01-08-2025 (Important News Clippings)
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Date: 01-08-25
New phase
NISAR has capped a decade-long bilateral effort of NASA and ISRO
Editorials
The GSLV-F16 mission lifted off from Sriharikota on July 30, placing the NASA ISRO Synthetic Aperture Radar (NISAR) satellite into a sun synchronous orbit. The ascent capped a decade-long bilateral effort and opened a new phase in global earth observation cooperation. NISAR is a 2.8-tonne observatory that combines a NASA-built L-band radar with an ISRO- made S-band radar – also a first. They allow NISAR to detect surface changes measuring only a few centimetres, even through clouds and vegetation. NISAR will supply freely accessible data on ground deformation, glacier flow, biomass, land use changes, and sea ice dynamics. As its dawn-dusk orbit repeats every 12 days, its radars will be able to revisit the same point under nearly identical lighting conditions. This geometry, coupled with a duty cycle exceeding 50% in the L band, has been designed to yield closely spaced time series observations that can quantify geolog ical processes. Indeed, its various engineering firsts lead up to NISAR’s unusually broad science agenda: map mangrove extent, urban subsidence, crop-soil interactions, and calving rates in polar ice shelves in a single orbital cycle. Its data could help support the Sendai Framework on reducing disaster risk and refine IPCC models.
For ISRO, flying a flagship payload on the GSLV Mk II rocket is notable for a vehicle once dubbed “naughty boy” for its early-career setbacks. The ISRO-NASA partnership would also have eased technology transfer between the two countries. Developing the S-band radar would have de manded tighter tolerances in radiofrequency electronics, thermal stability, and data throughput than previous Indian satellites. From a diplomatic standpoint, the launch confirms that India can be trusted with high-value hardware and demanding integration schedules, although it is still learning to shape joint missions on equal terms. The 12-metre reflector, the Ka band downlink, and much of the flight software stack were imported, and the key design reviews were led by NASA. Achieving parity will require larger domestic investments in advanced materials, deep- space communications, and systems engineering plus earlier Indian involvement in framing the scientific agenda of future multilateral missions. NISAR’s data downlink rate also presents a challenge. ISRO must expand its Ka-band ground network, automate cloud-based processing, and release analysis-ready products within hours if state agencies are to make timely use of the data. Sustaining the time-wise data will also depend on authorising follow-on SAR spacecraft before 2030 and finalising data-sharing rules that en- courage private analytics while protecting sensitive scenes. Addressing these gaps will determine how fully NISAR’s potential is realised in India.
Date: 01-08-25
हमसे ट्रम्प का मनोविज्ञान समझने में भूल हुई है?
संपादकीय
भारत पर 25% टैरिफ लगाने से ज्यादा घातक है ट्रम्प की यह घोषणा कि रूस से तेल लेने का जुर्माना भी वसूला जाएगा। यह स्थिति कैसे आई? ये सच है कि भारत-यूएस टैरिफ डिफ्रेंशियल ज्यादा रहा है, भारत ने प्रतिबंध के बाद भी रूस से सस्ता क्रूड लेकर उसे रिफाइन कर के यूरोप को बेचा और अन्य देशों से आयात को लेकर भारत के व्यापार और गैर-व्यापार कानून भी सख्त रहे हैं। फिर इतने दिनों तक ट्रम्प ने मात्र 10% टैरिफ भारत पर क्यों लगाया ? शुरू में ट्रम्प की एक ही जिद थी- अमेरिका के कुछ कृषि, डेयरी उत्पाद व पेट्रोलियम भारत कम से कम टैरिफ पर खरीदे। भारत इस पर अड़ा रहा कि इस सौदे से भारतीय किसानों को घाटा होगा। भारत ट्रम्प का मनोविज्ञान नहीं समझ सका। डील रुकी रही। रूस से तेल का मुद्दा भारत की कमजोर नस है। यह सच है कि रूस हमारा गाढ़े वक्त का भरोसेमंद दोस्त है। उसे छोड़ना व्यापार की दृष्टि से घाटे का सौदा तो होगा ही, अनैतिक और असामरिक भी होगा। लेकिन अभी तक रूस के साथ तेल या हथियार का मुद्दा ट्रम्प की शर्तों में नहीं था। फिर आखिर ट्रम्प ने हमारी यह कमजोर नस क्यों दबाई ? भारत कृषि उत्पाद खरीदने की ट्रम्प की जिद मानकर भी अपने किसानों की भरपाई कर सकता था? तब न तो रूस का मुद्दा होता, न ही यूएस- पाक मैत्री का नया कूटनीतिक खतरा ।
Date: 01-08-25
क्या देश में पहले की तुलना में अधिक समानता आई है?
प्रो. राम सिंह, ( दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के डायरेक्टर )

विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2011-12 और 2022-23 के बीच भारत ने उपभोग की असमानता को काफी हद तक कम किया है। अर्थशास्त्री गरीब और अमीर के बीच असमानता को मापने के लिए गिनी इंडेक्स का उपयोग करते हैं। गिनी वैल्यू में कमी को अच्छा माना जाता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत का गिनी इंडेक्स घटा है। इस मानदंड पर भारत दुनिया के चार सबसे समानता वाले देशों में शुमार हो गया है। भारत की स्थिति चीन, अमेरिका और यूके से कहीं बेहतर बताई गई है। यहां गौर करना होगा कि भारत के लिए विश्व बैंक के आकलन उपभोग की असमानता के संदर्भ में हैं। इसके लिए उसने विभिन्न समूहों के उपभोग खर्च पर कराए गए एचसीईएस 2022-23 के आधिकारिक डेटा का उपयोग किया है। इसमें उसने सरकार द्वारा दिए गए मुफ्त सामानों में से कुछ वस्तुओं के उपभोग खर्च के मूल्य को भी जोड़ा है।
देश में बड़े पैमाने पर व्याप्त विषमताओं संबंधी मीडिया रिपोटों के अभ्यस्त हो चुके कई लोगों ने भारत में घटी उपभोग असमानता के दावे पर या तो संदेह जताया है या इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है। आलोचकों का तर्क है कि एचसीईएस के उपभोग डेटा में अमीरों के उपभोग को सटीकता से शामिल नहीं किया गया है। उनके अनुसार उपभोग की असमानता विश्व बैंक के आकलन से अधिक है। वे पेरिस स्थित वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब (डब्लयूआईएल) की रिपोर्ट के आधार पर भी कहते हैं कि भारत में आय की असमानता बहुत अधिक है। ऐसे में स्वस्थ बहस के लिए हमें इस विवरण में छिपी चीजों को खंगालना होगा।
हम विश्व बैंक के आकलनों पर चाहे जितनी बहस करें, लेकिन एनएसएसओ के डेटा से स्पष्ट है कि भारत में उपभोग की विषमता में आई कमी उल्लेखनीय है। भारत की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग भी सुधरी है। विश्लेषक राष्ट्रीय आय में शीर्ष 1% वर्ग की हिस्सेदारी को लेकर चिंता जता रहे हैं। ये उल्लेखनीय है कि डब्ल्यूआईएल के अनुमानों में कई खामियां हैं, जिससे अतिशयोक्तिपूर्ण दावे पैदा होते हैं। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि आय के वितरण को लेकर भारत में आज भी कोई आधिकारिक डेटा नहीं है। डल्ब्यू आईएल ने शीर्ष आय वर्गों के अनुमान के लिए आयकर के डेटा का प्रयोग किया है। निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए उसने माना है कि इनमें से 70 से 80% परिवारों का उपभोग खर्च उनकी आय से अधिक होता है। सरल शब्दों में आय की असमानता के अनुमान कहते हैं कि शीर्ष 20 से 25% परिवारों के अलावा शेष सभी साल-दर-साल अपनी आय से अधिक खर्च करते हैं। इस अव्यावहारिक धारणा के चलते निचले 80% वर्ग की आय को कम करके आंका गया है। इससे राष्ट्रीय आय में इस वर्ग की हिस्सेदारी उनकी वास्तविक हिस्सेदारी से कम आंकी गई है। जबकि शीर्ष आय समूहों की हिस्सेदारी का अनुमान वास्तविकता से अधिक है।
क्या देश आय की असमानता बढ़ रही है? जवाब है, नहीं। यदि हम डब्ल्यूआईएल के दावों को भी देखें तो 2017 से 2022 के बीच राष्ट्रीय आय में निचले 50% वर्ग का हिस्सा बढ़ा है, जबकि शीर्ष 10% का घटा है। शीर्ष 1% वर्ग की अधिक हिस्सेदारी यकीनन चिंता का विषय है। हालांकि, 2016-17 से इस 1% वर्ग का हिस्सा केवल 0.3% ही बढ़ा है। यह केंद्र सरकार द्वारा कर चोरी रोकने के उपायों के चलते हुआ है। पहले की तुलना में उच्च आय वर्ग आजकल सत्यतापूर्ण रिपोर्ट देते हैं। मेरा शोध कहता है कि 2014 से शीर्ष आय वर्ग की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी कर संबंधी नियमों के बेहतर अनुपालन के कारण हुई है। इसे बढ़ती असमानता समझने की गलती नहीं करनी चाहिए।
वास्तव में आय की असमानता का आकलन लोगों की क्रयशक्ति के आधार पर किया जाना चाहिए। यानी कर-पूर्व आय के स्थान पर कर चुकाने के बाद बची आय के आधार पर चूंकि अमीरों द्वारा करों का भुगतान बढ़ा है, इसलिए शीर्ष आय वर्ग की कर पश्चात आय उनकी कर पूर्व आय का सिर्फ 65 से 70% हिस्सा ही रह गई है, जिसके आधार पर आय की समानता का आकलन किया गया है। इसके विपरीत, निम्न आय समूहों के लिए असमानता अनुमानों में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के तहत कैश ट्रांसफर को शामिल नहीं किया जाता। जबकि आज इस तरह के ट्रांसफर जीडीपी का लगभग 8% हैं। यदि हम अमीरों की कर देने की बाद की आय का उपयोग करें और गरीबों की आय में सब्सिडी जोड़ें, तो पाएंगे कि बीते एक दशक में आय असमानता में कमी आई है।
Date: 01-08-25
नई शिक्षा नीति से विकसित भारत की ओर बढ़े कदम
कन्हैया त्रिपाठी, ( प्रोफसर केंद्रीय विवि पंजाब )

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को पांच वर्ष पूरे हो गए। इसकी पांचवीं वर्षगांठ मनाने के लिए दिल्ली स्थित ‘भारत मंडपम में आयोजित कार्यक्रम में जो उत्साह देखने को मिला, वह सचमुच अपूर्व था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरे देश में अब अपना आकार लेने लगी है। अकादमिक जगत के लोग भी इसको लेकर बहुत गंभीर हैं।
भारत ने 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का स्वप्न संजोया है। स्पष्ट है, हमारी शिक्षा व्यवस्था ही हमको इस लक्ष्य तक पहुंचा सकती है। बिना समग्र शिक्षा-व्यवस्था के हम विकास के किसी भी स्तर की बड़ी चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की महत्ता को अकादमिक जगत से जुड़ा देश का हरेक व्यक्ति धीरे-धीरे समझने लगा है। हालांकि, पुरानी पीढ़ी के कुछ लोग अब भी ऐसे हैं, जो इसकी आवश्यकता को समझना नहीं चाहते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 केवल सुधार नहीं है, बल्कि यह वैचारिक, बौद्धिक व सांस्कृतिक पुनर्जागृति का दार्शनिक दस्तावेज है। ‘एक्सेस, इक्विटी, क्वालिटी, अफोर्डेबिलिटी व अकाउंटेबिलिटी’ के आधार पर एक जीवंत, समावेशी और भविष्योन्मुखी शिक्षा व्यवस्था बनाने में हम जुटे हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का भी कहना उचित है कि हम वैश्विक परिस्थिति को नजरअंदाज नहीं कर सकते। भारत को एक बार फिर वैश्विक शिक्षा केंद्र बनाना है, तो हमें वैश्विक अपेक्षाओं के साथ समन्वय बनाना ही होगा। भारत में कभी नालंदा, पुष्पगिरी, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे महान शिक्षा केंद्र थे। आज देश में करीब 1,200 विश्वविद्यालय या उसके समतुल्य शिक्षा केंद्र हैं, जो निश्चित रूप से संतोष की बात है।
अब जरूरत है कि देश के अकादमिक जगत के लोग, प्राथमिक विद्यालयों से लेकर उच्च शिक्षा केंद्र तक इसमें अपनी तय भूमिका निभाएं। मातृभाषा के माध्यम से 64 कलाओं को भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सम्मिलित करना है। भारत के वैज्ञानिक, बौद्धिक वर्ग अंग्रेजी में पठन-पाठन के आदी रहे हैं। मोदी सरकार के आने के बाद वे भारतीय ज्ञान परंपरा की बात करने लगे और शास्त्रों में अपनी शिक्षा के बीज ढूंढ़ने लगे हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश को जीडीपी के छह प्रतिशत तक पहुंचाने की परिकल्पना की गई है। लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता, शोध की गुणवत्ता और समावेशी शिक्षा के जरिये समाज निर्माण के लिए देश के शिक्षा- बजट को थोड़ा और अधिक बढ़ाना पड़ेगा।
विगत पांच वर्षों का आकलन किया जाए, तो पता चलता है कि भारत सरकार ने बहुत से नए कदम उठाए हैं, जिनसे शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव आएगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रशिक्षण योजना (एनएटीएस) के अंतर्गत एआई कौशल, वेब आधारित स्थानीय भाषा प्रवीणता परीक्षा पोर्टल,आईआईटी बीएचयू और आईआईटी दिल्ली में नए पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। इसी तरह, भाषा सागर, संस्कृत एनसाइक्लोपीडिया शब्दकोश, भारतीय ज्ञान प्रणाली केंद्र, कोषाश्री पोर्टल, स्वच्छ एवं हरित विद्यालय रेटिंग, माई करियर एडवाइजर एप, तारा एप जैसे उपयोगी उपक्रमों का विस्तार किया है।
भारत को सतत विकास लक्ष्य 2030 के अनुसार व्यापक सफलताएं अर्जित करनी हैं। इसलिए शिक्षा क्षेत्र के हितधारकों और अभिभावकों के साथ शिक्षकों व अकादमिक जगत में अभिरुचि रखने वाले लोगों का एक पूल बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री का कहना है कि भारतीयता राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 का मूल मंत्र है। इसलिए आवश्यक है कि नई शिक्षा नीति के व्यापक उद्देश्य की दिशा में हम सक्रिय हों। सभी हितधारकों को यह समझना होगा कि विकसित भारत के निर्माण में हमारे साझा संकल्प ही काम आएंगे। विश्व के अनेक विश्वविद्यालय भारत में आने के लिए कतार में खड़े हैं। ऐसे में, भारतीय बोध के साथ नए रोडमैप के लिए कार्य करना आवश्यक होगा।
कहने की आवश्यकता नहीं कि आने वाले समय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सही से आकलन, योजना- निर्माण, संयोजन व क्रियान्वयन हुआ, तो भारत निश्चित ही विश्व में अपनी नई छवि देख सकेगा।