सी एस आर व्यय की सुव्यवस्था

Afeias
15 Oct 2019
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Date:15-10-19

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भारत में विज्ञान और तकनीक की चाल धीमी है। नीति आयोग की 2030 की विजन रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन के सकल घरेलू उत्पाद में अनुसंधान पर 2 प्रतिशत व्यय किया जाता है। वहीं भारत में यह 0.7 प्रतिशत ही है। अतः सरकार ने इसमें बढ़ोत्तरी के लिए कार्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) को दायित्व सौंपा है।

चीन और अमेरिका में शोध एवं अनुसंधान पर केवल 30 प्रतिशत व्यय, सरकार करती है। जबकि भारत में 75 प्रतिशत व्यय सरकार द्वारा किया जाता है। सी एस आर को यह दायित्व सौंपे जाने के बाद उम्मीद की जा सकती है कि भारत की अनुसंधान पारिस्थितिकी को भी सुदृढ़ आधार मिल सकेगा। वास्तव में, सी एस आर के पास भारत को नए मॉडल में ढालने का सुअवसर है।

  •  2013 में सी एस आर नियमन आने के समय अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप की तुलना में भारत ही ऐसा देश था, जहाँ आय, लाभ और कुल मूल्य के आधार पर कार्पोरेट के दायित्वों को बांधा गया था। यहाँ इन दायित्वों को दार्शनिकता से जोड़ते हुए ‘अच्छे कर्म से अच्छा होने’ का सिद्धांत दे दिया गया।
  • सी एस आर कानून के आने के बाद से चार वर्षों तक भारत के कार्पोरेट समुदाय ने लगभग 12,000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष खर्च किए हैं। इसको केन्द्र सरकार के 2019-20 के उच्च शिक्षा के बजट का 125 प्रतिशत और स्वच्छ भारत मिशन के 12,600 करोड़ रुपये के बराबर माना जा सकता है।
  • सीएसआर के तहत कॉर्पोरेटस द्वारा निधि निश्चित करने के साथ ही मौजूदा सीएसआर प्रावधानों पर ध्यान देना चाहिए। सीएसआर पर बनी उच्च स्तरीय समिति ने सीएसआर के लिए कर कटौती शामिल की है। 3-5 वर्षों में बची राशि को आगे के लिए बढ़ाना, परियोजनाओं को लागू करते समय राष्ट्रीय हितों के साथ स्थानीय प्राथमिकताओं को संतुलित करना, समिति का गठन करना जैसे मुद्दो पर ध्यान केन्द्रित करके सीएसआर की प्रभावशीलता को मजबूत किया जा सकता है।
  • सीएसआर के नियमन को सुचारू बनाने के लिए और इस क्षेत्र को भारत के सामाजिक, आर्थिक विकास में बराबर का भागीदार बनाने हेतु कुछ बातों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
  1. बड़ी कंपनियों से सीएसआर में ज्यादा निवेश की उम्मीद की जाती है। क्रिसिल सीएसआर ईयरबुक 2019 में सीएसआर में लगभग 80 प्रतिशत योगदान बड़ी कंपनियों का ही है। इन कंपनियों का टर्नओवर 1500 करोड़ या उससे अधिक है। ये कंपनियां कुल वंचित जनसंख्या के 30 प्रतिशत का ही भला कर पाती हैं। इसके फलस्वरूप, समर्थ कंपनियाँ भारत के सीएसआर में केवल 20 प्रतिशत का ही व्यय कर रही हैं। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा के राजस्व वाली कंपनियों पर ही सीएसआर का पूरा भार डाल दिया जाना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया को राजस्व पर आधारित कर दिया जाना चाहिए।
  2. गैर धर्मार्थ ट्रस्ट और अन्य गैर कारपोरेट उद्यम, जिनका राजस्व बड़ी कंपनियों के समान है, को भी सीएएसआर के दायरे में लाया जाना चाहिए।

पिछले 4-5 वर्षों में भारत के सामाजिक, आर्थिक विकास में सीएसआर 1.0 का खासा योगदान रहा है। इसने सामाजिक ढांचा तो खड़ा कर दिया है। अब सीएसआर 2.0 की मदद से धारणीय विकास के द्वारा भारत की प्रगति की जा सकती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में 27 सितम्बर, 2019 को प्रकाशित सचिन जैन के लेख पर आधारित।

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