28-04-2025 (Important News Clippings)

Afeias
28 Apr 2025
A+ A-

To Download Click Here.


Date: 28-04-25

Pulling Out Poverty One Clump at a Time

Aim higher to deliver on employment

ET Editorial

Poverty is, understandably, an uncool topic to tackle the se days. Even the word seems to come in the way of ‘viksit’ aspirations. But reducing poverty is a vital ingredient in a country’s aim to be prosperous, beyond being home to a rising number of billionaires. So, it’s heartening to know-and important to register-that the World Bank estimates India pulling 17.1 cr people out of extreme poverty in the past decade, leaving 2.3% of its population at the lowest global estimate of indigence. Over this period, India transitioned into a ‘low middle-income’ country, shifting the actionable poverty line upwards. Here, too, India’s performance has been noteworthy, with 37.8 cr people lif- ted out of poverty. After adjusting poverty thresholds for inflation, 5.3% of Indians will be living in extreme poverty and 23.9% in impoverished conditions.

Ideally, India should have extinguished extreme poverty to coincide with its transition into a low middle-income economy. In the event, it currently finds itself in the middle of the income band for this category, and has some work left on this front. This raises the larger issue of whether India will be able to lift a quarter of its population above the low middle-income economy poverty line in the next six years, when the per capita income is projected to cross the upper middle-income threshold. India needs to roll up its anti-poverty performance as it grows. It means leaving no stragglers behind as the economy crosses development milestones.

This involves equal emphasis on growth and income redistribution. India has been the fastest growing economy for a while now. But it needs to aim higher to deliver on employment. It also needs a social security mechanism that can scale up to higher poverty thresholds. These call for reforms to improve productivity and welfare. Over the course of this decade, India needs to put in place a rigid social security structure that can stop people from sliding back into poverty. Targets must shift from entitlements to outcomes in food, health and education.


Date: 28-04-25

Make Our Healthcare Closer for Elders

ET Editorial

Indians are getting affluent. But accessing reliable healthcare continues to be a challenge, more so for above-60s. India’s silver generation, 10.5% of the population, must travel an avera- ge of 15 km for outpatient services, and nearly 44 km for in-patient care. Longer travel times to a healthcare facility makeaccessing essential medical care difficult.

Going by the new Lancet study, improving physical access for older adults is critical. This group is expected to account for 13.2% in 2031, rising to 15% by 2036. By 2047, India’s senior citizens will outstrip the 0-14 cohort accounting for nearly 21% of the population. Making improved access to geriatric care is a key marker of a country’s developed status. So far, Gol has focused on financial access through health insurance, such as Ayushman Bharat for above-70s. Without easier physical access to medical services, there won’t be a marked improvement in health outcomes and well-being of older Indians. Given longer life spans, missing access to healthcare has productivity and economic impacts. There are wide variations among states, and travel distances are higher in rural areas than urban, with low-income seniors and women placed at a bigger disadvantage.

Ensuring primary and secondary healthcare within a 10-km radius is important, with a focus on addressing transportation barriers, particularly for home-bound seniors. Community-based transport service, home-based primary care and a mix of mobile medical van, digital healthcare and inclusive social support must be built into design on healthcare centres. A strong emphasis on wellness, addressing issues such as pollution, heat stress, community engagement and mental health will improve outcomes for not just seniors but everyone.


Date: 28-04-25

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बीच भारत

देवाशिष बसु, ( लेखक डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक एवं मनीलाइफ फाउंडेशन के न्यासी हैं )

दिल्ली में नीति निर्धारकों और विशेषज्ञों ने झट से कह दिया कि अमेरिका और चीन के बीच छिड़ा व्यापार युद्ध भारत के लिए सुनहरा मौका है। आपूर्ति श्रृंखला बिगड़ने और भू-राजनीतिक तनाव गहराने पर क्या भारत निर्यात बाजार में चीन की भारी हिस्सेदारी अपने नाम कर पाएगा? ऊपर से तो ऐसा ही दिख रहा है क्योंकि ऊंचे शुल्कों और पाबंदियों की वजह से अमेरिका को चीन से आयात घटेगा। ऐसे में भारत सस्ते श्रम और तेजी से बढ़ते उद्योगों के दम पर अपनी जगह मजबूत कर सकता है। किंतु इस उम्मीद के पीछे कड़वी हकीकत भी है।

सबसे पहली बात, चीन का निर्यात तंत्र काफी विशाल है। उसने 2024 में अमेरिका को 439 अरब डॉलर का माल सीधे निर्यात किया। इन आंकड़ों में वियतनाम, कंबोडिया और मेक्सिको के रास्ते निर्यात माल जोड़ दें तो आंकड़ा बहुत बढ़ जाएगा। इस भारी भरकम आंकड़े की बराबरी करना आसान नहीं है । भारत और दूसरे देशों के पास इतनी औद्योगिक मजबूती, लॉजिस्टिक्स क्षमता या नीतिगत पारदर्शिता नहीं है कि वे चीनी निर्यात का विकल्प बन सकें।

दूसरा मुद्दा समय से जुड़ा है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध बिगड़ गए हैं मगर यह सोचना बेमानी है कि लड़ाई लंबी चलेगी। कुछ हफ्तों में कई अमेरिकी स्टोरों की दराजें खाली होने लगेंगी। अमेरिका में माल पहुंचाने वाले सबसे बड़े वेंडरों में आधे से ज्यादा चीनी ही हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने, परिधान एवं घरेलू सामग्री का आयात थमा तो कीमतें बढ़ेंगी और महंगाई भी बढ़ सकती है। प्रतिकूल परिस्थितियों में इससे अमेरिका की वित्तीय परिसंपत्तियों में भरोसा घटेगा । इसका समाधान खोजने का दबाव भी बढ़ता जाएगा। इस बीच भारत से निर्यात बढ़ेगा भी तो वह अधिक दिनों तक नहीं टिकेगा ।

अमेरिका और चीन में पिछले एक दशक से व्यापार युद्ध चल रहा है, इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि डॉनल्ड ट्रंप के आने से ही ऐसा हुआ है। दोनों देशों के बीच समझौता हुआ तब भी चीनी सामान पर ऊंचा शुल्क ही लगेगा। कुछ लोगों की दलील है कि इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय माल बढ़ने लगेगा। हो सकता है बढ़े मगर मुद्दा यह नहीं है कि चीन के कारण भारत के लिए बंद दरवाजे खुल रहे मुद्दा यह है कि भारत उसमें दाखिल होने लायक है भी या नहीं। भारत का विनिर्माण क्षेत्र बिखरा है, तकनीक के इस्तेमाल में पीछे है और चीन से खाली हुई जगह भरने को पूरी तरह तैयार नहीं है। भारत के पारंपरिक निर्यात जैसे कपड़ा, परिधान एवं आभूषण वैश्विक मांग के अनुरूप नहीं बढ़ पाए हैं। हां, दवा में भारत दमदार है और अमेरिका को आधी जेनेरिक दवा भारत से ही मिलती है। मगर दूसरे क्षेत्रों में वस्तुओं एवं उत्पाद की गुणवत्ता सबसे बड़ी बाधा है। भारतीय उत्पाद अक्सर अंतरराष्ट्रीय पैमानों पर नाकाम रहते हैं और उत्पादन भी नहीं बढ़ पाता ।

निर्यातकों के लिए भी चुनौती हैं। एचडीएफसी बैंक के अनुसार भारतीय निर्यातकों को लंबी-चौड़ी कागजी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। संकरी और नाकाफी सड़कें, रेल मार्ग, बंदरगाह एवं हवाई अड्डों के कारण माल की आवाजाही सुस्त तथा खर्चीली बन जाती है, जिससे निर्यातक आपूर्ति से जुड़ी शर्तें पूरी करने में जूझते रहते हैं। सड़क और रेल संपर्क खराब होने के कारण समुद्र से दूर के राज्यों से माल बंदरगाह तक पहुंचना दूभर हो जाता है। दिल्ली के एक गोदाम से बंदरगाह तक माल पहुंचने में तीन से चार दिन लगते हैं, जो अन्य देशों में लगने वाले समय की तुलना में तीन गुना है। कृषि पदार्थों का निर्यात इससे अधिक प्रभावित होता है। भारत में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेल तंत्र है, जो 30 लाख टन माल ढोता है। मगर पुराने उपकरण, लचर सिग्नल प्रणाली और मालगाड़ी के डिब्बों की कमी के कारण लागत बढ़ जाती है तथा देर भी हो जाती है।

भारत निर्यात में आगे बढ़ना चाहता है मगर खास तौर पर चीनी आयात पर निर्भर होता जा रहा है। 2023-24 में भारत में 63 फीसदी सोलर पैनल आयात चीन से हुआ। दुनिया में पॉलिसिलिकन उत्पादन में 97 फीसदी और सोलर- मॉड्यूल उत्पादन में 80 फीसदी हिस्सेदारी चीन की ही है। स्मार्टफोन, लैपटॉप एवं उपकरण बनाने वाली भारतीय कंपनियां भी पुर्जे चीन से ही मंगाती हैं। बड़ी चिंता है कि दवाओं इस्तेमाल होने वाली लगभग 70 फीसदी एपीआई हम चीन से ही मंगाते हैं। इसमें रुकावट आई तो भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाएगी और निर्यात भी घटेगा। चीन के वाहन पुर्जे भी भारतीय उद्योग के लिए जरूरी हैं।

इसलिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को मजबूत कड़ी बनते देखने वाले फिर सोचें। दुनिया भर में होड़ करने के लिए लंबे समय तक धैर्य और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है। इसलिए विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा में निवेश, व्यावसायिक शिक्षा में सुधार, कारोबार सुगमता के लिए शर्तें घटाना, अप्रत्यक्ष करों में कमी करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना, निर्यात क्षेत्र में उभरती इकाइयों को समर्थन देना और सार्थक तकनीकी हस्तांतरण के साथ लगातार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना होगा।

भारत ने पहले ही ऐसा कर लिया होता तो हम होड़ कर जाते। मगर हमने ऐसा नहीं किया, इसीलिए सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 2022 तक 25 फीसदी करने के लिए 2014 में शुरू किया गया ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम कारगर नहीं रहा। अमेरिका और चीन की तनातनी से मौके मिले तो भी भारत उसका फायदा नहीं उठा पाएगा। इसीलिए सवाल यह है कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व एवं सरकारी तंत्र इस अवसर का लाभ उठाने के लिए मेहनत कर पाएंगे या नहीं।

यह पूछा जाना भी लाजिमी है कि मेहनत कौन करेगा और क्यों करेगा? इसके लिए हमारे नेताओं एवं अधिकारियों में अलग समर्पण एवं गंभीरता चाहिए और देश के लिए इसे फौरन करने का वह जज्बा होना चाहिए जैसा दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, सिंगापुर और चीन में दिखा था।


Date: 28-04-25

बैकफुट पर पाकिस्तान

संपादकीय

पाकिस्तान ने पहलगाम आतंकवादी हमले की किसी भी ‘तटस्थ और पारदर्शी’ जांच में शामिल होने की शनिवार को पेशकश की। मंगलवार को हुए इस हमले में 26 लोग मारे गए थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने खैबर पख्तुनख्वा के काकुल में पाकिस्तान सैन्य अकादमी में सेना के कैडेट्स की ‘पासिंग आउट परेड’ को संबोधित करते हुए कहा, ‘पहलगाम की हालिया घटना निरंतर दोषारोपण के खेल का एक और उदाहरण है, जिसे पूरी तरह बंद किया जाना चाहिए। जिम्मेदार देश के रूप में अपनी भूमिका को जारी रखते हुए पाकिस्तान किसी भी तटस्थ, पारदर्शी और विश्वसनीय जांच में भागीदारी करने के लिए तैयार है।’ उधर, लाहौर में संवाददाता सम्मेलन में पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने कहा कि पाकिस्तान पहलगाम हमले की गहन जांच के साथ ही पिछले महीने महीने हुई जाफर एक्सप्रेस ट्रेन अपहरण घटना और इसमें भारत की कथित संलिप्ता की जांच भी चाहता है। दरअसल, पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ताबड़तोड़ डिप्लोमेटिक कार्रवाई करके पाकिस्तान को बैकफुट पर ला दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कहा है कि हमले के दोषियों को किसी सूरत बख्शा नहीं जाएगा। इस घटना से समूचे देश में नाराजगी है, और विपक्ष भी सरकार के साथ एकजुट हो गया है। रविवार को भी अपने मासिक ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कहा कि हमले की तस्वीरें देख कर हर भारतीय का खून खोल रहा है। उन्होंने हमले के जिम्मेदार आतंकवादियों और हमले की साजिश में शामिल लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने का संकल्प दोहराया । देशवासियों और प्रधानमंत्री मोदी के तेवर से यकीनन हमले के साजिशकर्ताओं में घबराहट होगी। संभव है कि पाकिस्तान की ‘तटस्थ जांच’ में शामिल होने की पेशकश भ्रम पैदा करने का प्रयास हो । पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। शहजाब शरीफ के बयान से लगता है कि वह खुद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाक-साफ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। मुंबई हमले क नहीं भूला जा सकता। तब भी पाकिस्तान ने दावा दिया था कि उसका मुंबई हमले में कोई हाथ नहीं था, लेकिन समय ने सब कुछ उजागर कर दिया। दरअसल, पाकिस्तान की आदत हो गई है कि वह हर आतंकवादी हमले से पल्ला झाड़ लेता है, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। भारत किसी भ्रम में न पड़े और पहलगाम के पीड़ितों को त्वरित न्याय सुनिश्चित करे ।


Date: 28-04-25

पैमाना सटीक हो

संपादकीय

विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अत्यधिक गरीबी की दर 16.2% से घटकर मात्र 2.3% रह गई है। 2011 से 2022-23 दरम्यान 17.1 करोड़ आबादी को बेहद गरीब यानी 2.15 डॉलर प्रति दिन से कम खर्च करने वालों को बाहर निकाला गया है। इसे वैश्विक स्तर पर बड़ी उपलब्धि बताने के साथ ही भारत की गरीबी उन्मूलन और रोजगार क्षेत्र में प्रगति की सराहना की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी 18.4% से घट कर 2.8%, जबकि शहरी क्षेत्रों में 10.7% से घट कर 1.1% रह गई है। इससे ग्रामीण-शहरी अंतर केवल 1.7% रह गया है। रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में भारत में बेहद गरीबी में रहने वालों में पांच सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों उप्र, बिहार, महाराष्ट्र, मप्र व पश्चिम बंगाल की 65% हिस्सेदारी रही है। इसमें कामकाजी आबादी की तुलना में रोजगार वृद्धि की तेजी की बात भी की गई है। पुरुषों के शहरी इलाकों में हो रहे पलायन व महिलाओं की कृषि कार्यों में हिस्सेदारी बढ़ने की भी चर्चा है।

मानव विकास संस्थान अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार वैश्विक स्तर पर 2023 में युवा बेरोजगारी 13.3% जबकि देश में श्रम बल सर्वेक्षण की रपट कहती है कि 2023-24 में 15-29 आयु वर्ग की अनुमानित बेरोजगारी दर 10.2% थी। हालांकि इसे वैश्विक स्तर पर बहुत कम आंका जाता है। हर हाथ को काम न मिलना गरीबी का मुख्य कारण रहा है। मगर यह भी गलत नहीं कि गरीब और बेहद गरीब की परिभाषा को संदेह की नजर से देखा जाता रहा है। विडंबना ही तो है कि आज तक सरकारें इनके मानक तय नहीं कर पाई हैं क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखना होता है। वर्तमान में देश में युवा आबादी सर्वाधिक होने के कारण अमूमन परिवारों में कमाने वाले हाथ हैं। मगर व्यावसायिक शिक्षा तथा कौशल के अभाव के अतिरिक्त मुनाफाखोरों द्वारा उन्हें उचित मेहनताना नहीं दिया जाता। सामाजिक भेदभावों से लेकर आर्थिक मंदी, भ्रष्टाचार ने भी गरीबों का जीवन दुश्वार किया है। अपने यहां कृषि मजदूर बहुतायत में हैं जिन्हें समुचित पारिश्रमिक नहीं मिलता। सरकार को इन समस्याओं का तत्काल समाधान खोजना होगा। तभी उन देशवासियों को बचाया जा सकता है, जो अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने को मजबूर हैं।