08-05-2025 (Important News Clippings)

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08 May 2025
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Date: 08-05-25

Here Comes the Posterboy of FTAS

ET Editorials

India-Britain FTA, concluded earlier this week, had a lot riding on it for both countries. Britain has stitched up its most significant trade deal after Brexit, while India has signed its broadest agreement with a developed economy that can serve as a template in ongoing negotiations with the US and the EU. The pact falls short of an even more comprehensive trade and investment treaty over taxation and dispute resolution, but appears to have found a workaround for Britain’s Carbon Border Adjustment Mechanism (CBAM). This last bit is crucial in reaching an eventual deal with the EU. Indian sensitivities on protecting its farm output and enhancing social security for its migrant whi- te-collar workforce will likewise influence its talks with the US.

By swift action in bilateral agreements, India is signalling a way out of the rigidities that have set in world trade due to the rise of regional trade blocs. This provides it with an opportunity to emerge from China’s shadow in manufacturing exports. The FTA is timed just right when the US and China are trying to decouple their economies at an excessive cost to the world economy. If, as is widely anticipated, the US works out a way, later this year, to rebalance its trade with India, a less belligerent approach would be available to avert global trade fragmentation.

India’s appeal in bilateral trade is the strength of its consumption-led growth, unique currently among major economies. The economy does not need to restructure away from export-led growth, which is a consideration that makes trade negotiation knotty for its Asian peers. India is pushing its demographic advantage to forge a globalising course in a deglobalising world.


Date: 08-05-25

A step up

As India climbs up HDI rankings, rising inequality poses challenges

Editorials

A mid a disturbing rate of deceleration in global development and a growing divide between the rich and the poor, India has inched up on the Human Development Index. In the 2025 Human Development Report, ‘A Matter of Choice: People and Possibilities in the Age of Al’, released on Tuesday, India ranks 130 out of 193 countries, from 133 in 2022. It registered an HDI value increase to 0.685 in 2023 from 0.676 in 2022. Coming on the back of two debilitating pandemic years, it can be said that India’s recovery has been strong in the three fields HDI measures: “a long and healthy life, access to knowledge and a decent standard of living”. India’s life expectancy, at 72 years in 2023, is the highest level it has reached since the inception of the index in 1990 (58.6 years). Children, the report noted, are expected to stay in school for 13 years on average, up from 8.2 years in 1990; and Gross National Income per capita has risen from $2,167.22 in 1990 to $9046.76 in 2023. It gave a shout out to programmes such as MGNREGA, the Right to Education Act, the National Rural Health Mission and other initiatives for the improved status, but also sounded a word of caution about rising inequality, particularly significant income and gender disparities.

The female labour participation rate may have risen to 41.7% in 2023-24, as the Economic Survey of 2024-25 pointed out, but a stronger ecosystem needs to be built to ensure women join the work- force and are able to retain their jobs. There is a lag in political representation of women as well with no indication yet when the constitutional amendments reserving one-third of legislative seats for women will come into force. Underprivileged girls and boys still struggle to get an education, and until this anomaly is corrected, India’s HDI value will not rise. Though the report highlights that 13.5 crore (of India’s population of 144 crore) “escaped multidimensional poverty” between 2015-16 and 2019-21, income and gender inequalities have pulled down India’s HDI by 30.7%, “one of the highest losses in the region.” The thrust of the HDR this year was on AI and how human beings may benefit from it on development parameters. India, it said, has been able to retain 20% of AI researchers, up from nearly zero in 2019. Going forward, India must leverage AI to deliver on many fronts from agriculture to health care, education to public service delivery. But it is imperative that proper policy and safe guards are in place to thwart the risk that AI may deepen existing inequalities.


Date: 08-05-25

साख का सवाल

संपादकीय

न्यायाधीश यशवंत वर्मा मामले में शीर्ष न्यायालय की ओर से नियुक्त तीन न्यायाधीशों की जांच समिति का निष्कर्ष बेहद गंभीर है। समिति की जांच रपट से उजागर तस्वीर चिंताजनक है। गौरतलब है कि आरोपी न्यायाधीश ने अपने ऊपर लगे आरोपों को षड्यंत्र बताया था, लेकिन जांच समिति ने गहन छानबीन के बाद उन सभी आरोपों की पुष्टि कर दी है। साथ ही, प्रधान न्यायाधीश ने उन्हें पद छोड़ने को कह दिया है। अब इस प्रकरण को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इसमें कोई दोराय नहीं कि अगर किसी मामले में जजों पर उंगली उठे तो त्वरित कार्रवाई न्यायपालिका की साख के लिए आवश्यक है। न्यायाधीश वर्मा के घर में आग लगने के बाद वहां से जली हुई नोटों की गड्डियां मिलने पर शीर्ष न्यायालय ने मामले को गंभीरता से लिया था । उससे उम्मीद बंधी थी कि इसमें पारदर्शिता के साथ कदम उठाए जाएंगे। दरअसल, बीते मार्च में दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश वर्मा के सरकारी निवास पर आग लगी थी, जिसे बुझाते वक्त वहां भारी मात्रा में नकदी मिली थी। इस पर उनसे जवाब तलब किया गया, तो उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार कर दिया था। प्रारंभिक जांच के बाद उनसे न्यायिक कार्य वापस लेकर उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया था।

इस प्रकरण में जांच शुरू होने और जांच समिति का निष्कर्ष आने तक पूरे घटनाक्रम पर शीर्ष न्यायालय ने अपनी नजर बनाए रखी। इस मामले में उसका कड़ा रुख था । समिति को तार्किक नतीजे पर पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है। उसने इस मामले से संबंधित सभी लोगों से पूछताछ की और तमाम साक्ष्यों का विश्लेषण किया। इसके बाद कुछ छिपा नहीं रह गया। अंततः समिति ने न्यायाधीश पर लगे आरोपों को सही बताया। जब भी किसी न्यायाधीश पर भ्रष्ट आचरण का आरोप लगता है, तो उससे आम आदमी का न्याय प्रणाली से भरोसा डगमगाने लगता है। इसलिए ऐसे मामलों की न केवल तुरंत पारदर्शी जांच, बल्कि उचित कार्रवाई की अपेक्षा भी की जाती है। जांच समिति की रपट के बाद उम्मीद बनी है कि न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ त्वरित, उचित और मिसाल बनने लायक निर्णय होगा ।


Date: 08-05-25

जानलेवा बन रही अव्वल आने की होड़

ललित गर्ग

टॉपर संस्कृति के दबाव और अव्वल आने की होड़ में छात्रों द्वारा तनाव, अवसाद, कुंठा में आत्महत्या कर लेना गंभीर समस्या है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी छात्र प्रतिभाएं आसमानी उम्मीदों, टॉपर संस्कृति के दबाव और शिक्षा तंत्र की विसंगतियों के चलते आत्मघात की शिकार हो रही हैं। हाल में छात्रों की लगातार दुखद मौतें जहां शिक्षा प्रणाली में अतिश्योक्तिपूर्ण प्रतिस्पर्धा पर प्रश्न खड़े करती है, वहीं विचलित भी करती हैं।

निश्चित रूप से छात्र-छात्राओं के लिए घातक साबित हो रही टॉपर्स संस्कृति में बदलाव लाने के लिए नीतिगत फैसलों की सख्त जरूरत है। राजस्थान सरकार की ओर से प्रस्तावित कोचिंग संस्थान (नियंत्रण एवं विनियमन) विधेयक इस दिशा में बदलावकारी साबित हो सकता है। लेकिन केंद्र सरकार को भी ऐसे ही कदम उठाने होंगे ताकि छात्रों में आत्महत्या की समस्या के दिन-पर-दिन विकराल होते जाने पर अंकुश लग सके। दुखद ही है कि सुनहरे सपने पूरा करने का ख्वाब लेकर कोटा गए चौदह छात्रों ने इस साल आत्महत्याएं कीं।

विडंबना यह है कि बार-बार चेतावनी देने के बावजूद कोचिंग संस्थानों के संरचनात्मक दबाव, उच्च दांव वाली परीक्षाओं, गलाकाट स्पर्धा, दोषपूर्ण कोचिंग प्रथाएं और सफलता की गारंटी के दावों का सिलसिला थमा नहीं है । यही वजह है कि हाल में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी सीसीपीए ने कई कोचिंग संस्थानों को भ्रामक विज्ञापनों और अनुचित व्यापारिक प्रथाओं के चलते नोटिस दिए हैं। दरअसल, कई कोचिंग संस्थान जमीनी हकीकत के विपरीत शीर्ष रैंक दिलाने और चयन की गारंटी देने के थोथे एवं लुभावने वादे करते रहते हैं । निस्संदेह, ऐसे खोखले दावे अक्सर कमजोर छात्रों और चिंतित अभिभावकों के लिए घातक चक्रव्यूह बन जाते हैं। छात्रों को अनावश्यक प्रतिस्पर्धा के लिए बाध्य करना और योग्यता को अंकों के जरिए रैंकिंग से जोड़ना कालांतर में अन्य छात्रों को भी निराशा के भंवर में फंसा देता है। वास्तव में सरकार को ऐसा पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित करना चाहिए जो विभिन्न क्षेत्रों में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए पर्याप्त संख्या में रोजगार अवसर पैदा कर सके।

आत्महत्या शब्द जीवन से पलायन का डरावना सत्य है, जो दिल को दहलाता है, डराता है, खौफ पैदा करता है, दर्द देता है। वैसे छात्रों की आत्महत्या कोई नई बात नहीं है, ऐसी खबरें हर कुछ समय बाद आती रहती हैं। रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले एक दशक में कोचिंग संस्थानों में ही नहीं, आईआईटी जैसे संस्थानों में भी 52 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। यह संख्या इतनी छोटी भी नहीं कि ऐसे मामलों को अपवाद मान कर नजरअंदाज कर दिया जाए। बेशक, ऐसे हर मामले में अवसाद का कारण कुछ अलग रहा होगा, वे अलग-अलग तरह के दबाव होंगे, जिनके कारण ये छात्र-छात्राएं आत्महत्या के लिए बाध्य हुए होंगे। शैक्षणिक दबावों के चलते छात्रों में आत्महंता होने की घातक प्रवृत्ति का तेजी से बढ़ना हमारे नीति-निर्माताओं के लिए चिंता का कारण बनना चाहिए। क्या विकास के लंबे-चौड़े दावे करने वाली सरकार ने इसके बारे में कभी सोचा ?

विचित्र है कि जो देश दुनिया भर में अपनी संतुलित जीवनशैली एवं अहिंसा के लिए जाना जाता है, वहां के शिक्षा-संस्थानों में हिंसा का भाव पनपना एवं छात्रों के आत्महंता होते जाने की प्रवृत्ति का बढ़ना अनेक प्रश्नों को खड़ा कर रहा है लेकिन क्या कुछ सार्थक पहल होगी ? जरूरी है कि कोचिंग संस्थान अपनी कार्यशैली एवं परिवेश में आमूल-चूल परिर्वतन करें ताकि छात्रों पर बढ़ते दबावों को खत्म किया जा सके। फिलहाल, जरूरी यह भी है कि इन संस्थानों में ऐसा तंत्र विकसित किया जाए जो निराश, हताश और अवसादग्रस्त छात्रों के लगातार संपर्क में रह कर उनमें आशा का संचार कर सके। आज रोजगार के अवसर लगभग समाप्त हैं। ग्रेजुएशन कर चुकने वाला छात्र किसी दफ्तर में ही अपने लिए संभावनाएं तलाशता है, लेकिन नौकरी नहीं मिलती। बेरोजगारी अवसाद की ओर ले जाती है, और अवसाद आत्महत्या में त्राण पाता है। कोचिंग संस्थानों एवं शिक्षा के उच्च संस्थान में अवसाद पसरा है और उसके कारण छात्र यदि आत्महत्या करते हैं, तो यह उच्च शैक्षणिक संस्थानों एवं कोचिंग संस्थानों के भाल पर बदनुमा दाग है। माना जाता है कि देश की प्रखर प्रतिभाएं कोचिंग संस्थानों में पहुंचती हैं, जहां आत्महत्या की लगातार खबरें यह तो बताती ही हैं कि कोचिंग संस्थानों में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा । जरूरी है कि कोचिंग संस्थान अपनी कार्यशैली एवं परिवेश में आमूल-चूल परिर्वतन करें। जब छात्रों में अव्वल आने की मनोवृत्ति, कॅरिअर एवं ‘बी नम्बर वन’ की दौड़ सिर पर सवार होती है, और उसे पूरा करने के लिए छात्र साधन, क्षमता, योग्यता एवं परिस्थितियां नहीं जुटा पाते तो कुंठित, तनावग्रस्त एवं अवसादग्रस्त हो जाते हैं, ऐसे व्यक्ति को अंतिम समाधान आत्महत्या में ही दिखता है।


Date: 08-05-25

आतंक पर निशाना

संपादकीय

पहलगाम आतंकी हमले से मिले जख्मों पर ऑपरेशन सिंदूर ने जो मरहम लगाया है, उसकी सराहना स्वाभाविक और आवश्यक है। पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के नौ ठिकानों पर भारतीय सेनाओं का हमला वास्तव में दुनिया को यह पैगाम है कि भारत दहशतगर्दी को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत ने आधिकारिक रूप से स्पष्ट कर दिया है कि उसके निशाने पर पाकिस्तानी सेना, उसके सैन्य प्रतिष्ठान और नागरिक नहीं थे, केवल दहशतगर्दी को निशाने पर लिया गया है। भारत के पास पूरी खुफिया जानकारी थी कि निशाने पर आए नौ ठिकानों पर आतंकी पाले जा रहे हैं। जिस तरह से कुख्यात दहशतगर्द अजहर मसूद के दस से ज्यादा परिजन मारे गए हैं, उससे भी पता चलता है कि भारत का निशाना गलत नहीं था। हां, यह कसर रह गई कि मसूद बच गया। भारत भूला नहीं है कि कंधार में भारतीय विमान व यात्रियों को छुड़ाने के लिए जिन भारत विरोधी आतंकियों को साल 1999 में भारतीय कैद से रिहा करना पड़ा था, उनमें मसूद भी शामिल था। मसूद जैसे अनगिनत आतंकियों को पाकिस्तानी सेना अपनी गोद में छिपाए हुए है और जिन्हें खत्म किए बिना भारत में अमन-चैन मुश्किल है।

अव्वल तो ऑपरेशन सिंदूर के पूरे भाव को समझने की जरूरत है । इस अभियान के नाम में ही देश का दर्द छिपा है। इतिहास में दर्ज है कि पहलगाम में केवल मर्दों को मारा गया था और औरतों का सिंदूर मिटाया गया था। अतः ऑपरेशन सिंदूर नाम सुचिंतित और प्रभावी है। इतना ही नहीं, सैन्य अभियान के बाद भारत की ओर से दुनिया को सूचित करने के लिए दो महिला सैन्य अधिकारियों को आगे करने की भी सराहना हो रही है। भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के पूरे कलेवर तेवर से पता चलता है कि पिछले लगभग दो सप्ताह से कैसी सकारात्मक तैयारी चल रही थी। भारत ने हथियार उठाते हुए भी यही संदेश दिया है कि आतंकियों की खैर नहीं। भारत की दुश्मनी पाकिस्तान के लोगों से नहीं है, सिर्फ आतंकियों से है। दुनिया में दूसरे भी देश हैं, जो अगर किसी से बदला लेते हैं, तो इतनी तैयारी या चिंता नहीं करते। भारत ने मिसाइलों की वर्षा करते हुए भी यह सुनिश्चित किया है कि प्रहार आतंकी ठिकानों तक सीमित रहे। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे भारत विरोधी आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से मदद मिल रही है। यह बात पूरी दुनिया जानती है, पर ज्यादातर देशों की अनजान बने रहने की पुरानी और शर्मनाक आदत है। खासकर तुर्किये जिस तरह पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हुआ है, यह दरअसल वही शुतुरमुर्गी मुद्रा है, जिसकी वजह से दुनिया में दहशतगर्दी का खात्मा नहीं हो रहा है। भारतीय राजनय के लिए बड़ी चुनौती है कि वह ऐसे शुतुरमुर्गी रवैये को भी निशाने पर रखे ।

पाकिस्तान की पुरानी हिंसक प्रवृत्ति है, वह संघर्ष को बढ़ाना चाहता है। उसकी नीति शुरू से ही मजहबी बंटवारे की रही है। पाकिस्तान ने हमले की सूचना देते हुए जिस तरह से बार-बार मस्जिदों को निशाना बनाने की बात कही है, उसकी जितनी निंदा की जाए कम है। भारत ने आतंकी ठिकानों और उनके मदरसों को निशाना बनाया है, इसमें कोई संदेह नहीं है। सांप्रदायिकता की आग सुलगाए रखने की पाकिस्तानी साजिश के झांसे में किसी को नहीं फंसना चाहिए। यह समय उन आतंकियों को निशाने पर लेने का है, जिनकी वजह से किसी मजहब पर बार-बार उंगलियां उठती हैं। भारत का संघर्ष बुराई व असत्य से है और हमारे सघर्ष में कतई ढिलाई नहीं आनी चाहिए।


Date: 08-05-25

एकीकृत सैन्य कमान और एकजुटता का कमाल

मोहन भंडारी, ( लेफ्टिनेंट जनरल रिटायर्ड  )

सैन्य अभियान ‘सिंदूर’ भारतीय एकीकृत सैन्य कमान व देश की एकजुटता का अनुपम प्रमाण है। आतंकियों को निशाना बनाने की सैन्य कार्रवाई में जैसी एकीकृत कमान की तैयारी दिखी है, वह सराहनीय है। तीनों सेनाओं के बीच समन्वय बेहतरीन है। सिंदूर अभियान को खासतौर से थल सेना व वायु सेना ने मिलकर अंजाम दिया है और जरूरत पड़ी तो नौसेना भी पूरी ताकत के साथ तैयार है।

दरअसल, हमने पिछले अनुभवों से सीखते हुए इस अभियान को पूरी तैयारी के साथ अंजाम दिया है। यहां यह याद करना जरूरी है कि कारगिल युद्ध के दौरान थोड़ी कमी देखी गई थी । थल सेना और वायु सेना में कुछ बातों पर सहमति नहीं बन पाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी कमी को दूर करने के लिए टी सुब्रमण्यम के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था । टी सुब्रमण्यम मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर के पिता थे। उस समिति में दो महीने मैं भी बोलता रहा। पूरे विचार- विमर्श के बाद सुब्रमण्यम समिति ने कहा था कि भविष्य में जो भी सैन्य अभियान होंगे, उनमें तीनों सेनाएं एक एकीकृत कमान के तहत काम करेंगी। आज आप उस अच्छे फैसले का कमाल देखिए। हमारी तीनों सेनाएं कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। इतिहास गवाह है, कारगिल युद्ध 1999 के बाद चीफ ऑफ डीफेंस स्टाफ की परिकल्पना साकार हुई। आज चीफ ऑफ डीफेंस स्टाफ सीधे प्रधानमंत्री के सलाहकार हैं। उनके बाद नौसेना, थल सेना और वायु सेना के प्रमुख हैं।

जहां एक ओर, एकीकृत कमान का हमें लाभ मिला है, वहीं आज देश की एकजुटता देखने लायक है। देश अपनी सेनाओं के साथ हमेशा खड़ा है। जब भी देश पर मुसीबत आई है, लोगों ने आगे बढ़कर मदद की है । हमारी माओं ने देश की रक्षा के लिए अपने बेटे ही नहीं दिए, अपने आभूषण भी दान किए। आम दिनों में राजनीतिक विपक्ष भले आलोचना करता रहा हो, पर आज उसने खुलेआम बोल दिया है कि हम अपनी सशस्त्र सेनाओं की कार्रवाई का पूरा समर्थन करते हैं और करते रहेंगे। सेना के प्रति आम भारतीयों में बहुत सम्मान है। सेना को कहीं भी तकलीफ होती है, लोगों को बहुत बुरा लगता है। देश की राजनीतिक और सामाजिक एकता को मजबूत रखने का यह समय है, ताकि हमारी एकजुट और एकीकृत कार्रवाई अपने लक्ष्य तक पहुंचे।

आतंकवाद से डरने की कोई जरूरत नहीं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि जब देश आजाद हुआ था, तब से ही हम इससे मोर्चा लेते रहे हैं। तब आतंकवादी कबायलियों की आड़ में पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने का अभियान छेड़ा था और उसका मुंहतोड़ जवाब देकर हमने कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा बचाया था। हां, पिछले लगभग चार दशक से हम आतंकवाद को ज्यादा झेल रहे हैं। हमारी भलमनसाहत का दुश्मन गलत फायदा उठा रहा था । अतः हम चुप नहीं बैठ सकते, यह आतंकवाद की कमर तोड़ने का समय है और सिंदूर अभियान की जितनी सराहना की जाए, कम होगी। हमारी सेनाओं ने बिल्कुल निशाने पर प्रहार किया है। इस बात को समझना चाहिए कि पाकिस्तान हमसे सीधे लड़ने में सक्षम नहीं है, इसलिए वह हमारे खिलाफ आतंकवाद का सहारा लेता है। पाकिस्तान की आजादी के बाद से वहां के फौजी आतंकियों पर निर्भर रहे हैं और उन्हें अपने फायदे के लिए पाला है। इनकी धूर्तता पुरानी है। साल 1960 में सिंधु नदी जल समझौते के समय भी पाकिस्तान ने यह वायदा किया था कि हमें पानी दे दीजिए, उसके बाद हम जम्मू-कश्मीर के मसले को हल कर लेंगे। हमने उसे 80 प्रतिशत पानी पर अधिकार दे दिया था, लेकिन आज जब उसे हमारी भलमनसाहत की कद्र नहीं है, तो हमें मात्र 20 प्रतिशत पानी से संतोष नहीं करना चाहिए। यह अच्छी बात है कि हमारी सरकार इस दिशा में बिल्कुल सही कदम उठा रही है। हमें अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने का पूरा हक है।

ध्यान रहे, आतंकवाद से मुक्ति के लिए पूरे देश और समाज को एकजुट होकर काम करना होगा। एकजुटता से ही समाधान हासिल होगा। आज भारत के एक ही नेता हमारे प्रधानमंत्री हैं और वह देश के व्यापक हित में जो कार्य कर रहे हैं, उनके हर काम का आप समर्थन कीजिए। कोई भी गलत काम न कीजिए। यह सद्भाव और सावधान रहने का समय है।