राजनीतिक सामंजस्य की मांग का समय

Afeias
15 May 2020
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Date:15-05-20

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लॉकडाउन के बढ़ने के साथ ही लोगों की चिंता और बेचैनी बढ़ गई है। आगे के लिए राजनीतिक जगत से कुछ आशाएं भी जगाई जा रही हैं। दूसरी ओर, जमीनी स्तर पर असंख्य मजदूरों का बेसहारा होकर परिवार सहित सड़क पर उतर आने का दृश्य, परिस्थिति के प्रति सरकारी नीतियों या प्रतिक्रिया की अक्षमता पर भी सवाल पैदा कर रहा है। महामारी के चलते न तो राजनीति खत्म होने वाली है, और न ही प्रशासन की गुणवत्ता पर प्रजातांत्रिक बहस। वास्तव में, यह प्रधानमंत्री पर निर्भर करता है कि वे अनपेक्षित स्थिति के दौर में विरोधी आवाजों को स्वतंत्रता देते हुए भी एक राष्ट्रीय जनमत कैसे तैयार करते हैं।

आपदा की इस घड़ी में राष्ट्रीय स्तर की बातचीत या विवादों के स्वरूप को संकुचित नहीं किया जाना चाहिए। उदराहरण के लिए , तब्लीगी जमात के कुछ अविवेकी लोगों की अनुशासनहीनता के कारण एक पूरे सामाजिक समुदाय की निंदा के प्रयास पर प्रश्न क्यों नहीं उठाए जा सकते ? नीतिगत मुद्दों पर विपक्ष को यह अधिकार है कि वह अपनी मान्यताओं को बताए। उदाहरणस्वरूप वह इस बात के लिए परामर्श दे सकता है कि देश के वंचित वर्ग की सहायता हेतु सरकार अपने राहत पैकेज को बढ़ा सकती है। हाशिए पर रह रहे वर्ग के लिए सरकार की अनुकंपा उसका दायित्व है , जिसे संविधान की प्रस्तावना में भी वर्णित किया गया है।

परिस्थितियों को देखते हुए विपक्ष से अपेक्षा की जा सकती है कि उसके असंतोष का स्वर विभाजनकारी न हो। न ही वह ज्ञान या अनुभव के दम पर ऐसा दंभ दिखाए , जो प्रतिकारक हो सकता हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी एक ऐसी राजनीति की कल्पना करने का समय है, जो हमारे समय की चुनौतियों का सामना कर सके। आज जब हम एक नए संसार को रचने के इतिहास के चौराहे पर खड़े हैं ; उस समय यह नहीं कहा जाना चाहिए कि हमारी राजनीति ‘अराजक अक्षमताओं’ या ‘लालची अवसरवादियों’ द्वारा संचालित है।

सवाल उठता है कि हमारी राजनीति का कैनवास कैसा होना चाहिए और हमें इसकी सीमाओं को कैसे परिभाषित करना चाहिए ? इसकी शुरूआत हम एक ईमानदार पावती के साथ कर सकते हैं। यह स्वीकार करने का समय है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान के लिए अल्प वित्तीय आवंटन और अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा प्रणाली मानव स्थिति के प्रति संवेदनशीलता के असफल होने का संकेत देती है। हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि सभी प्राणियों का जीवन अंतर्संबंधित है। यह भी कि एक अच्छे जीवन के लिए चरम का त्याग, और संयम को अपनाना अत्यावश्यक है।

वर्तमान स्थिति, पारिस्थितिक अधिकता के बीहड़ों, सामंजस्यपूर्ण जीवन के सिद्धांतों के उल्लंघन और एक व्यक्ति के आंतरिक और सामाजिक जीवन के बीच संतुलन के बारे में वार्ता करना चाहती है। यह संकट, परिवार और मित्रों के सतत् भावनात्मक बंधनों के प्रति हमारी उपेक्षा के लिए हमें चेता रहा है। इस दौर ने हमें अपने-आप से यह सवाल करने को मजबूर कर दिया है कि आध्यात्मिक समाज में करूणा का भाव कैसे आया ? चिकित्सकों के साथ की जा रही मारपीट और बर्बरता के साथ एक पुलिस अधिकारी का हाथ काट दिए जाने जैसी गंभीर विपत्तियों को दूर करना हमारी राजनीति का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए। इन घटनाओं की निंदा या आलोचना भर कर देने से बात नहीं बनेगी। आधुनिकता की चुनौतियों से निपटने के लिए राजनीति और एक कल्याणकारी राज्य की पुनरावृत्ति की जानी चाहिए। हमें अपनी प्रणालियों की अपर्याप्तताओं , गलत प्राथमिकताओं के विनाशकारी परिणामों, भूख और निराशा के खिलाफ गलत उपायों के बारे में सजग रहना चाहिए, ताकि इनको संबोधित करके, हम एक न्यायसंगत और समावेशी सामाजिक व्यवस्था के करीब जा सकें।

आइए, हम सब मिलकर राजनीति को, ‘आदर्श को साकार करने वाला खेल’ बनाने का प्रयत्न करें। हमें एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है, जो लोगों को आशा प्रदान करे, और उन्हें साकार करने की क्षमता प्रदर्शित करे। हमारी इच्छाशक्ति तो ऐसे समाज की स्थापना करना चाहती है, जो ‘हृदयों का विस्तार’ करे। एक ऐसा समाज, जिसमें आर्थिक दक्षता और सामाजिक न्याय असंगत नहीं हो ; एक ऐसा समाजए जो जीवन और आजीविका की एकता को पहचानने से इंकार नहीं करता हो ; एक ऐसी सामाजिक व्यवस्थाए जहाँ कानून समान रूप से लागू होता हो ; एक ऐसी प्रणाली, जो सभी की मानवीय गरिमा के लिए प्रतिबद्ध हो।

प्रधानमंत्री को पता होगा कि लोकतांत्रिक शक्ति स्थायी रूप से केवल लोगों के स्नेह और कृतज्ञता की नींव पर टिकी हुई है। वर्तमान में हम संतोष के साथ कह सकते हैं कि उन्होंने जीवन और आजीविका के प्रबंधन के लिए, राजनीतिक नेताओं और राज्य सरकारों को शामिल करके अच्छा काम किया है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास किसी व्यक्ति की देन नहीं है। अतः मानवता के अस्तित्व के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध समग्र रूप से लड़ा, और जीता जाएगा।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अश्विनी कुमार के लेख पर आधारित। 20 अप्रैल 2020

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