संकट के समय में साझेदारी की शक्ति

Afeias
17 Jun 2020
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Date:17-06-20

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हम सब अभी अभूतपूर्व दौर में रह रहे हैं। इस प्रकार की महामारी में सदियों से बनाई हुई साझेदारी और सहयोग की भावना ही हमारी वास्तविक शक्ति बन सकती है। समय की मांग है कि सभी सक्षम लोग एक-दूसरे का साथ देते हुए आगे बढ़ें। सरकार द्वारा अधिकार प्रदान किए हुए समूहों का दायित्व है कि वे एकीकृत और व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए अपने उद्देश्य को पूरा करें।

संकट से उबरने में साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस पक्ष को ध्यान में रखते हुए सरकार ने गैर सरकारी संगठनों ,  निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय विकास संगठनों को सरकारी तंत्र से इतर ऐसे भार सौंपे थे , जिनमें वे सहयोग कर सकें। ऐसा करने के पीछे एक तो महामारी का व्यापक प्रकोप एक कारण था , और दूसरे सरकार उधर्व और क्षैतिज साझेदारी के माध्यम से आपदा पर प्रभावी और त्वरित नियंत्रण करना चाहती थी। उधर्व साझेदारी में संगठनों ने आंतरिक टीम तैयार की , और क्षैतिज साझेदारी को सरकारी भागीदारी से संस्था का रूप दिया गया। इसमें लगभग आठ मंत्रालयों और संगठनों को मिलाकर समूह बनाया गया था।

पूरी प्रक्रिया और कार्यवाही में सभी हितधारकों ने जिस तत्परता और सहयोग से काम किया , वह प्रशंसनीय है। गैर सरकारी संगठनों का जाल बहुत फैला हुआ है , और उनकी पहुंच जमीनी स्तर पर है। इससे वे नितांत अनछुए क्षेत्रों तक भी सहायता पहुंचा सके। निजी और अंतरराष्ट्रीय विकास संगठनों की ढेरों एजेंसियों ने आगे बढकर संयुक्त कार्यक्रम चलाए। बायोडिजाइन, कायनात, जी आई एस टेक्नॉलॉजी जैसी निजी कंपनियों ने कोरोना मरीजों को ट्रैक करने , पोर्टेबल वेंटीलेटर बनाने आदि के साथ कम कीमत , स्तरीय और त्वरित समाधान वाले अनेक उपाय खोज निकाले। फिक्की, सीआईआई , नैस्कॉम जैसे संगठन , लोगों को एक मंच पर लाने में सफल रहे। इससे अनेक स्तर की समस्याओं का समाधान एक मंच पर ढूंढा जा सका , और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो सका। उन्होंने शोध और अनुसंधान को भी बहुत बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि वर्तमान में भारत के 30 समूह कोरोना का टीका बनाने में जुटे हुए हैं। इन सभी तीस हितधारकों को सरकार की ओर से संस्थागत और अनौपचारिक सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।

इसका नतीजा यह हुआ कि जहां तीन महीने पहले तक एक भी एन-95 मास्क और पीपीई किट भारत में नहीं बनता था , वह आज चार और 104 विनिर्माण फर्मों में बनाया जा रहा है। घरेलू स्तर पर वेंटीलेटर बना सकने से भी शक्ति बढ़ी है। इससे भारतीय उद्योगों की अनुकूलनीयता का पता चलता है। साथ ही , दीर्घकाल में यह ‘मेक इन इंडिया‘ के हमारे स्वप्न को पूरा कर सकता है।

किसी भी प्रजातंत्र में जन-समाज, स्वयं सहायता समूह और गैर-सरकारी संगठन, नागरिक हित की सामूहिक मुखरता की रीढ़ बनते हैं। इस भावना के सूत्रधार, मध्यस्थ और अधिवक्ता बनकर इन समूहों ने नागरिकों को सर्वोपरि रखा। कमजोर परिस्थितियों में उन तक पहुंचने में उनके साधन की सीमाओं ने उनकी गति को मंथर नहीं किया। निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि महामारी के खिलाफ दशकों से लड़ी जा रही इस संयुक्त लड़ाई के भविष्य में भी सार्थक परिणाम मिलेंगे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 25 मई , 2020

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