पलायन करने वाली जनता के लिए अपेक्षित नीति की आवश्यकता

Afeias
24 Dec 2018
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Date:24-12-18

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भारत में, जनता तेजी से नगरों की ओर पलायन कर रही है। एक अध्ययन के अनुसार प्रति मिनट 25-30 लोग, गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। यह पलायन बेहतर जीविका के साधन, और जीवन स्तर में सुधार के लक्ष्य की दृष्टि से किया जाता है। इसके पीछे वर्तमान जीवन पद्धति से असंतोष होना भी एक बड़ा कारण है। इस असंतोष के पीछे प्राकृतिक आपदा एवं कृषि से जुड़कर बेरोजगार होना या रोजगार के बहुत कम अवसर प्राप्त होना, एक महत्वपूर्ण कारण है। एक ओर गाँवों में कृषि-जनित असंतोष है, तो दूसरी ओर शहरों में कमाई के बेहतर स्रोत हैं। यही अंतरराज्यीय या राज्य के अंदर पलायन का कारण है।

पलायन की दुखती रग

बेहतर जीवन की आस में पलायन कर लिया जाता है। गंतव्य पर पहुँचकर पता चलता है कि श्रम बाजार में अपेक्षित कौशल का प्रवासियों में अभाव है। इसके कई दुष्परिणाम सामने आते हैं।

  • देश के औपचारिक क्षेत्र में इतनी क्षमता नहीं है कि वह प्रवासी के रूप में प्रतिदिन आने वाले अकुशल ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध करा सके। इसके परिणामस्वरूप अनौपचारिक क्षेत्र में श्रम की उपलब्धता बढ़ती जा रही है। शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से जुड़ने वाले ये श्रमिक अथाह गरीबी और असुरक्षा के वातावरण में जीवनयापन करने को मजबूर हो जाते हैं। भारत जैसे देश में इस प्रकार की अर्थव्यवस्था, एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया बन गई है। सालों से चलते रहने के कारण इसने शहरी बेरोजगारी को बहुत अधिक बढ़ा दिया है।
  • 2014 के डाटा के अनुसार प्रवासी श्रमिकों के साथ काफी भेदभाव भी किया जाता है। स्थायी निवासियों की तुलना में वे केवल दो तिहाई कमाई कर पाते हैं।
  • शहरों तक आने, वहाँ रहने-खाने और रोजगार का साधन ढूंढने तक, उनको काफी पैसा खर्च करना पड़ जाता है।
  • बाहरी व्यक्ति होने के कारण, उन्हें राज्य द्वारा प्रदत्त स्वास्थ्य व शैक्षिक सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। इसकी पूर्ति के लिए वे अपने मालिक से उधार लेते हैं। बार-बार ऋण लेने से एक दिन उनकी गाँव की संपत्ति बिकने की नौबत आ जाती है।
  • अनौपचारिक श्रम बाजार में काम करते हुए इन प्रवासियों को सामाजिक अलगाव का भी सामना करना पड़ता है। शहरों में आने पर इनके मूल निवास, श्रम के प्रकार आदि के आधार पर इनके साथ व्यवहार किया जाता है।

पलायन से हाने वाले लाभ

यद्यपि शहरों की ओर पलायन कर रहे लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तथापि इसके अनेक लाभ भी उन्हें मिलते हैं।

  • पलायन से लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता देखा गया है। कौशलयुक्त, सामाजिक संपर्क और संपत्ति रखने वाले श्रमिकों का जीवन स्तर तेजी से सुधरता है। नीची जाति और आदिवासियों के गांव में रह रहे परिवारों को भी, अपने प्रवासी सदस्य की कमाई के लाभ से गरीबी से मुक्त होते देखा गया है।
  • खासतौर पर इन परिवारों की साख बढ़ जाती है, और इन्हें गांव में आसानी से उधार मिल जाता है।

प्रवासियों के लिए राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता

  • पलायन करने वाले 20 प्रतिशत से भी कम लोग ऐसे होते हैं, जो प्रवास से पहले ही गंतव्य पर रोजगार की व्यवस्था कर पाते हैं। दो-तिहाई प्रवासी ऐसे होते हैं, जो प्रवास के सप्ताह भर के अंदर रोजगार पाते हैं।

देखने में आता है कि प्रवासियों का शिक्षा का स्तर अच्छा होने पर वे प्रवास से पहले ही रोजगार की व्यवस्था करने में सक्षम हो जाते हैं। उन्हें गाँव में ही रोजगार संबंधी सूचनाएं प्राप्त होने में मदद मिलती है। अतः शिक्षा के स्तर को सुधारना, इस नीति की बुनियादी आवश्यकता होनी चाहिए।

  • सरकार को चाहिए कि वह ‘अस्तित्व के लिए प्रवास’ और ‘रोजगार के लिए प्रवास’ जैसे दो मुद्दों को ध्यान में रखकर नीति तय करे।

असंतोष से जन्मे प्रवास को गाँव में ही सुविधाएं बढ़ाकर कम किया जा सकता है। रोजगार संबंधी प्रवास में सरकार को चाहिए कि वह ग्रामीण श्रमिकों के लिए कौशल विकास की व्यवस्था करे, जिससे कि वे प्रशिक्षित होकर औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनकर आर्थिक विकास में योगदान कर सकें।

  • पलायन के चलते शहरों पर बढ़ते भार को देखते हुए बुनियादी ढांचों का विकास तथा शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • देश के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े प्रवासियों की विजातीयता को ध्यान में रखते हुए नीति का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के सरकारी प्रयासों को बाजार आधारित माइक्रोफाइनेंस इनिशिएटिव से जोड़ा जाना चाहिए।

शहरों में काम करने वाले लोगों द्वारा गांवों में अपने परिवारों को भेजा जा रहा धन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनता जा रहा है। देखना यह है कि इस धन का प्रवाह बना रहे, और इसका सही इस्तेमाल हो।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित जी. अरूण कुमार और एम. सुरेश बाबू के लेख पर आधारित। 1 नवम्बर, 2018