यूनिवर्सल बेसिक इंकम : समय की मांग

Afeias
18 Jun 2020
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Date:18-06-20

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वर्तमान में चल रहे संकट ने ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर दी हैं कि शायद इसके बीत जाने के बाद , हमारा समाज कोविड-19 के पूर्व और पश्चात् की स्थितियों में विभाजित हो जाए। संकट के साथ ही हमारी आर्थिक स्थितियां औद्योगिक क्रांति के चौथे चरण में प्रवेश कर चुकी है। इस नए युग में मानव का सामना आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी अति तीव्र एक बुध्दिमान तकनीक से होने वाला है। यह तकनीक उत्पादन में बढ़ोत्तरी करते हुए मानव पर अपनी श्रेष्ठता सिध्द करने में सफल होती जा रही है। इसका परिणाम रोजगार के कम होते अवसरों के रूप में सामने आ रहा है।

कम होते रोजगार से आती निर्धनता को दूर करने के प्रमुख हथियार के रूप में यूनिवर्सल बेसिक इंकम की चर्चा अक्सर होने लगी है। इस धारणा के समर्थकों में नोबेल विजेता पीटर डायमंड और क्रिस्टोफर पिसाराइड्स भी हैं। साथ ही मार्क जकरर्ब और इलॉन मस्क जैसे टेक महारथी भी इसका समर्थन करते रहे हैं।

केन्या , ब्राजील , फिनलैण्ड और स्विट्जरलैण्ड जैसे देशों ने यूनिवर्सल बेसिक इंकम के सीमित रूप की शुरूआत कर दी है।

भारत में क्या ऐसा संभव है ?

भारत की बड़ी जनसंख्या और बुनियादी ढांचे की कमी को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस प्रकार की योजना से लाभ हो सकता है। वैसे भी हर वर्ष यहाँ रोजगार के इच्छुक युवाओं की बड़ी संख्या जुड़ जाती है , जिनके लिए सरकार के पास कुछ नहीं होता ।

2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कुछ उच्च सम्पन्न नागरिकों को छोड़कर सबको बेसिक इंकम योजना का प्रस्ताव दिया था। की गई अनुशंसा के अनुसार इसे सकल घरेलू उत्पाद का 4.9 प्रतिशत आंका गया था। आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ लक्षित परिवारों को 40,000 रुपये प्रतिवर्ष की बेसिक इंकम देने पर जोर दिया गया था।

इस पर हमारा राजनीतिक वर्ग तैयार नहीं हुआ ,क्योंकि इसमें अधिक निधि की मांग थी। इस हेतु उन्हें कुछ सब्सिडी में कटौती करनी पड़ती , जो उनके राजनैतिक भविष्य के लिए ठीक नहीं होता। अत : पूरी योजना को गड्ढे में डाल दिया गया।

वर्तमान की मांग

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2020 की वैश्विक विकास दर 3.0% का अनुमान दिया है। भारत में यह 1.9% रहने का अनुमान है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट के बाद 5.9% रह सकती है। ग्रेट डिप्रेशन के बाद से अमेरिका में आई यह सबसे बड़ी आर्थिक मंदी है।

वैक्सीन के तैयार होने तक भारत में गतिविधियां बहुत सीमित रहने वाली हैं। भारत का 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा है , जहाँ कम वेतन और सामाजिक असुरक्षा का ही चलन है।ऐसे कार्यक्षेत्रों की स्थिति बहुत खराब रहने वाली है। ऐसी अवस्था में उन्हें बिना शर्त के एक आधारभूत आय का स्रोत दिया जाना चाहिए , जो सर्वाधिक सार्वभौमिक हो। अगर राजनीतिक जगत ने कभी इस प्रकार की योजना पर विचार भी किया है , तो यही वह समय है , जब इसे कार्यरूप में लाया जाए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अनिल के. एनथनी के लेख पर आधारित। 1 जून , 2020

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