वैश्वीकरण के तीन चरण
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1] पहला वैश्वीकरण स्वर्ण युग था और वह स्वेज नहर [1869] से प्रथम विश्व युद्ध [1914] तक विस्तारित था। उस समय भाँप इंजन वाले पोत, टेलीग्राफ और स्वेज नहर ने सीमा पार गतिविधियों में काफी वृद्धि की थी। दूरसंचार तकनीक, कंटेनर पोत, अधिक चौड़ाई वाले विमानों और आधुनिक वित्त व्यवस्था ने सीमापार गतिविधियों को असाधारण स्तर तक बढ़ा दिया था।
2] दूसरा वैश्वीकरण प्रथम विश्व युद्ध के बाद से 2018 तक विस्तारित था। इसकी विशेषताओं में एक थी – विकसित अर्थव्यवस्था के लिए अपनी परिधि में बिना शर्त अबाध पहुँचय जो विश्व अर्थव्यवस्था के मूल में हैं। उस समय प्रमुख देशों ने संभवतः उन देशों को भी आर्थिक और तकनीकी सहायता दी, जो शायद शत्रुतापूर्ण रूख तक रखते थे। व्यापार में वृद्धि हो रही थी और हर देश एक अच्छे उदार लोकतंत्र में तब्दील होने वाला था। ऐसे में प्रायः शत्रु राष्ट्रों के साथ ज्ञान को साझा करने की परंपरा आरम्भ हुई।
3] तीसरा वैश्विकरण 2018 के बाद की अवधि में घटित हुआ। और इस दौरान उन देशों को सीमित प्रमुखता मिली, जिनकी विदेश नीति और सैन्य रूख शत्रुतापूर्ण रहे हैं। तीसरा वैश्विकरण व्यापार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी पुर्नगठित कर रहा है। वैश्विक व्यापार 2018-2023 के बीच पुर्नगठित हुआ और यह तीसरे वैश्विकरण को दर्शाता है।
तीसरे वैश्विकरण में भारत-
- भारत की चीन के साथ अच्छी खासी व्यापार संबद्धता है, जिसके साथ सम्मान से पेश आना होगा, क्योंकि कोई भी अचानक आने वाली उथलपुथल अनुत्पादक सिद्ध हो सकती है।
- वस्तुए सेवा, जनता, पूंजी और विचारों के स्तर पर भारत के लोगों की विदेशी संबद्धता प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों के साथ है। ऐसे में भारत के हित यथास्थिति वाली शक्ति बने रहने में है।
- भारतीय कंपनियाँ वैश्विकरण से पूरी तरह संबद्ध हैं। इन कंपनियों की रणनीतिक सोच में विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणाली, अलोकतांत्रिक देशों में कारोबारी सुगमता से जुड़े जोखिम तथा स्थापित देशों द्वारा तय किए जाने वाले नियमों में परिवर्तन को लेकर अधिक बेहतर समझ पैदा करनी होगी।
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