ओ.बी.एस. के निर्यात में अपार संभावनाएँ
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परिचय –
ओ.बी.एस. में कारोबारी सेवाएँ; जैसे – परामर्श, अभियांत्रिकी और रिसर्च एवं डिजाइन आती हैं। भारत से निर्यात होने वाली सेवाओं में साफ्टवेयर एवं आईटी सेवाएँ आधे से अधिक का योगदान देती हैं, ओ.बी.एस. सेवाएँ कुल निर्यात में एक-चौथाई का योगदान देती हैं। लेकिन आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र सूचना एवं आई.टी. को पीछे छोड़ सकता है। वैश्विक स्तर पर 7.1 लाख करोड़ डॉलर के सेवा क्षेत्र में ओ.बी.एस. का योगदान 1.8 लाख करोड़ डॉलर का है।
ओ.बी.एस. में वृद्धि के कारण –
- विशेष सेवाओं की बढ़ती मांग, सेवाओं में प्रगति और तकनीक में प्रगति ओबीएस को बढ़ावा दे रही है।
- विनिर्माण कंपनियाँ कम लागत के कारण एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जाती हैं, जिससे इन सेवाओं को बढ़ावा मिलता है।
- सेवा और विनिर्माण क्षेत्र के जुड़ने से भी इसे बढ़ावा मिल रहा है। जैसे अमेरिका की एक कार कंपनी द्वारा उसके पार्ट्स बनाने का काम भारतीय कंपनी को देना।
- विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल माध्यम के अधिक इस्तेमाल से तकनीक एवं इंजीनियरिंग सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे भी इस क्षेत्र में वृद्धि हो रही है।
- कम लागत के कारण कंपनिया अपना कार्य दूसरे देशों से कराती हैं।
- नियामकीय दबावों के कारण व्यवसायों को अंतरराष्ट्रीय निमयों के अनुपालन के लिए परामर्श सेवाओं की आवश्यकता है, जिससे ओबीएस की मांग बढ़ती है।
भारत के ओ.बी.एस. नियति की ताकत कौन ?
- भारत से 80 अरब डॉलर के ओबीएस का निर्यात होता है, जिसमें आधा वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) से और आधा विभिन्न कंपनियों व परामर्श इकाइयों से आता है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा वैश्विक क्षमता केंद्र स्थापित किए जाते हैं, जिसमें IT सेवाएँ, वित्त, मानव संसाधन एवं आर एंड डी आदि कार्य किए जाते हैं।
- भारत में लगभग 1500 वैश्विक क्षमता केंद्र हैय जैसे- बेंगलूरू, गुरूग्राम आदि शहरों में। इससे पहले बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग व नालेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग जीसीसी का काम करती थी।
- ओ.बी.एस. में स्थानीय कंपनियों का योगदान होता है।
- ये कंपनियाँ सीधे ग्राहकों के साथ या मध्यस्थों के साथ मिलकर काम करती हैं।
आगे की राह –
- निर्यात क्षमता हासिल करने की रणनीति – भारत में शोध अभियंत्रिकी एवं प्रबंधन पेशेवरों को इसकी पर्याप्त जानकारी व समर्थन दिया जाना चाहिए।
- निपामकीय समीक्षा – इन सेवाओं की समीक्षा कर इन्हें वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना चाहिए। वैश्विक आवश्यकता आधारित प्रमाणन की दिशा में कार्य करना चाहिए।
- संघ स्थापित करने की आवश्यकता – इस क्षेत्र में भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट सेवाएँ हैं इसलिए इनका संघ स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि ये नियामकीय चुनौतियों से बाहर आ सकें। ये संघ वैश्विक स्तर के हों, जिसमें भारतीय संघ के खरीदार व विक्रेता भी जुड़ सकें।
व्यापार आंकड़ों का प्रदर्शन –
आरबीआई लेन-देन के देशवार आंकड़े जारी नही करता। किसी खास ओबीएस पर विस्तृत आंकडें विभिन्न ओबीएस श्रेणियों में मौजूद संभावनाओं के द्वार खोल सकेंगे।
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