यूनिवर्सल बेसिक इंकम

Afeias
18 Feb 2019
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Date:18-02-19

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यूनिवर्सल बेसिक इनकम, देश के सभी नागरिकों को दी जाने वाली बुनियादी आमदनी है। कुछ अर्थशास्त्री इसे एक प्रकार का बेरोजगारी बीमा मानते हैं, जो हर किसी को नहीं दिया जा सकता। भारत में इसकी शुरूआत सिक्किम राज्य में सत्तासीन पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र से मानी जा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार, गरीबी रेखा से नीचे आने वालों को इस प्रकार की आर्थिक सहायता राशि देने पर विचार कर रही है। अगर यह सच साबित होता है, तो इसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम का विरोधाभास माना जाएगा। इस प्रकार की न्यूनतम आय बिना अमीर-गरीब के भेदभाव के सभी नागरिकों को समान रूप से दिया जाता है। अन्यथा इसे ‘सार्वभौमिक’ कहा जाना व्यर्थ है। भारत में इस योजना को लाए जाने के साथ ही उसके स्वरूप, व्यापकता और इससे जन्मी आशंकाओ पर विस्तार से विचार किया जाना आवश्यक है।

  • सबसे पहला तर्क सामाने आता है कि आधिकारिक गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले बहुत से लोग अनेक प्रकार की असुरक्षा से घिरे हुए हैं। उदाहरण के लिए किसानों को लिया जा सकता है, जो मौसम और बाजार के खतरों से घिरे रहते हैं। इसी प्रकार अनौपचारिक क्षेत्र में नौकरी करने वालों पर हमेशा नौकरी चले जाने की तलवार लटकी रहती है।
  • भारत में गरीबी रेखा के दायरे में आने वालों का आकलन ही ठीक प्रकार से नहीं हुआ है। तेदुंलकर फॉर्मूले में 22 फीसदी आबादी को जबकि सी.रंगराजन फॉर्मूले में 29.5 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना गया था। 2011-12 के मानव विकास सर्वेक्षण में देखा गया कि बहुत से गरीबों के पास बीपीएल कार्ड नहीं हैं, जबकि ऐसे एक तिहाई लोगों के पास कार्ड है, जो गरीब नहीं हैं।
  • यह कार्यक्रम अनेक देशों में न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा के रूप में चलाया जा रहा है। इसे भारतीय नागरिकों के जीवन के अधिकार से जोड़कर देखा जाना चाहिए, और बिना किसी भेदभाव के सबको दिया जाना चाहिए। देश में जैसे सभी नागरिकों को पुलिस सुरक्षा दी जाती है, उसी प्रकार से हर नागरिक को यूबीआई का अधिकार है।
  • अगर इसे समान रूप से सभी नागरिकों को दिया जाना है, तो यह अत्यंत खर्चीला साबित होगा। इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा सकता है। एक समय के बाद सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो सकती है, और उसकी जगह निश्चित रकम सीधे लोगों के खाते में जाती रहेगी। साथ ही व्यापार में दी जाने वाली कर सुविधाओं को भी आंशिक रूप से घटाया जा सकता है। छूट दी गई सम्पत्ति, विरासत में मिली सम्पत्ति, दीर्घकालिक कैपिटल गेन जैसी कर से मुक्त आय और वर्तमान के सम्पत्ति मूल्यांकन पर कर बढ़ाकर यू बी आई के लिए रास्ता ढूंढा जा सकता है।

इन सबके आधार पर एक परिवार को 16,000 की यूनिवर्सल बेसिक इंकम राशि दी जा सकती है। इसकी शुरूआत केवल महिलाओं को धनराशि देकर की जाए, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1.25 फीसदी ही ठहरता है।

धनी वर्ग को दी जाने वाली सुविधाएं कम किए बिना, राजकोषीय घाटे को बढ़ाकर या गरीबी उन्मूलन के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों में कटौती करके इस योजना को क्रियान्वित किया जाना ठीक नहीं होगा।

  • इस योजना से जुड़ी कुछ व्यावहारिक समस्याएं भी सामने आ सकती हैं। (1) देश में अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं। (2) नागरिकों की पहचान के लिए आधार कार्ड जैसी किसी व्यवस्था की आवश्यकता होगी। (3) योजना को शुरू से ही लिविंग इंडेक्स की कुछ लागतों से जोड़ने की आवश्यकता होगी। (4) क्या योजना को बच्चों और वयस्कों के लिए अलग-अलग रखा जाए? उम्र के सही प्रमाण पत्र के अभाव में, योजना को लागू किया जाना जटिल होगा। (5) अनुदान राशि को केन्द्र और राज्यों के बीच कैसे बांटा जाएगा? राज्यों की अपनी राजकोषीय क्षमता है। इसके अलावा दूरदराज इलाकों में लोगों तक पहुँच बना पाना भी एक कठिन काम होगा। सब्सिडी के मामले में वित्त आयोग को केन्द्र और राज्यों के बीच तालमेल बैठाना होगा।

यूनिवर्सल बेसिक इंकम एक ऐसी योजना है, जिस पर गंभीरता से सोच-विचार करने की आवश्यकता होगी। यह जल्दबाजी में, मतदाताओं को खुश करने के लिहाज से उठाया जाने वाला कदम नहीं हो सकता।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित प्रणव वर्धन के लेख पर आधारित। 16 जनवरी, 2019

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