पूर्वोत्तर भारत का विकास

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20 Jul 2016
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Date: 20-07-16

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पूर्वोत्तर भारत का क्षेत्र राजधानी दिल्ली से लगभग 2000 कि.मी. दूर स्थिर है

  • , और यह माना जाता है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में भी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वहाँ देर से पहुँच पाता है।
  • सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अलग मंत्रालय बना दिया है, परंतु इसकी जानकारी या इसकी नीतियों के प्रति जागरूकता दिल्ली या इसके आसपास रहने वाले पूर्वोत्तर निवासियों तक ही सीमित है।
  • इन राज्यों के पिछडे़पन का कारण राजनीतिक दृष्टि से कम लाभ वाला होना भी बताया जाता है। पूर्वोत्तर के सभी राज्य कुल मिलाकार केवल 24 सांसदों का चुनाव करते हैं, जबकि केवल राजस्थान से ही 25 सांसद चुने जाते हैं।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्रों की रेल सेवाएं बहुत पिछड़ी हुई हैं। पिछले साल पूर्वोत्तर रेल सेवाओं में बड़ी उपलब्धि देखने को मिली। (1) असम में नॉथ गारो हिल्स के में दीपत्थर से गोआपाडा जिले के दूधनोई तक रेलवे लाइन पूरी हुई। इस लाइन के बिछने के बाद मेघालय तक रेल संपर्क हो गया। (2) अरूणाचल की राजधानी ईटानगर तक रेल सेवाओं की शुरूआत हुई।
  • मेंदीपत्थर-दूधनोई रेललाइन की घोषणा के बाद इसे पूरा होने में 22 वर्ष लग गए। इससे वहाँ के निवासियों के लिए भारत के बाकी हिस्सों में पहुंचना आसान हो गया है। माल ढुलाई के लिए सीधा संपर्क होने से व्यापार तथा कारोबार के अवसर बढ़ने की संभावना है।
  • रेल लाइन के विकास से पर्यटन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। भारतीय रेल पूर्वोत्तर की सभी राजधानियों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की योजना पर काम कर रहा है। अभी केवल 2062 कि.मी. लंबा रेल रेटवर्क है। इसमें 882 कि.मी. वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है।
  • विशेष त्वरित सड़क विकास कार्यक्रम के जरिए सन् 2006 में इस क्षेत्र में सड़क निर्माण पर जोर दिया गया था। इसके अंतर्गत 2016 तक 6500 किमी. लंबा सड़क नेटवर्क बिछाया जाना था। परंतु अपै्रल 2014 तक केवल 1000 किमी. लंबी सड़क ही बनाई जा सकी है।
  • यदि बैंकिंग के क्षेत्र को देखें, तो सन् 2011 की जनगणना के अनुसार मणिपुर में 30 प्रतिशत, नागालैंड में 35 प्रति, मेघालय में 5 प्रतिशत, असम में 44 प्रतिशत जबकि त्रिपुरा में 792 प्रतिशत बैंक खाते खोले गए।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 2012 के आंकड़े के अनुसार देश में कृषि से अजीविका चलाने वाले परिवारों मे, जो बैंकिंग से अछूते रहे उनमें सबसे अधिक पूर्वोत्तर, पूर्वी और मध्य-भारत के 64 प्रतिशत परिवार आते है।
2010 तक नागालैंड में ग्रामीण बैंकों की 37 शाखाए थीं। असम में सबसे अधिक 79 शाखाएं थीं। समूचे पूर्वोत्तर में 1000 किमी. के दायरे में उस समय कुल 9 बैंक शाखाएं थी, जबकि पूरे देश में 1000 किमी. के दायरे में 26 शाखाएं थीं। पूर्वोत्तर में ऋण का औसत भी बहुत कम था। लेकिन गैर-निष्पादित संपत्ति यानि ऋण फंसने की दर बहुत ज्यादा थी। जिसके कारण बैंक पूर्वोत्तर राज्यों में कारोबार से परहेज करते थे। भौगोलिक परिस्थिति, संपर्क साधन और परिवहन की कमी भी बैंकों की राह में बाधा खड़ी करती रही है।

  • पूर्वोत्तर में करोबार की स्थिति अच्छी नहीं है। बैंकों की कमी से निवासियों को न तो वित्तीय सेवाओं का उचित लाभ मिल सकता है और न ही अपना व्यवसाय आरंभ करने के लिए कर्ज।
  • पूर्वोत्तर राज्यों में पानी की भरपूर मात्रा व उसके तेज बहाव को देखते हुए पनबिजली की संभावना अच्छी है। यहाँ की कठिन भौगोलिक स्थिति में बड़े बिजली संयंत्र लगाना संभव नहीं है। सरकार को वहां अन्य पर्वतीय राज्यों की तरह 10 मेगाबाट से कम क्षमता वाले संयंत्र लगाने पर ही बल देना होगा।
  • आवागमन के साधनों के विकास के साथ ही यहाँ के पर्यटन पर ध्यान दिया जा सकता है। पूर्वोततर की प्राकृतिक संपदा एवं सांस्कृतिक धरोहर को पर्यटन के जरिए बढावा दिया जा सकता है। इससे वहां के हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलगा। पिछले कुछ वर्षो में सरकार ने इस क्षेत्र में प्रयत्न किए हैं ।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र में सीमा-पार व्यापार में विकास की संभावनाएं देखी जा सकती हैं। गौरमलब है कि चीन अपने सीमावतर्ती क्षेत्र शेजझेन के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया के बाजार में पैठ बना रहा है। समुचित नीति न होने के कारण पूर्वात्तर राज्य बांग्लादेश तक से व्यापार नहीं कर पा रहे हैं। यहां की परिवहन सेवाएं सुधरने से यहां के लघु उद्योग बड़ी कंपनियों को कच्चा माल उपलब्ध करा सकंगे। इन राज्यों के लिए सीमा-पार व्यापार की उचित नीति बनाने से ये दक्षिण एशियाई बाजार में अवसर ढूंढ सकेंगे। सन् 1991 में ‘लुक ईस्ट’ नीति इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। परंतु व्यापार और विकास के बजाय इसने उग्रवाद को अधिक बढ़ावा दिया।

 

वर्तमान स्थिति

15 जूलाई 2015 को पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्य मंत्रियों के साथ बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने इस क्षेत्र के विकास के लिए 92,000 करोड़ देने के घोषणा की। इस राशि से सड़क और रेल नेटवर्क विकसित करने पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। इसमें 35,000 करोड़ रुपये 6,400 किमी. लंबे ट्रांस अरुणाचल राजमार्ग पर और 57,000 करोड़ रुपए नया रेल नेटवर्क तैयार करने और पुराने रेल नेटवर्क को बेहतर बनाने पर खर्च होंगे।

इसके अलावा सरकार ने अपने पहले बजट में पूर्वोत्तर के लिए 53,000 करोड़ रु. का आबंटन किया है, और इस क्षेत्र के लिए 14 नई रेलवे लाइनों का वायदा किया है।

मणिपुर में खेल विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की गई है।

इसके अलावा छः कृषि महाविद्यालय, 10,000 छात्रों को छात्रवृत्ति देने वाला ईशान उदय कार्यक्रम और प्रत्येक 15 दिन में तीन मंत्रियों को पूर्वात्तर भेजने की पहल बता रही है कि इस क्षेत्र में विकास को गति मिल रही है।

बांग्लादेश के साथ भूमि समझोता भी पूर्वोत्तर राज्यों को व्यापार के लिए बाजार प्रदान करने वाला माना जा रहा है।

पूर्वोत्तर में कृषि की संभावनाओं को देखते हुए इसे जैविक कृषि का केंद्र बनाए जाने की भी संभावना है।

 

दि हिन्दू’ में प्रकाशित

ऋषभ कृष्ण सक्सेना के लेख पर आधारित

 

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