
29-04-2025 (Important News Clippings)
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Date: 29-04-25
Money Unspent is Welfare Denied
ET Editorial
New data from the social justice and empowerment ministry reveal that nearly 25% of funds allocated for welfare of scheduled castes by central ministries under Development Action Plan for Scheduled Castes (DAPSC) in 2024-25 has gone unutilised. What applies for much of India’s public expenditure clearly applies for this category. Budget documents and CAG reports highlight consistent underutilisation of funds. Money unspent is welfare denied. It’s time to reassess ways in which funds can be used for maximum impact, rather than tinkering on the margins.
The 39 Gol ministries and departments are required to earmark 2-20% of the total outlay for SC/ST welfare. Funds cannot be used for generic programmes that ‘also benefit’ SC populations. Ministries often have difficulty identifying targeted schemes. Suggestions by NITI Aayog for conditional cash transfers to targeted SC households have not found favour, while transferring unutilised funds to nodal ministries for SC/ST welfare have raised concerns. It all smells of scattershot allocation and management.
In 2024-25, the allocated amount was 1.66 lakh cr. Instead of individual ministries funding or developing targeted schemes, the money could be treated as a grant, contribution orguarantee. Each central ministry would use the earmarked sum to fund programmes and schemes, developed by the ministry for social justice, focused on enabling economic mobility and delivering social welfare. These programmes/schemes.could range from seed money for SC-run innovative businesses, education grants, investment in healthcare in unserved/underserved areas with high SC population. This will minimise duplication, widen the pool of beneficiaries, and lead to better assessment of programme deliverables.
Date: 29-04-25
सिंधु जल समझौते पर हमारा रुख उचित है
संपादकीय
चीन ने डोकलाम झड़प के तत्काल बाद ऊपरी ब्रह्मपुत्र जलप्रवाह का ब्योरा देना बंद कर दिया था, जिससे असम में तबाही आई । हिमालय में किसी भी निर्माण कार्य से भारत में भूकंप, बाढ़ और जमीन धसकने जैसी आपदाएं आ सकती हैं। लेकिन भारत के तमाम विरोधों के बावजूद स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर ब्रह्मपुत्र पर चीन दुनिया का सबसे बड़ा और भारत के कुल पन – बिजली उत्पादन से सवा गुना बड़ा हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्लांट (60 हजार मेगावॉट) बना रहा है। राष्ट्रीय हित-रक्षा के नाम पर अमेरिका 2002 में एबीएम संधि और 2019 में आईएनएफ संधि से एकतरफा बाहर हो गया। वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 60 में ऐसी संधियों से राष्ट्रहित में बाहर होने का प्रावधान है। लिहाजा अगर भारत पाक साजिशों से लगातार लहूलुहान होने पर सिंधु जल समझौते को मुल्तवी करता है तो क्या गलत है? यह समझौता एक कमजोर, आर्थिक रूप से विपन्न और अनाज से महरूम भारत द्वारा किया गया था, लिहाजा इससे निकलना या नई शर्तों पर पानी देना भारत की प्राथमिकता और पाकिस्तान की मजबूरी होगी । अगर चीन जल-प्रवाह में नीचे स्थित देशों से पानी साझा करने के समझौते से इनकार कर सकता है तो भारत क्यों नहीं? बंटवारे में अंग्रेजों ने पाकिस्तान को पंजाब और सिंध के उपजाऊ भूभाग दे दिए थे, जिससे भारत में अनाज की कमी हुई और तीन दशक उससे उबरने में लगे।
Date: 29-04-25
ऐतिहासिक संशोधन
संपादकीय
नये पाठ्यक्रम के लिए जारी की गई एनसीआरटी की पाठ्यपुस्तकों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति व स्कूली के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के तौर पर तैयार की गई हैं। इनमें मुगलों व दिल्ली सल्तनत के सभी संदर्भ गायब हैं। अब से पहले तक तुगलक, खिलजी, लोदी आदि का विस्तृत वर्णन व मुगलों की उपलब्धियां पाठ्यक्रम में जारी थीं, जबकि अब भारतीय राजवंशों, महाकुंभ, मेक इन इंडिया व बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी सरकारी योजनाओं का जिक्र है। भारतीय परंपराओं, दर्शन, ज्ञान प्रणाली व स्थानीय संदर्भों को शामिल किया गया है। इतिहासकार व विद्वान सरकार के इस निर्णय को भारत के इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वाला ठहराते हुए काफी आलोचना कर चुके हैं। इन बदलावों को राजनीतिक रूप से पक्षपाती व शैक्षणिक रूप से अक्षम कहना गलत नहीं है। प्राचीन हिन्दू इतिहास व वैदिककाल को मुगल इतिहास पर तवज्जो देना, सोची-समझी रणनीति है । ये संशोधन न सिर्फ इतिहास को विकृत करने की चेष्टा है बल्कि इतिहास के मिथ्याकरण को महिमामंडित करना भी है। इतिहास सिर्फ इतिहास होता है। उसे अपनी विचारधारा के अनुरूप पक्ष या खिलाफ के खांचों में विभक्त कर नहीं परखा जा सकता । अतीत में हुई पूर्वजों की सफलताएं- असफलताएं सीख देने वाली हो सकती हैं। उनके विषय में विमर्श या उस वक्त की जटिलताओं को समझने की जरूरत है। न कि ऐतिहासिक अखंडता को छिन्न-भिन्न करते हुए पूर्वाग्रहीत विचारधारा को प्रस्तुत करने का प्रयास उचित कहा जा सकता है। छात्रों को दिया जाने वाला ऐतिहासिक ज्ञान गूढ व सटीक होना चाहिए। जिस पर किसी तरह का राजनीतिक प्रभाव न हो। न ही उसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाए। न दुराव- छिपाव का प्रयास हो। क्योंकि यह छात्रों को दिग्भ्रमित ज्यादा करेगा। हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, इसका खास ख्याल रखे जाने की जरूरत है। बेहतर हो कि इतिहासकार, शिक्षाविद, विशेषज्ञों व अनुभवी विचारकों को संतुलित व पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर पाठ्यक्रम तैयार करने दिया जाए। निःसंदेह भारतीय संस्कृति और प्राचीन सभ्यता से छात्रों को परिचित कराना जरूरी है। विदेशी आक्रमणकारियों या शासकों का गुणगान किए बगैर भी संतुलित तरीके से यह संशोधन संभव हो सकता है।