विकास का अर्थ रोजगार नहीं

Afeias
21 Jul 2016
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Date: 21-07-16

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सन् 2013-2015 के बीच के सर्वे पर नजर डालें, तो ज्ञात होता है कि भारत में रोजगार की संख्या बहुत अधिक नहीं बढ़ी है।

हर महीने लगभग एक लाख लोग रोजगार के लिए सामने खड़े होते हैं।

एच.डी.एफ.सी. बैंक की रिर्पोट के अनुसार भारतीय रोजगार की वृद्धि दर का सीधा प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत बढ़ने पर होता है। यह प्रतिशत अब गिरावट की ओर है। 1997-2000 के समय में यह 0.39 थी, जो गिरकर 0.15 पर आ गई है।

 

रोजगार के गिरते अवसरों के कारण –

  • श्रमिक कानून में लचीलेपन की कमी के कारण नियोक्ता मनुष्यों की नियुक्ति से अधिक बल स्वचालित मशीनों के प्रयोग को देते हैं। ऐसा न केवल निर्माण उद्योग में ही है, बल्कि दूरसंचार पर आधारित उद्योग भी यही कर रहे हैं। 2016 के जनवरी-मार्च में दूरसंचार कम्पनियों द्वारा की गई नियुक्तियों में कमी आई है। इंफोसिस के प्रमुख विशाल सिक्का और टी.सी.एस. के प्रमुख एस. चंद्रशेखरन भी कम कौशल वाले क्षेत्रों के आॅटोमेशन या स्वचालन के बाद अब स्टॉफ को उच्च स्तरीय कार्यों के लिए आॅटोमेशन का प्रशिक्षण दे रहे हैं।
  • अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण भी रोजगार के अवसरों में कमी का कारण है। अब रोजगार की तलाश में लोग वैध या अवैध रूप से दूसरे देशों का रुख करने लगे हैं। रोजगार तो सबसे कम वेतन मांगने वाले को ही मिलता है। कुछ समय पहले ब्रिटेन में अन्य यूरोपीय देशों के प्रवासियों ने वहाँ के रोजगारों पर कुछ हद तक कब्जा कर लिया था। बै्रक्जिट के पक्ष में वहाँ की जनता के वोट देने का यह भी एक कारण रहा।
  • बहुत से अर्थशास्त्री आॅटोमेशन और वैश्वीकरण को रोजगार के गिरते अवसरों का कारण नहीं मानते। सच भी यही है, क्योंकि अगर एक क्षेत्र में रोजगार के अवसरों कम होते हैं, तो दूसरे क्षेत्र में बढ़ते हैं। आज आॅनलाइन मार्केट के विस्तार के साथ स्थानीय बाजारों या किराना दुकानों में रोजगार कम हुए हैं। लेकिन आॅनलाइन बाजार ने गोदामों के रखरखाव, घर पहुँच-सेवा आदि में बहुत से रोजगार बढ़ाए भी हैं । फिर भी सवाल यह उठता है कि हर माह बढ़ती बेरोजगारी की संख्या की तुलना में क्या इस तरह के प्रयास पर्याप्त हैं?
  • वर्तमान समय में कौशल विकास या रोजगारों के अवसरों के लिए आवश्यक बदलाव इतना आसान नहीं है, जितना सुनने में लगता है। तेजी से बदलते समय के साथ रोजगार से जुड़ी सूचनाओं में तेजी लाने की जरूरत है। रोजगार पाने और छोड़ने के बीच की दरार को भरना भी बहुत असान नहीं है। आॅक्सफोर्ड के शोधकर्ता कार्ल बेनडिक्ट और माइकल ए आॅस्बर्न के अनुसार अगले 10-15 वर्षों में आधे रोजगार तो आॅटोमेशन की भेंट चढ़ जाएंगे।
  • यदि हमारे प्रधानमंत्री की मानें, तो रोजगार के बहुत से अवसर निर्मित किए जा चुके हैं, जो अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं। मुद्रा बैंक से ऋण लेकर हजारों लोग अपना व्यवसाय प्रारंभ कर चुके हैं, या कर रहे हैं। ये छोटे-मोटे व्यवसाय या उद्योग ही आने वाले वर्षों में रोजगार के अवसर बढ़ाएंगे और हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे।

 

द टाइम्स आॅफ इंडिया’ में

श्री राघवन जगन्नाथन के लेख पर आधारित