वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सही दिशा क्या हो ?

Afeias
24 Nov 2021
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हाल में वायु प्रदूषण की समस्या ज्वलंत प्रश्न बनी हुई है। अच्छी बात यह है कि इस समस्या ने आखिरकार दिल्ली में राजनीतिक महत्व प्राप्त कर लिया है। दिल्ली के दोनों ही सत्ताधारी दलों ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक्शन प्लान जारी किए हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने तो तीन वर्षों के भीतर ही वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति दिलाने का वायदा भी किया है। ऐसे वायदे और एक्शन प्लान पहले भी आए हैं, लेकिन क्या कारण है कि दिल्ली में अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और ईंधन पर प्रतिबंध, सार्वजनिक परिवहन के लिए सीएनजी को अपनाने, पावर प्लांट को बंद करने आदि के बाद भी पीएम 2.5 का स्तर दोगुना होता गया है ?

कुछ कारण –

  • दिल्ली में प्रदूषण का कारण पड़ोसी राज्यों से आने वाला धुंआ है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में प्रदूषण नियंत्रण के बिना दिल्ली को प्रदूषण-मुक्त नहीं किया जा सकता।
  • प्रदूषण का सीधा संबंध ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने वाले जीवाश्म ईंधन और बायोमास को जलाने से है। इसके अलावा कृषि अवशेष और 10-15 मीट्रिक टन कचरा खुले में जलता है। पेट्रोलियम उत्पादों और गैस के कारण भी लगभग 15% प्रदूषण फैलता है।
  • धूल को पार्टिकुलेट मैटर (पी एम) के एक बड़े स्रोत के रूप में देखा जा रहा है। निर्माण स्थलों और सड़क किनारे की धूल के अलावा, पड़ोसी राज्यों की परती भूमि से उड़ने वाली धूल पूरे देश में प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। हाल ही में 26 राज्यों ने पिछले दशक में मरूस्थलीकरण की दर में बढ़ोत्तरी देखी है।

समाधान क्या होने चाहिए –

  • पिछले 20 वर्षों में प्रदूषण को कम करने के लिए हमारा पूरा ध्यान ऑटोमोबाइल सेक्टर पर रहा है। लेकिन प्रदूषण में पेट्रोलियम उत्पादों की मात्र 15% और जीवाश्म ईंधन व बायोमास की 85% जिम्मेदारी है।
  • बायोमास, कोयला और भूमि प्रबंधन का कार्य जटिल है। इस हेतु मूलभूत परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता है। इसको कार्यरूप में लाने के लिए कठोर निर्णय लेने होंगे, और पर्याप्त समय देना होगा।

वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए करोड़ों घरों में खाना बनाने के ईंधन को बदलना होगा। करोड़ों किसानों को पराली जलाने से रोकना होगा, व हजारों उद्योगों को कोयले के विकल्प ढूंढने को तैयार करना होगा। ये उपाय भले ही लंबे समय में रंग लाएं, लेकिन प्रयास तो सही दिशा में किए ही जाने चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्रभूषण के लेख पर आधारित, 16 अक्टूबर 2021।

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