जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में कामयाबी के कदम
Date:14-10-19 To Download Click Here.
2019 में विश्व जनसंख्या की संभावनाओं की रिपोर्ट बताती है कि भारत के साठ के दशक में 5.9 रहने वाली कुल प्रजनन दर 2010-15 के बीच गिरकर 2.4 रह गई है। 2025-30 के बीच इसके गिरकर 2.1 पर पहुँच जाने की संभावना है। इस दर को प्रतिस्थापन प्रजनन स्तर कहा जाता है, जहाँ जनसंख्या वृद्धि की दर स्थिर हो जाती है। जनसंख्या वृद्धि की दर में आई गिरावट के कुछ अहम् कारण हैं –
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार गर्भनिरोधक के प्रयोग के लिए स्वीकृति को एक कारण माना जा सकता है।
- लड़कियों की शादी की बढ़ती उम्र इसका बहुत बड़ा कारण है। राष्ट्रीय सर्वेक्षण में गर्भवती या संतानविहीन महिलाओं का प्रतिशत 2005-06 के 48 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में 21 प्रतिशत रह गया था। इस जनसांख्यिकी लाभ का कारण पहली संतान के लिए उम्र का बढ़ जाना है।
- शैक्षणिक और आर्थिक स्तर में सुधार से हाशिए पर रह रहे समुदायों में आधुनिकीकरण का प्रतिशत बढ़ा है। मुसलमानों में भी प्राथमिक स्वास्थ्य और शिक्षा के बढ़ते स्तर के चलते प्रजनन दर कम हुई है। इस समुदाय में गरीबी के कारण स्कूली शिक्षा में कम वर्ष लगाए जाते हैं। लड़के जल्दी ही काम करने लगते हैं, और लड़कियां घर के कामों में लग जाती हैं।
श्रम बाजार का वातावरण भी तेजी से बदल रहा है। नए और आधुनिक विचारों के प्रवेश के चलते मुस्लिम लड़कियां और महिलाएं स्कूल और कॉलेज के साथ-साथ श्रम बाजार में भी प्रवेश कर रही हैं। मुस्लिम शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी की दर इस बात का प्रमाण है कि समुदाय ने नियमों में ढील देते हुए महिलाओं को काम करने की छूट दे दी है।
प्रभाव
- कुल प्रजनन दर में गिरावट का सबसे बड़ा प्रभाव निर्भरता की दर में कमी के रूप में देखा जा सकता है। बच्चों के हिस्से में बढ़ोत्तरी हुई है। वयस्क जनसंख्या भी बढ़ी है। इससे आर्थिक प्रगति की दर तेज हुई है।
- कामकाजी लोगों की संख्या बढ़ी है। अगले तीन दशकों तक भारत की आर्थिक विकास दर 6.5-7.5 तक रहने का अनुमान है।
इसकी निर्भरता काम में महिलाओं की भागीदारी और कौशल विकास पर है। कामकाजी महिलाओं के प्रतिशत में वर्तमान गिरावट के बावजूद कुल प्रजनन दर में आई कमी इस बात की ओर संकेत करती है कि आने वाले समय में आर्थिक विकास की अपेक्षित दर को पाया जा सकता है।
रोजगार के लिए महिलाओं का विस्थापन भी तथ्य की पुष्टि करता है।
हाल के दशकों में, भारत में नीति-निर्माण का कार्य, डाटा और शोध-अनुसंधान पर आधारित नहीं रहा है। जनसांख्यिकी के मामले में, खासतौर पर बड़े परिवारों पर किसी तरह की दंडात्मक मुक्ति से, चीन जैसी स्थिति हो सकती है। अतः कोई भी निर्णय लेने से पूर्व हर प्रकार से विश्लेषण कर लेना ही उचित रहेगा।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अमिताभ कुंडु के लेख पर आधारित।