न्यायिक प्रणाली की प्राथमिकता क्या हो

Afeias
05 Sep 2022
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प्रत्येक समाज में न्यायाधीशों और विद्वानों को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है। बदले में, समाज उनसे अपेक्षा करता है कि वे अपने अपने दायित्व का पालन श्रेष्ठ भावना के साथ करेंगे। लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था इस दायित्व का पालन नहीं कर पा रही है।

कुछ तथ्य –

  • 5 करोड़ पेंडिंग मामलों के साथ, न्यायपालिका करोड़ों नागरिकों को न्याय से वंचित रख रही है।
  • अनुबंधों को लागू करने में आसानी के मामले में भारत सभी देशों के निचले 15वें प्रतिशत पायदान पर है।
  • न्याय में हो रही इस प्रकार की देरी से 160 देशों के नागरिकों की तुलना में कहीं अधिक भारतीयों को न्याय से वंचित किया जा रहा है।

समाधान क्या हो सकते हैं –

प्रत्येक उच्च न्यायाधीश को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट रूप से स्वीकार करना चाहिए; कि नागरिकों को समय पर न्याय देना न्यायिक प्रणाली का धर्म रहा है, जिसे वह पूरा नहीं कर पा रही है। साथ ही निम्न कुछ उपायों पर अमल किया जाना चाहिए-

  • अनुबंधों को लागू करने में आसानी को नागरिक समाज के लिए बुनियादी जरूरत मानकर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • लंबित मामलों को खत्म करने के लिए एक समयबद्ध योजना तैयार करनी चाहिए। एक ऐसी योजना, जिसमें प्रौद्योगिकी का उपयोग वाले मामलों और नियमित मामलों को अलग-अलग करके, उन्हें जल्दी निपटाया जा सके।
  • लोकप्रिय विषयों के बजाय अधिक दबाव वाले मामलों को प्राथमिकता से निपटाया जाना चाहिए।
  • न्यायिक प्रणाली को अपने प्राथमिक कार्य पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत को आर्थिक मोर्चे पर 7.8% बढ़ने के लिए इसे अनुबंधों को लागू करने में आसानी के लिए शीर्ष 50 देशों में से एक होना चाहिए। देश के न्यायाधीश एक समयबद्ध योजना विकसित करके ऐसा करने का प्रयास कर सकते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम के लेख पर आधारित। 26 जुलाई, 2022

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