ग्रामीण रोजगार में महिलाओं की भागीदारी

Afeias
22 Jul 2020
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Date:22-07-20

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कोविड-19 महामारी ने अनेक लोगों को बेरोजगार कर दिया है। इनमें महिलाओं की भी एक बड़ी संख्या  है। देश के 12 राज्यों के 5000 श्रमिकों पर किए गए एक सर्वेक्षण में से 52% महिला श्रमिक थीं , जिन्होंने बताया कि लॉकडाउन अवधि में पुरूषों की तुलना में उन्हें कामकाज की ज्यादा हानि हुई है। ग्रामों में अस्थायी श्रमिकों में से 71% महिलाओं का रोजगार छिन गया है , जबकि 59% पुरूष पीडि़त रहे हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के डेटा के अनुसार भी 2019 की तुलना में 2020 में ग्रामीण पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को कम रोजगार मिला है।

अनेक डेटा से पता चलता है कि सामान्य स्थितियों में भी ग्रामीण पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को रोजगार के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता है। इसका अर्थ यही है कि महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर ही कम रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के लिए यह संघर्ष और बढ़ गया था।

एक अन्य सर्वेक्षण यह बताता है कि अगर केवल श्रमिक परिवारों की महिलाओं के अलावा गांव के सभी वर्गों की महिलाओं को शामिल करें , तो देखने में आता है कि लगभग सभी किसान परिवार की महिलाएं घर से बाहर वैतनिक कार्य में संलग्न  हैं।

कम आयु की शिक्षित महिलाएं सामान्यत: अधिक कौशल वाले गैर कृषि कर्म करना चाहती हैं।

गांवों में महिला श्रमिकों का वेतन , पुरूषों की तुलना में सामान्यत: कम होता है। इस प्रकार का अंतर गैर कृषि-कर्म में अधिक देखने को मिलता है।

अगर दिन भर में महिलाओं व्दारा किए गए कामों की गिनती की जाए , तो वे निश्चित रूप से पुरूषों की तुलना में अधिक काम करती हैं। गांव की लगभग प्रत्येक महिला सप्ताह में 60 घंटे काम करती है।

मार्च से मई तक लॉकडाउन के महीनों में खेती का काम मंदा होता है। अत: इस दौरान वैसे ही महिलाओं के लिए रोजगार कम रहा । कटाई का काम अधिकतर मशीनों से किया जाता है। सब्जी-बागान में अधिकांशत: परिवार के सदस्य ही काम कर लेते हैं। गैर कृषि-कर्म में रोजगार के अवसर कम ही रहे। दूध की खपत 25% तक घटने से महिलाओं की दुग्ध सहकारी समितियों पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है।

निर्माण कार्य , ईंट-भट्टा खाने-पीने की दुकानें , स्थानीय कारखानें बंद होने से भी रोजगार के अवसर कम हुए। अप्रैल माह में मनरेगा में भी रोजगार उपलब्ध नहीं था।

एक नया रोड मैप –

लॉकडाउन खत्म होने के बाद इस दिशा में कुछ ऐसे सरल उपाय करने की आवश्यकता है , जिनकी मदद से ग्रामीण महिलाओं की कार्यक्षेत्र में भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है।

1. नरेगा का प्रसार किया जा सकता है। मध्यम और दीर्घकालीन उपायों के रूप में , कुछ कुशल व्यवसायों (व्यापार और उद्यमिता ) को महिला-विशेष आधारित किया जा सकता है।

2. प्रस्तावित स्वास्थ्य क्षेत्र के विस्तार में महिलाओं की सक्रिय भूमिका विकसित की जा सकती है। महामारी के दौर में भी आशा और आंगनबाड़ी की महिला कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्यकर्मियों की तरह बढ़-चढ़कर काम किया है। इन महिलाओं के कार्यों को पहचान देते हुए , इसे वैतनिक बनाया जा सकता है।

3. ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के फैलाव में , महिलाओं के लिए परिवहन के सुरक्षित सार्वजनिक साधनों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की बराबर की भागीदारी को मान्यता देने का समय आ गया है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मधुरा स्वामीनाथन के लेख पर आधारित। 4 जुलाई , 2020