05-08-2023 (Important News Clippings)

Afeias
05 Aug 2023
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Date:05-08-23

Bin This Law

SC’s Rahul call reminds why we must decriminalise defamation

TOI Editorials

When a Surat court convicted Rahul Gandhi for criminal defamation for a remark made four years earlier, it also gave him the maximum sentence of two years, which set off his disqualification from Lok Sabha. In staying this conviction yesterday, the Supreme Court made piercing observations that in showing how much the criminal defamation provision had been abused in this case, further showed that the law needs to be binned altogether.

Despite knowing that it would affect not just the right of one individual but the rights of an entire constituency, the “learned trial judge” imposed the maximum punishment without giving any reason for doing so. Had the sentence been a day lesser, there would have been no Representation of the People Act fallout. But this is the cruel norm, the defamation law’s colonial sting is worsened by sluggish and/or arbitrary judicial processes. Its ambiguous wording means it can be weaponised to punish the widest variety of speech acts, from political dissent to humour and satire. Unlike in the past, SC must not pass the next opportunity to strike down this law.

Defamation as a civil action is of course valuable, it represents a reasonable check. As the court said, Rahul needs to be more careful in future. With election temperatures rising higher and higher, so do the other political leaders. Meanwhile, this is a moment of cheer for Congress. It adds to the party’s campaign and Parliament energy. The interesting question is how INDIA non-Congress stalwarts will see Rahul back as a 2024 contestant, because Congress for sure will de facto at least want Rahul as the opposition’s main leader.


Date:05-08-23

Incremental injustice

motivated cases for altering status of places of worship must be discouraged

Editorial

In upholding the conduct of a survey by the Archaeological Survey of India (ASI) at the Gyanvapi mosque, the Allahabad High Court may have endorsed a surreptitious attempt to alter the character of the place of worship. Both the High Court and the Varanasi District Court, which ordered the ASI survey on July 21, had held earlier that the suit filed by some Hindu devotees to assert their right to worship some deities and images within the mosque precincts was not barred by the Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991, which froze the status of all places of worship as on August 15, 1947. The reason given was that the suit was solely for the right to worship and not to seek any declaration that the building was a temple. In brazen contradiction to this stand, the worshippers filed applications seeking a scientific survey by archaeologists to ascertain whether the Gyanvapi mosque was built on the demolished structure of a Hindu temple. Both courts have endorsed this strategy of gathering official evidence, currently not available to the plaintiffs, through the ASI. The District Court’s order merely said a scientific report would bring out the “true facts” about this case and help it arrive at a just and reasonable conclusion. The High Court has dismissed all objections, including the ones that said the court cannot ask for expert evidence even before the issues to be tried were framed, and that it cannot gather evidence on behalf of the plaintiffs.

The courts have not dealt with the question why it is necessary to determine the date of pillars and walls and make a list of artefacts, when the main prayer in the suit is for the right to worship Ma Sringar Gauri, Ganesh, Hanuman and other “visible and invisible” deities. The entire case is based on the assertion that Hindu deities were being worshipped at the site before and after August 15, 1947. And that daily worship of these deities was going on till 1990, and that after 1993, it is permitted one day every year. The plea for a survey and the intent to rake up the question of an earlier structure under the mosque indicate a design to create conditions for seeking an alteration to its status. An earlier order asking an Advocate-Commissioner to study the premises led to a claim that what was likely a sprinkler or fountain was a ‘shivalingam’. It is unfortunate that the courts are encouraging motivated litigation directed at Muslim places of worship. Each time such an application is filed, it raises the spectre of incremental injustice from an abuse of the legal process.


Date:05-08-23

रोजगार को लेकर निराशा का भाव अच्छा नहीं है

संपादकीय

सीएमआई की रिपोर्ट के अनुसार देश में काम करने की आयु (15-55 साल) के लोगों में केवल 39.5% ही अपने को काम के लिए प्रस्तुत करते हैं यानी जॉब मार्केट में आते हैं जबकि बाकी यह मानकर कि नौकरी या काम नहीं मिलेगा, उसकी तलाश से दूर हो दूसरों के ऊपर आश्रित हो जाते हैं। अर्थशास्त्र की दुनिया में इसे लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट कहते हैं। भारत में सन् 2016-17 के बाद से यह सबसे नीचे है। दरअसल इसी से बेरोजगारी दर निकाली जाती है। यह दर उन लोगों की होती है, जिन्हें तलाशने और जॉब मार्केट में उपलब्ध रहने के बावजूद काम नहीं मिलता। यह अलग बात है कि यह बेरोजगारी की स्थिति का सही आकलन नहीं बताती है क्योंकि जो लोग निराश होकर बैठ गए हैं, उन्हें भी अगर काम की गारंटी मिले तो वे तत्काल सामने आएंगे और तब असली बेरोजगारी दर में भारी वृद्धि नजर आएगी। किसी भी विकासशील देश के लिए लोगों में ऐसा नैराश्य भाव अच्छा नहीं माना जाता । यह मनोदशा तब होती है। जब लम्बे समय तक काम की तलाश में असफल होने के बाद इस आयु वर्ग के लोग काम तलाशना बंद कर देते हैं। जाहिर है वे ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खासकर परिवार पर बोझ बनाते हैं। इसके अलावा महिलाओं की भागीदारी भी लगातार घटी है।


Date:05-08-23

सॉफ्ट स्किल्स की मदद से चढ़ें सफलता की सीढ़ियां

पंकज बंसल, ( डिजिटल रिक्रूटमेंट प्लेटफॉर्म और वर्क यूनिवर्स के सह-संस्थापक )

आज के प्रतिस्पर्धात्मक जॉब-मार्केट में उम्मीदवारों के पास एक जैसी तकनीकी स्किल्स और शैक्षिक पात्रताएं होती हैं, ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि उम्मीदवार अपनी सॉफ्ट स्किल्स पर फोकस करते हुए पसंदीदा काम पाएं। इसमें संदेह नहीं कि अकादमिक उपलब्धियों और तकनीकी कुशलता का महत्व बहुत ज्यादा है, लेकिन एक व्यक्ति को दूसरे से जो चीज अलग बनाती है, वह है उसके विशिष्ट निजी गुण। एक रिसर्च के मुताबिक 85% पेशेवर सफलता में सॉफ्ट स्किल्स का योगदान होता है। टेक्निकल क्षमताओं और डोमेन नॉलेज के साथ ही कम्पनियां कम्युनिकेशन स्किल्स, टीमवर्क, सेल्फ-मोटिवेशन और सीखने की क्षमताओं को भी बहुत महत्व देती हैं। सॉफ्ट स्किल्स का मतलब है आपके व्यक्तित्व और चरित्र की वो विशिष्टताएं, जो आपको अधिक प्रभावी तरीके से और अधिक सामंजस्य के साथ काम करने में सक्षम बनाती हैं। सॉफ्ट स्किल्स की कोई निश्चित सूची तो नहीं है, लेकिन अगर कुछ का नाम लेना चाहें तो वो होंगी- प्रभावी कम्युनिकेशन, सहभागिता, समय-प्रबंधन, टीमवर्क, नेतृत्व-क्षमता और समस्याओं को सुलझाने वाला रवैया।

द इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2023 यह रेखांकित करती है कि एक सफल करियर में क्रिटिकल थिंकिंग, इमोशनल इंटेलीजेंस और रचनात्मकता का केंद्रीय योगदान होता है। ये स्किल्स हमें वर्कफोर्स की बढ़ती चुनौतियों के बीच अधिक समायोजन में सक्षम बनाती हैं। आप अपने करियर के चाहे जिस मुकाम पर खड़े हों, आपके लिए सॉफ्ट स्किल्स के महत्व को समझना जरूरी है। क्योंकि कामकाज के मौजूदा इंटरकनेक्टेड और सक्रियतापूर्ण माहौल में सहभागिता सबसे जरूरी गुण बन गई है। कम्पनियां उन कर्मचारियों के महत्व को समझती हैं, जो दूसरों के साथ आसानी से काम कर पाते हैं, खासतौर पर रिमोट और हाइब्रिड माहौल में। टीमवर्क, एडाप्टेबिलिटी और समस्याओं को सुलझाने वाली सकारात्मक एप्रोच से आप तेजी से तरक्की कर सकते हैं। अगर आप टीम-भावना से काम करते हैं तो आप में न केवल अपने सहकर्मियों की क्षमताओं के बारे में एक बेहतरीन समझ बनती है, बल्कि आप उनके साथ सक्रियतापूर्वक सहभागिता भी कर पाते हैं।

आपमें चाहे जितनी तकनीकी क्षमताएं हों, लेकिन सहभागिता और लचीलेपन के गुणों के चलते ही आप बेहतर योगदान दे पाते हैं। किसी ऐसी टीम के बारे में कल्पना कीजिए, जिसमें सभी सदस्य एक-दूसरे की बातों को ध्यान से सुनते हों और खुलकर अपने विचारों को साझा करते हों। तब वे समस्याओं का भी मिलजुलकर सामना करने की क्षमता रखते हैं। सामंजस्य से परस्पर-विश्वास और समझ की भावना विकसित होती है। इससे आप एक ऐसा माहौल बना सकते हैं, जिसमें हर व्यक्ति अपनी कल्पनाशीलता का उपयोग करते हुए उत्साह के साथ काम में अपना योगदान दे सके। ग्राहकों को बेहतरीन सेवाएं मुहैया कराने में भी सॉफ्ट स्किल्स का बड़ा योगदान होता है। अगर आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स प्रभावी हैं तो आप न केवल अपने ग्राहकों की बातों को अच्छी तरह से सुनकर उनकी जरूरतों को समझ सकते हैं, बल्कि उन्हें सार्थक समाधान भी दे सकते हैं। मैत्रीपूर्ण व्यवहार से आप अपने ग्राहकों के साथ एक सशक्त सम्बंध बना पाते हैं, इससे उन्हें यह महसूस होता है कि उनकी वैल्यू की जा रही है। अपनी प्रॉब्लम-सॉल्विंग एप्रोच से आप अपने ग्राहकों के संतोष को बढ़ा सकते हैं।

वास्तव में करियर में सफलता के लिए हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स का सही संतुलन बेहद जरूरी है। हार्ड स्किल्स से आपकी बुनियाद मजबूत होती है तो सॉफ्ट स्किल्स से आप अपने नॉलेज और विशेषज्ञता का कहीं बेहतर लाभ ले सकते हैं। सॉफ्ट स्किल्स की मदद से आप नेटवर्किंग के क्षेत्र में भी अच्छा काम कर सकते हैं और अपने भविष्य की संभावनाओं को उज्जवल बना सकते हैं। अगर आप कोई प्रोफेशनल कॉन्फ्रेंस अटेंड कर रहे हैं तो अपनी सॉफ्ट स्किल्स की मदद से आप एक सार्थक संवाद कर सकते हैं और अपने लिए अवसरों की नई राह खोल सकते हैं। एम्पैथी और इमोशनल इंटेलीजेंस जैसी सॉफ्ट स्किल्स एक समावेशी-कार्यस्थल के निर्माण के लिए भी केंद्रीय महत्व की होती हैं, जिससे आप अपने सहकर्मियों की क्षमताओं का अधिक से अधिक उपयोग कर पाते हैं। एक ऐसी टीम मीटिंग की कल्पना करें, जिसमें कोई नया कर्मचारी किसी गैर परंपरागत विचार को सामने रखता है। अगर आप में एम्पैथी-स्किल्स हैं तो आप ध्यान से उसकी बातें सुनेंगे, उसकी नवोन्मेषी सोच की सराहना करेंगे और उसे प्रोत्साहित करेंगे। एक सफल करियर में क्रिटिकल थिंकिंग, इमोशनल इंटेलीजेंस और रचनात्मकता का केंद्रीय योगदान होता है। ये स्किल्स हमें वर्कफोर्स की बढ़ती चुनौतियों के बीच अधिक समायोजन में सक्षम बनाती हैं। सॉफ्ट स्किल्स के महत्व को समझें।


Date:05-08-23

स्वस्थ भारत का संकल्प

मनसुख मांडविया, ( लेखक केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री हैं )

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना है कि ‘अच्छा स्वास्थ्य मानव प्रगति और समृद्धि की आधारशिला है। आने वाला भविष्य उन्हीं समाजों का होगा, जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन लगाएंगे।’ पीएम के कुशल नेतृत्व में भारत सरकार का दृष्टिकोण देश के सबसे असहाय और अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को किफायती एवं गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है। इस दिशा में केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक आयुष्मान भारत कार्यक्रम की घोषणा की। इस कड़ी में आयुष्मान भारत-हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का एक अनूठा संगम है। देश में लगभग 1,60,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर हैं। इनमें वेलनेस सत्र का आयोजन किया जाता है। वहीं प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों को 2.38 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड जारी किए गए हैं। वे पूरे भारत में 28,351 सूचीबद्ध अस्पतालों में पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज का लाभ उठा सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत अभी तक 5.3 करोड़ से अधिक लोग अस्पताल में भर्ती हुए हैं और उन्हें 61,501 करोड़ रुपये का मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया गया है। इससे देश में स्वास्थ्य पर जेब से किए गए खर्च में भारी कमी आई है, जो पहले परिवारों को गरीबी में धकेल दिया करता था। ये आंकड़े दिखाते हैं कि देश यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की ओर तेज गति से बढ़ रहा है।

वर्ष 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति स्पष्ट रूप से यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज का मार्ग निर्धारित करती है। यह नीित स्वास्थ्य पर जेब से किए गए खर्च को कम करके स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर जोर देती है। भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी खर्च को बढ़ाकर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में सुधार के महत्व को समझता है। उपलब्ध राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों के अनुसार वित्त वर्ष 2013-14 से 2019-20 तक के आंकड़ों पर आधारित सरकारी स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि और जेब से किए गए खर्च में कमी दिखती है। भारत में सरकारी स्वास्थ्य व्यय में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही है जिसमें वित्त वर्ष 2013-14 और 2019-20 के बीच कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत में 28.6 प्रतिशत से 41.4 प्रतिशत तक वृद्धि हुई। प्रति व्यक्ति के संदर्भ में बात की जाए तो इसी अवधि के दौरान सरकारी स्वास्थ्य व्यय 1,042 रुपये से बढ़कर 2,014 रुपये हो गया। इस व्यय को यदि सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी के संदर्भ में व्यक्त किया जाए तो इसी अवधि के दौरान यह 1.15 प्रतिशत से बढ़कर 1.35 प्रतिशत हो गया। कुल स्वास्थ्य व्यय में जेब से किए व्यय की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2013-14 में 64.2 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 47.1 प्रतिशत हो गई। यह सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर किए गए व्यय की वृद्धि से संभव हुआ है। स्वास्थ्य पर जेब से होने वाले खर्च में लगातार गिरावट से यही संकेत मिलता है कि हम देश में एक सुदृढ़ एवं प्रगतिशील स्वास्थ्य प्रणाली को साकार रूप देने के करीब हैं।

सरकारी स्वास्थ्य व्यय में यह वृद्धि लोगों की देखभाल के लिए सार्वजनिक सुविधाओं के बढ़ते उपयोग में भी परिलक्षित होती है। जनजातीय स्वास्थ्य पहल सहित निःशुल्क औषधि सेवा पहल, निःशुल्क निदान पहल, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम, उन्नत स्वास्थ्य के लिए मानव संसाधन आवंटन, आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में स्वास्थ्य एवं कल्याण सेवाएं, राष्ट्रीय एंबुलेंस सेवाएं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम इत्यादि जैसे विभिन्न अद्वितीय कार्यक्रमों ने समाज द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं की उपयोगिता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां एक और महत्वपूर्ण बिंदु का उल्लेख प्रासांगिक हो जाता है कि स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। इसके साथ ही व्यय की दिशा व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर है। वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय के हिस्से के रूप में व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व्यय का हिस्सा वित्त वर्ष 2013-14 में 51.1 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 55.9 प्रतिशत हो गया है।

प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में जितना अधिक निवेश होगा, उतनी ही उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता कम होगी, जिससे निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलेगा और लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम मिलेंगे। इसके अतिरिक्त भारत में स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय वित्त वर्ष 2013-14 में छह प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 9.3 प्रतिशत हो गया, क्योंकि वेलनेस सेंटर देश में लाखों लोगों के लिए स्वास्थ्य के प्रति वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे है। देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का यह विकसित रूप दर्शाता है कि प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में स्वास्थ्य भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि सरकार ने स्वास्थ्य प्रणालियों को अधिक लचीला बनाने के लिए विभिन्न चैनलों के माध्यम से अतिरिक्त धन आवंटित किया है, जिनमें स्वास्थ्य अनुदान आयोग, प्रधानमंत्री-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन, प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य पहल, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन आदि शामिल हैं। पूरी तरह से लागू हो जाने पर ये सभी पहल एक सुदृढ़ स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में सामने आएंगी।

इनके साथ केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन, पोषण अभियान, जल जीवन मिशन, स्कूल हेल्थ एंड वेलनेस पहल, फिट इंडिया मूवमेंट, ईट राइट इंडिया मूवमेंट इत्यादि का सूत्रपात कर स्वास्थ्य के निकटतम निर्धारकों को प्रमुख महत्व दिया है। वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24 के बीच स्वच्छ भारत मिशन के लिए बजटीय आवंटन में 3,000 करोड़, जल जीवन मिशन के लिए 10,000 करोड़ और पोषण अभियान के लिए 291 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है। बीमारी की रोकथाम और समुदाय के सदस्यों के बीच स्वस्थ व्यवहार को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। स्वास्थ्य एवं कल्याण के प्रति सरकार का यह समग्र दृष्टिकोण निश्चित रूप से देश को ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका स्वास्थ्य’ की सच्ची भावना में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज प्राप्त करने में मदद करेगा।


Date:05-08-23

देशी बनाम विदेशी

संपादकीय

सरकार स्वदेशी तकनीक के विकास और व्यापार घाटा पाटने की दिशा में गंभीरता से प्रयास कर रही है। इसी क्रम में उसने विदेशी लैपटाप, टैबलेट और कंप्यूटरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। माना जा रहा है कि इससे भारत में बनने वाले इन उपकरणों की बिक्री बढ़ जाएगी। इनके आयात पर प्रतिबंध संबंधी इस घोषणा के बाद कुछ स्वदेशी कंपनियों के शेयरों में उछाल भी देखा गया। हालांकि यह सरकार का अचानक लिया या कोई बिल्कुल नया फैसला नहीं है। इससे पहले सैकड़ों ऐसी विदेशी वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, उनमें रक्षा उपकरणों से संबंधित कई चीजें भी शामिल हैं। खबरों के मुताबिक, लैपटाप, टैबलेट आदि उपकरणों के आयात के लिए लाइसेंस को जरूरी किए जाने के बाद कंपनियों को आवेदन के लिए अधिक वक्त दिया जा सकता है। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि पहले से पारगमन में मौजूद खेप को मंगाने में कंपनियों को किसी तरह की असुविधा न हो। दरअसल, इस भूमंडलीकरण के जमाने में जब सारी दुनिया एक बाजार में तब्दील हो गई है, लोगों को यह आजादी मिली है कि वे अपनी पसंद से अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएं कहीं से भी खरीद सकते हैं। इस तरह विदेशी वस्तुओं का चुनाव लोगों की आदत में शामिल हो गया है। इसका असर देश में बनने वाली वस्तुओं पर पड़ता है। स्वाभाविक ही, घरेलू बाजार में जगह न मिल पाने के कारण स्वदेशी कंपनियां अपने उत्पाद की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार करने में सक्षम नहीं हो पातीं। ऐसे में लोगों की आदतें सुधारने की दृष्टि से भी ऐसे प्रतिबंध कई बार जरूरी होते हैं।

विदेशी कंप्यूटरों, लैपटाप आदि पर प्रतिबंध के पीछे सुरक्षा कारण बताए गए हैं। इनमें एचएसएन कोड 8471 वाले सात श्रेणी के कंप्यूटरों, लैपटाप और टैबलेट पर ही प्रतिबंध लगाया गया है। एचएसएन यानी ‘हार्मोनाइज्ड सिस्टम आफ नामेनक्लेचर’ कोड एक वर्गीकरण प्रणाली है, जिसका उपयोग कराधान उद्देश्यों के लिए उत्पादों की पहचान करने के लिए किया जाता है। इस कोड का उपयोग उन उपकरणों की पहचान करने के लिए किया जाता है जो डेटा प्रोसेसिंग कार्य करने के लिए तैयार किए गए हैं। इस तरह लोगों के निजी डेटा को सुरक्षित रखने के मकसद से यह कदम उठाया गया है। इन दिनों जिस तरह लोगों के निजी आंकड़ों की चोरी और उन्हें दूसरे देशों की कंपनियों को बेचने की प्रवृत्ति बढ़ी है, उसमें दूसरे देशों में तैयार ऐसी प्रणाली पर नजर रखना कठिन काम साबित होता है। फिर चीन जैसे कुछ देश जासूसी के नए-नए तरीके ईजाद करते देखे जाते हैं, उसमें भी ऐसी प्रणाली खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए नए फैसले में कोरिया और चीन से आयात होने वाले ऐसे उपकरणों की खेप में कटौती की गई है। अब वही कंपनियां इन उपकरणों का कारोबार कर सकती हैं, जो भारत में ही इनका उत्पादन या संकलन करती हैं।

हालांकि कुछ लोगों को लगता है कि इस फैसले से विश्व व्यापार नियमों का उल्लंघन होगा और सरकार यह इसलिए कर रही है कि उसका मकसद अपनी चहेती कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाना है। मगर सरकारें अपने सुरक्षा कारणों से ऐसे फैसले ले सकती हैं। फिर लोगों को बाहर से ऐसी मशीनें मंगाने पर प्रतिबंध नहीं होगा, इसके लिए उन्हें आयात शुल्क भुगतान करना पड़ेगा। दरअसल, बाहर की वस्तुओं पर रोक लगाने के पीछे सरकार का एक बड़ा मकसद यह भी है कि इस तरह उसका व्यापार घाटा काफी कम हो जाता है। दरअसल, निर्यात के मामले में भारत अपने लक्ष्य से काफी पीछे चल रहा है और आयात में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, जिससे व्यापार घाटा चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है। इस तरह आयात पर प्रतिबंध लगा कर सरकार बेशक व्यापार घाटा कुछ पाट सकती है, मगर बिना निर्यात बढ़ाए अर्थव्यवस्था को गति देना एक चुनौती बनी ही रहेगी।


Date:05-08-23

समृद्ध दुनिया में महिलाएं

संपादकीय

जब महिलाएं समृद्ध होती हैं तो दुनिया समृद्ध होती है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में आयोजित महिला सशक्तिकरण मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा । मोदी ने कहा महिलाओं का सशक्तिकरण विकास को गति देता है तथा उन्हें सशक्त बनाने का सबसे प्रभावी तरीका महिला नीति विकासात्मक दृष्टिकोण है। उन्होंने समान अवसर मुहैया कराने वाले मंच बनाने की बात की। जहां उपलब्धि हासिल करना उनके लिए सामान्य बात हो सके। प्रधानमंत्री ने कहा शिक्षा तक उनकी पहुंच वैश्विक प्रगति को बढ़ावा दे है। उनका नेतृत्व समावेशिता बढ़ाता है तथा उनकी आवाज सकारात्मक बदलावों के लिए प्रेरित करती है। उनके अनुसार प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत करीब 70 फीसद कर्ज महिलाओं को दिए गए हैं। स्टैंडअप इंडिया, जो सरकारी कार्यक्रम है। की लाभार्थी भी 80 फीसद महिलाएं ही हैं। अपने संबोधन में जब वे महिलाओं की सशक्तिकरण और विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिमान स्थापित करने जैसी सकारात्मक चर्चा कर रहे थे। उस वक्त तक भी मणिपुर में हो रहे उपद्रव की शिकार महिलाओं के घावों में कोई मलहम नहीं लगाया गया है। ना ही देश के लिए मेडल लाने वाली खिलाड़िनों के साथ होते रहे अन्याय पर तामील हुई है। महिलाएं स्वावलंबी हो रही हैं। वे अपने अथक प्रयासों से परिवार की आर्थिक मददगार बनने की कोशिशें भी कर रही हैं। यह स्वीकारने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि सरकारी नियमों व कार्यक्रमों ने इन तमाम महिलाओं को पांव रखने लायक जमीन मुहैया कराने का जिम्मा लिया है। वे सिर्फ उच्च शिक्षा प्राप्त करने के प्रति ही चेतन नहीं हुई हैं। बल्कि बड़ा तबका ऐसा भी है, जो अपने बूते छोटे-छोटे काम करके स्वावलंबी होती जा रही हैं। जैसा कि मोदी ने कहा वे जलवायु परिवर्तन से लेकर लड़ाकू विमान उड़ाने तक पहुंच रही हैं। मगर व्यावहारिक धरातल पर देखें तो कामगार महिलाओं की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। संतुलन बनाये रखने के लिए जरूरी है कि ऐसे प्रयास लगातार होते रहे हैं कि अधिक-से-अधिक संख्या में स्त्रियां श्रमबल का सदुपयोग करती रहें। उनकी राह में आने वाले रोड़े को हटाना सरकार व व्यवस्था की ही जिम्मेदारी है। तभी असल मायने में हम समृद्ध महिलाओं की संख्या में इजाफा होते देखे सकेंगे।


Date:05-08-23

राहुल को राहत

संपादकीय

मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जो कुछ कहा है, उससे एक बार फिर यह साबित हुआ कि भारतीय न्यायपालिका इतनी पाएदार क्यों है और दुनिया भर में उसकी इतनी साख क्यों है? आला अदालत की तीन जजों की पीठ ने निचली दोनों अदालतों के निर्णय पर टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कहा है कि ‘ऐसे मामलों में, जब अपराध जमानती हो, तब अधिकतम सजा देने के लिए ट्रायल जज से ठोस कारणों के उल्लेख की उम्मीद की जाती है।’ मगर निचली अदालत ने तो यह नहीं ही किया, गुजरात हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की राहत की अपील को खारिज करते समय इस अहम पहलू को नजरअंदाज किया। चंूकि इस फैसले का असर लाखों लोगों के जन-प्रतिनिधित्व पर पड़ने वाला था, ऐसे में, इस मामले में पूरी संजीदगी की दरकार थी। बहरहाल, सजा पर रोक के बाद राहुल गांधी के लिए संभावनाओं के वे सारे दरवाजे खुल गए हैं, जिन पर इस दंड के कारण ताले लगे थे। ऐसे में, कोई आश्चर्य नहीं कि आला अदालत के फैसले की खबर मिलते ही लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष से राहुल गांधी की सदस्यता तत्काल बहाल करने की मांग कर डाली।

राहुल गांधी को न्याय की कसौटी पर राहत मिली है, मगर अदालत ने उनकी टिप्पणी को शालीनता के दायरे के बाहर ही माना है और यह अपेक्षा की है कि सार्वजनिक जीवन वाले व्यक्ति को अपने भाषणों में एहतियात बरतनी चाहिए। निस्संदेह, यह अपेक्षा काफी अहम है और यह किसी एक नेता या एक सियासी पार्टी तक महदूद नहीं है। हमारे देश में सार्वजनिक विमर्शों, बल्कि अब तो कई बार संसदीय बहसों का स्तर भी इतना खराब हो जाता है कि उसे सुनने-देखने वाले शर्मिंदा हो जाएं, ऐसे में शीर्ष राजनेताओं से यह खास अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे हमारे जन-विमर्श के स्थापित मूल्यों का ख्याल रखें। जब उनके स्तर से ही चूक होगी, तो नीचे के नेताओं और कार्यकर्ताओं से राजनीतिक शिष्टाचार की अपेक्षा कैसे की जाएगी? यह सवाल तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब तमाम राजनीतिक दलों को जिताऊ उम्मीदवार के नाम पर आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं से भी कोई परहेज नहीं है!

इस पूरे प्रकरण में राहुल गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कोई लाभ पहुंचा हो या नहीं, मगर उन्होंने राहुल को एक मुद्दा जरूर थमा दिया, क्योंकि न्यायपालिका के क्षेत्र के बाहर इस मामले में जितनी सक्रियता बरती गई, चाहे उनकी सदस्यता समाप्ति की त्वरित अधिसूचना हो या उनसे आवास खाली कराने में बरती गई अतिरिक्त तत्परता, आम जनता में यही संदेश गया कि यह प्रक्रिया के पालन से ज्यादा बदले की कार्रवाई है, और इसे राहुल व उनके दल ने काफी भुनाया भी। यहां तक कि कांग्रेस से खास दूरी बरतने वाले कई दल भी उसके करीब आ गए! ऐसे में, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी जब संसद में लौटेंगे, तब उनका रुख भाजपा और केंद्र सरकार के प्रति कैसा रहता है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि देश का जनमानस प्रतिशोध की राजनीति को पसंद नहीं करता। मगर जैसी आक्रामकता संसद के भीतर और बाहर दिख रही है, उसमें नेताओं की परिपक्वता की परीक्षा भी होगी। इस फैसले में निचली अदालतों के लिए भी एक संदेश है कि जन-प्रतिनिधियों के बारे में फैसला देते समय वे उसके व्यापक परिणामों को भी अपनी निगाह में रखें!


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