
09-05-2025 (Important News Clippings)
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Caution and optimism
The FTA with the United Kingdom should not elbow out India’s farmers
Editorials
The Free Trade Agreement (FTA) between India and the United Kingdom marks a strong step towards securing India’s bilat- eral ties in an increasingly fragmented global trade environment. The key highlight for India is that 99% of its exports will attract no duties. Apart from being hailed by business leaders, in- dustry associations representing sectors such as engineering goods, apparel, and gems and jewel- lery-each among the top Indian exports to the U.K.- have expressed strong optimism for future trade growth. Engineering exports, for example, are expected to nearly double to $7.55 billion by 2029-30, according to the Engineering Exports Promotion Council of India. Overall bilateral trade is expected to double to $120 billion by 2030. The other major win is that Indian workers temporarily working in the U.K. and their em- ployers will be exempt from making social secur- ity contributions for three years. This is likely to ease the hiring of Indian workers in the U.K. The FTA also eases the movement of professionals and investors, which should go some way in re- viving India’s flagging foreign direct investment levels. On the flip side, India has agreed to cut its tariffs on 90% of the tariff lines imported from the U.K., with 85% of these to be reduced to zero tariff within a decade. While the reduction in au- tomotive tariffs is unlikely to meaningfully change the price-conscious behaviour of Indians, the slashing of import duties on whiskey and gin will increase competition in India and perhaps slow the ongoing premiumisation trend.
Although the Modi government has been quick to criticise the FTAS signed by the UPA for putting India at a disadvantage, some of its own FTAs have faced the same issue. The India-UAE CEPA (2022), for example, has seen India’s trade balance worsen over the years. The FTA with Australia, too, has not resulted in gains for Indian exports. Indian farmer organisations – opposed to the U.K. FTA since talks began – are up in arms over the reduced tariffs on lamb and salmon and other edible products. Here, too, the government must act to ensure that India’s farmers, already in a low-income, low-margin situation, are not el- bowed out. Then, there is the fact that trade ex- perts agree that the India-U.K. FTA will be the template for future agreements with the EU and the U.S. India must be careful here. While the U.K. is a relatively small trading partner, the EU and the U.S. deals – when they happen – will have a more significant impact. India has already cut import duties on several food and auto pro- ducts in line with U.S. demands. With a less than 2% contribution to global exports, Indian manu- facturing needs to be helped, not undermined.
पंजाब और पीओके सहित सिंध पर भी मोर्चा खुला
संपादकीय
पाकिस्तान ने उत्तर और पश्चिमी भारत के कई शहरों व सैन्य इकाइयों को लक्षित करके ड्रोन और प्रक्षेपास्त्रों से हमले किए। भारत सरकार ने बताया कि कोई क्षति नहीं हुई क्योंकि इन प्रक्षेपास्त्रों को आधुनिक डिफेंस सिस्टम एस-400 से हवा में ही तबाह कर दिया गया। मीडिया ब्रीफिंग में बताया गया कि जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के लाहौर स्थित एयर डिफेंस सिस्टम को ध्वस्त कर दिया गया। भारत ने इससे एक दिन पहले पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमले की बात स्वीकारते हुए कहा था कि यह कदम असैनिक स्थानों को लक्षित करके उठाया गया, जिसकी प्रकृति गैर-भड़काऊ थी। लेकिन पाकिस्तान ने नागरिक और सैन्य इकाइयों पर हमला करके भारत को पूर्ण युद्ध के लिए ललकारा है। पाकिस्तान के हमले में गुजरात का भुज भी लक्ष्य पर था, यानी इसके लिए कराची के आसपास का फौजी प्रतिष्ठान प्रयोग में लाया गया। इसका मतलब है भारत को न केवल पंजाब और पीओके बल्कि समुद्र के उस पार सिंध प्रांत पर भी मोर्चा खोलना होगा। पाकिस्तान के रवैये से साफ है कि उसने अपने आतंकी प्रतिष्ठानों पर हुए हमले को अपने पर हमला माना है, इसीलिए उसने उन स्थानों पर मिसाइलें दागीं, जहां हमारी सैन्य इकाइयां हैं। फौजी दुनिया में ऐसे सीधे हमलों को जंग की कार्रवाई माना जाता है। इसका सीधा मतलब यह है कि अब भारत के लिए भी सभी विकल्प खुले हैं।
Date: 09-05-25
सिंदूर की प्रतीकात्मकता ने स्त्रियों के मर्म को छू लिया है
नीरजा चौधरी, ( वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार )
कुछ ऐसी छवियां होती हैं, जो लोगों के दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए अंकित हो जाती हैं- और अक्सर किसी राष्ट्र के अस्तित्व के एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण को कैद कर लेती हैं। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में सिर्फ 25 हिंदू पुरुषों की ही हत्या नहीं की गई थी, बल्कि उनका धर्म जानने के बाद उनकी हत्या की गई थी।
यह हिंदू महिलाओं के ‘सुहाग’ पर भी हमला था! किसी भी हिंदू विवाहित महिला को दिया जाने वाला सबसे बड़ा आशीर्वाद आमतौर पर ‘सदा सुहागन रहो’ ही होता है।
बिहार में छठ पूजा के समय पवित्र सिंदूर माथे से लेकर नाक तक लगाया जाता है- इसे एक आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है। पश्चिम बंगाल में भी ‘सिंदूर खेला’ एक प्रसिद्ध पर्व है, जो दुर्गापूजा के अंतिम दिन मनाया जाता है।
पूरे भारत में महिलाएं सिंदूर को अपनी वैवाहिक पहचान के प्रतीक के रूप में पहचानती हैं और पति के परिवार में स्वीकृति के रूप में भी। कुछ लोग इसे पितृसत्ता के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं, लेकिन विवाहित महिलाओं के एक बड़े समूह के लिए यह उनकी मूल पहचान का प्रतीक है।
इसी सिंदूर पर आतंकवादियों ने प्रहार किया था। इसके जवाब में जब भारत द्वारा पाकिस्तान और पीओके में स्ट्राइक की गई तो उसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया। ऐसा करके भारत की सेना और सरकार ने हिंदू महिलाओं सहित पूरे देश के साथ एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव स्थापित कर लिया है।
आखिरकार, पहलगाम में आतंकवादियों ने पति के साथ उसे भी मार डालने की गुहार लगाने वाली एक महिला से कहा था कि ‘हम तुम्हें नहीं मारेंगे, तुम जाकर मोदी को बता देना।’ 25 में से अनेक विवाहित महिलाओं ने अपने पतियों को अपनी आंखों के सामने मरते हुए देखा। उनका सिंदूर- जो सबसे पहले विवाह समारोह के दौरान उनके पति द्वारा लगाया जाता है- कुछ ही क्षणों में मिटा दिया गया।
यही कारण था कि पहलगाम के बाद देश में जैसा गुस्सा था, वैसा हाल के दिनों में अन्य आतंकी हमलों के बाद नहीं देखा गया। ऐसे में ऑपरेशन सिंदूर के इस नामकरण को भारत की महिलाओं की सुरक्षा, उनके नुकसान का बदला लेने तथा दुःख की घड़ी में उनके साथ खड़े होने की शपथ के रूप में देखा जा रहा है।
लेकिन ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ पीड़ित हिंदू महिलाओं के बारे में ही नहीं था, यह भारत के विचार के बारे में भी था- जो पाकिस्तान के एक मजहबी-राष्ट्र की पहचान से अलग था। पहलगाम हमले से ठीक पहले पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने विदेश में रह रहे पाकिस्तानियों से आग्रह किया था कि वे कभी न भूलें पाकिस्तान का जन्म दो राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर हुआ था और हिंदू और मुसलमान कभी एक साथ नहीं रह सकते।
लेकिन 8 मई को जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर की अधिकृत सूचना देश को दी तो इसके लिए दो महिलाओं को चुना गया- थलसेना में कर्नल सोफिया कुरैशी और वायुसेना में विंग कमांडर व्योमिका सिंह। एक मुस्लिम और एक हिंदू थीं!
उन्हें 6 और 7 मई की दरमियानी रात को 25 मिनट तक चले भारत के सैन्य अभियान के बारे में देश और दुनिया को बताने के लिए चुना गया। उनके साथ विदेश सचिव विक्रम मिस्री भी बैठे थे, जो अधिक तथ्यात्मक और संतुलित तरीके से अपनी बात कह रहे थे।
22 अप्रैल को पहलगाम में भारत की महिलाओं के स्त्रीत्व की क्षति हुई थी! जब भारत ने उसका प्रतिशोध लिया तो ये भारत की सैन्य महिलाएं ही थीं, जो उनके साथ खड़ी नजर आई थीं- और आगे बढ़कर देश का नेतृत्व कर रही थीं।
वे यह संकेत भी दे रही थीं कि भारत एक गौरवशाली, बहुलतावादी राष्ट्र है। यह एक ऐसा विचार है, जिस पर यह देश आधारित था और जिससे इसे शक्ति मिलती है। ऑपरेशन सिंदूर- जिसने भारत की महिलाओं के विश्वासों- और शक्ति- को गहराई से छुआ है- आतंकवादियों और उनके समर्थकों को ‘बस बहुत हो गया’ का संकेत दे गया है। यह राजनीति और उसके नतीजों के बारे में बात करने का समय नहीं है, लेकिन सिंदूर की प्रतीकात्मकता से पूरे भारत में महिलाओं के मर्म को जैसे छुआ गया है, उसका प्रभाव निकट भविष्य में तो कम होने की संभावना नहीं है।
Date: 09-05-25
मानव विकास सूचकांक रैंकिंग
संपादकीय
मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के नवीनतम संस्करण में भारत की तीन पायदानों की प्रगति मामूली संतोष की वजह ही हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम अभी भी 193 देशों वाले इस सूचकांक में निचले हिस्से में ही हैं और 2022 के 133वें स्थान की जगह 2023 में हम 130वां स्थान हासिल कर सके। जैसा कि रिपोर्ट बताती है, भारत मानव विकास के मामले में मध्यम श्रेणी में बना हुआ है। परंतु इस पूरी कहानी में कुछ सकारात्मक बातें भी हैं।
एचडीआई मूल्य के 2022 के 0.676 से सुधर कर 2023 में 0.685 होने के साथ ही रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत उच्च मानव विकास के कगार पर है। उस दर्जे को हासिल करने के लिए 0.700 का एचडीआई मूल्य आवश्यक है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत का एचडीआई मूल्य सन 1990 से अब तक 53 फीसदी सुधार है। यह सुधार वैश्विक और दक्षिण एशियाई, दोनों से औसतन बेहतर है। यह पर्यवेक्षण बताता है कि कैसे भारत अधिकांश आबादी के लिए बेहतर सामाजिक-आर्थिक नतीजों के साथ अपने एचडीआई मूल्य में सुधार कर सकता है।
भारत ने जिन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की वे हैं, जीवन प्रत्याशा, जहां हम 1990 के 58.6 वर्ष से सुधरकर 2023 में 72 वर्ष पर आ गए। इसका श्रेय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान भारत और पोषण अभियान जैसे कई कार्यक्रमों को दिया जा सकता है। स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में भी सुधार हुआ है और 1990 में जहां 8.2 वर्ष तक बच्चों के स्कूल में रहने की संभावना होती थी वहीं अब यह सुधार 13 वर्ष हो चुका है। बहुआयामी गरीबी में कमी को सुधारों के वर्षों के बाद की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि माना जा सकता है। 2015-16 से 2019-21 के बीच करीब 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए। इसके बावजूद भारत एचडीआई में पड़ोसी मुल्कों से पीछे है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी चीन इस सूचकांक में 75वें स्थान पर है। श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देश क्रमश: 78वें और 127वें स्थान के साथ हमसे बेहतर हैं। बांग्लादेश 130 वें स्थान के साथ भारत की बराबरी पर है। केवल नेपाल (145), म्यांमार (149) और पाकिस्तान (168) ही हमसे पीछे हैं। ये सभी देश गहरे राजनीतिक संकट के शिकार हैं। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती असमानता और लैंगिक असमानता भारत को एचडीआई में पीछे खींच रही हैं। वास्तव में असमानता ने भारत को एचडीआई में 30.7 फीसदी पीछे किया है। यह इस क्षेत्र के सबसे बड़े नुकसान में से एक है।
एचडीआई रिपोर्ट से निकले संकेत स्पष्ट हैं। भारत को अपने सार्वजनिक अधोसंरचना क्षेत्र की आपूर्ति गुणवत्ता पर किए जाने वाले व्यय में तत्काल सुधार करने की आवश्यकता है ताकि अधिक से अधिक नागरिकों के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य पाने का अवसर हो। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम, जो बालिकाओं की शिक्षा पर केंद्रित है, ने नि:संदेह मदद की है। परंतु भारत का शिक्षा और स्वास्थ्य व्यय अभी भी काफी कम है जिससे एचडीआई और आर्थिक वृद्धि के क्षेत्र में वह बदलाव नहीं आ पा रहा है जो आना चाहिए और जो दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों तथा हॉन्गकॉन्ग, ताइवान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में आया है।
हमारा स्वास्थ्य व्यय जीडीपी के 4 और 3.7 फीसदी के बीच रहा है जो दुनिया में सबसे कम है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा से सरकार का ध्यान भटक रहा है और यह बात देश की आबादी को अनियमित और प्राय: भ्रष्ट निजी क्षेत्र के हवाले छोड़ देती है। इसी तरह शिक्षा पर सरकारी व्यय भी जीडीपी के 3 से 4 फीसदी से अधिक नहीं रहा है। यह चीन के 6.13 फीसदी की तुलना में बेहद कम है। ये कमियां जगजाहिर हैं और केंद्र तथा राज्य सरकारों को इस बढ़ते सामाजिक-आर्थिक अंतर को पाटने के लिए समुचित नीतिगत कार्रवाई करनी होगी।