किसानों के रोजगार में विविधता लाई जाए

Afeias
17 Jan 2019
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Date:17-01-19

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देश में किसानों की दुर्दशा एक चिंताजनक विषय बना हुआ है। ऐसे में, उनके कर्ज की माफी को पर्याप्त समाधान नहीं माना जा रहा है। साथ ही यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी उचित नहीं है। ऐसे संकट से निपटने के लिए तेलंगाना सरकार ने रायथु बंधु नामक एक योजना शुरू की है। इस योजना में भू-स्वामी कृषकों को प्रति एकड़ के हिसाब से 5,000 रुपये डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के द्वारा दिए जाने हैं। इसे बीज और कीटनाशकों की खरीद के लिए सहयोग राशि के रूप में दर्शाया जा रहा है। वास्तव में यह किसानों की कृषि के अतिरिक्त एक तरह की आय सिद्ध हो सकती है। यह मदद बड़े किसानों के लिए ही लाभकारी होगी। छोटे किसानों और काश्तकारों की हालत फिर भी दयनीय ही बनी रहेगी।

  • कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के सर्वेक्षण से पता चलता है कि एक ग्रामीण परिवार की आय मात्र 8,059 रुपये मासिक है। कृषि प्रधान परिवारों की मासिक आय का मात्र 43 प्रतिशत ही कृषि से प्राप्त होता है। बाकी की पूर्ति के लिए उन्हें मजदूरी और सरकारी रोजगार पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • भू-स्वामी कृषकों की आय अपेक्षाकृत अधिक होती है, परन्तु उन पर ऋण का बोझ बहुत ज्यादा होता है। किसानों की आय को दुगुना करने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि का निर्णय लिया। परन्तु यह प्रयास केवल 48 प्रतिशत ग्रामीणों को ही लाभ पहुँचा सकता है। गैर कृषि कर्म वाले परिवारों की हालत तो तब भी वैसी ही बनी रहेगी।
  • भूमिहीन एवं सीमांत किसानों की आय में वृद्धि के लिए ग्रामीण रोजगार के साधनों में विविधता लाए जाने की आवश्यकता है। विकास अर्थशास्त्री डेनियल कोपार्ड ने 2001 की अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य को ऊजागर किया था। इसके लिए दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें पर्याप्त सुधार करके, किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है।

(1) पशुपालन

यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके माध्यम से किसानों की आय को बहुत बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए कुछ परिवर्तनों की आवश्यकता होगी।

  • वर्तमान प्रजनन नीति के पुर्नोत्थान के साथ-साथ, एक राष्ट्रीय प्रजनन नीति लाई जानी चाहिए, जिससे पशुओं की सर्वोत्कृष्ट स्वदेशी नस्लों को उन्नत बनाया जा सके।
  • भैंस पालन को बढ़ावा दिया जाए।
  • स्वदेशी नस्लों के विकास को लेकर प्रजनकों के बीच आम सहमति बनाई जाए। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे राष्ट्रीय प्रजनन नीति के कार्यान्वयन पर ध्यान दें। अकृत्रिम गर्भाघात के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का माहौल तैयार करें।
  • आयात में वृद्धि एवं फीड तकनीक पैकेज के द्वारा चारे की पर्याप्त पूर्ति की जानी चाहिए।
  • पशुओं की संख्या पर नजर रखने के लिए भौगोलिक सूचना तंत्र को इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए।
  • निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाए।
  • पशु स्वास्थ्य कार्ड को प्राथमिकता बनाया जाए।

(2) प्रवासी कामगारों के लिए नीति

  • कृषि कर्म करने वाले मजदूर निर्माण स्थलों पर भी बड़ी संख्या में काम करते हैं, और जीविका कमाते हैं।
  • सर्वप्रथम इन कामगारों को पहचान-पत्र के अभाव में भी सभी सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
  • पहचान-पत्र के अभाव में आंगनबाड़ी की सुविधाओं से इन्हें वंचित न किया जाए।
  • निर्माण-मजदूरों के लिए नीतियां तो अनेक हैं, परन्तु उनका लाभ इन्हें नहीं मिल पाता है। अतः योजनाओं का अनुपालन न किए जाने की स्थिति में दण्ड की व्यवस्था हो। इसकी दण्ड राशि बिल्डर से वसूल की जाए।
  • मजदूरों के पंजीकरण कार्ड को जन-धन खातों से जोड़ा जाए। खासतौर पर महिला-श्रमिकों को इससे राहत मिलेगी।
  • निर्माण-स्थलों पर पालना घर की व्यवस्था हो।
  • मजदूरों को कौशल विकास का अवसर दिया जाए। इससे उनकी आमदनी और मूल्य; दोनों में ही वृद्धि होगी।

कुल-मिलाकर सरकार की नीतियां ऐसी होनी चाहिए, जो ग्रामों की गरीब जनता के सतत एवं दीर्घकालीन विकास को बढ़ावा दे सकें। भारतीय ग्रामीण विकास नीति में बाजारों, बुनियादी ढांचों एवं ऐसे संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो पशुपालकों एवं निर्माण-मजदूरों के हितों की रक्षा कर सकें व उनके लिये अनुकूल वातावरण बना सकें।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित वरूण गांधी के लेख पर आधारित। 3 दिसम्बर, 2018

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