैं। इसका श्रेय शिक्षा, नारी सशक्तिकरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयासों को जाता है। फिर भी समाज में प्रचलित जितने भी अंधविश्वास हैं, वे किसी न किसी रूप में हानिकारक हैं। खासतौर पर जब वे चिकित्सकीय सलाह को नजरदांज करने का कारण बन जाते हैं।

  • अंधविश्वास को दूर करना मुश्किल क्यों है?

हम सब एक प्रकार के जीवन और क्रियाकलापों के आदी हो जाते हैं। जब हम इससे हटकर कुछ करने का प्रयास करते हैं, तो यह हमारे लिए परेशानी का कारण बन जाता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो हम अपने क्रियाकलापों के अनुभवों से एक प्रकार से सम्मोहित से रहते हैं। इस सम्मोहन को तोड़ पाना अत्यधिक कठिन होता है। यह यदा-कदा तभी टूटता है, जब इससे होने वाली हानि स्पष्ट हो। हाल ही का एक शोध, बेसियन बिलिफ पोलराइजेशन यह बताता है कि कैसे दो अलग-अलग विश्वासों को मानने वाले लोग किसी प्रमाण को देखकर भी अपने-अपने विरोधी विश्वासों को ही मजबूत करते चले जाते हैं।

  • विज्ञान की भी सीमाएं हैं

विज्ञान के किसी तथ्य या सिद्धान्त के बारे में दृढ़ोक्ति करना उचित नहीं है, क्योंकि सभी वैज्ञानिक सिद्धांतों का कभी न कभी खंडन किया जाता है। न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आइन्स्टाइन ने पीछे छोड़ दिया। आइन्स्टाइन के सिद्धान्त भी क्वांटम मैकेनिक्स के समक्ष असंगत दिखाई पड़ते हैं। डार्विन के सिद्धांत, मेन्डेनियन अनुवाशिकी एवं जनसंख्या का जीवविज्ञान आदि प्रयोगसिद्ध हैं। फिर भी इन सिद्धान्तों में अंतर है। डार्विन ने जीवन की उत्पत्ति की संतोषजनक व्याख्या नहीं की है।

  • अंधविश्वास का उन्मूलन कैसे हो?

इसे किसी उपदेश या कानून से समाप्त नहीं किया जा सकता। खतरनाक अंधविश्वासों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सामाजिक जागृति कार्यक्रम चलाए जाएं। साथ ही वैज्ञानिक पहुँच वाली शिक्षा का सहारा लिया जाए।

इसके लिए ब्लेज़ पास्कल का विचार महत्वपूर्ण जान पड़ता है कि किसी भी मामले को पहले उस व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखकर उसकी महत्ता को समझना चाहिए। इसके बाद उन्हें उन्हीं के नजरिए के अनुरूप किसी मामले की अच्छाई-बुराई को समझाया जा सकता है।रिचर्ड डॉकिन्स की उग्र तार्किकता से अंधविश्वासों को दूर नहीं किया जा सकता। मनुष्य जाति के क्रमिक विकास के साथ-साथ बहुत से अंधविश्वास धीरे-धीरे स्वतः समाप्त होते चले जाते हैं।

हिन्दू में प्रकाशित राहुल सिद्धार्थन के लेख पर आधारित।

 

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