आर सी ई पी से अलग खड़ा भारत

Afeias
04 Dec 2020
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Date:04-12-20

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हाल ही में 15 देशों के बीच हुए क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी ( आर सी ई पी ) के समझौते से भारत की दूरी ने उसके लिए कई चुनौतियां खड़ी की है। यह भागीदारी इन देशों के बीच मुक्त व्यापार पर टिकी है। संधि के तहत चीन ने अपने बाजार को और अधिक उदार बनाने की बात कही है। इस निर्णय से भारत के लिए एक कठिन दौर की शुरूआत हो सकती है।

भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों के प्रमुख बिंदु –

  • भारत की तुलना में बढ़ती चीन की आर्थिक स्थिति ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की प्रभुता को चुनौती दी है। इतना ही नहीं पूरे दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया में फैले भारत के पड़ोसियों ( इनमे आसियान के देश भी शामिल हैं ) के लिए चीन की बढ़ती शक्ति निरंतर एक खतरा बनती जा रही है।
  • चीन के विरूद्ध भारत ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका से समझौता करने की मंशा जाहिर की है। परंतु दूसरी ओर भारत चीन विरोधी समूहों से दूर ही रहता है। क्वाड समूह के हिसाब से दक्षिणपूर्वी एशिया की रक्षा पहली प्राथमिकता है। लेकिन भारत की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि फिलहाल वह इस क्षेत्र में रक्षा क्षमता बढ़ा सके।
  • चीन के बेल्ट-रोड़ कार्यक्रम ने विश्व की दो-तिहाई आबादी तक पहुँच बना रखी है। भारत का जीडीपी भी चीन की तुलना में काफी कम है। कोविड के चलते जहाँ भारत की अर्थव्यवस्था में 24% की गिरावट देखी जा रही है,वहीं जुलाई-सितम्बर की तिमाही में चीन ने लगभग 5% की प्रगति दर्ज की है।
  • भारत को पिछले अगस्त में आसियान देशों के साथ व्यापार के 30 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद थी वही यह व्यापार चीन के साथ 64.4 अरब डॉलर पहुँच गया था। 2020 के शुरूआती तीन महीनों में यह चीन का सबसे बड़ा वाणिज्यिक साझेदार बन चुका था।
  • इसके अलावा एशिया-प्रशांत आर्थिक सम्मेलन और ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापाक और प्रगतिशील समझौते से खुद को अलग रखने से भारत के आर्थिक भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
  • आर सी ई पी देशों का मानना है कि एक-दूसरे के लिए व्यापार बाधाओं को कम करने से उनकी सामूहिक समृद्धि होगी। वे समझौते के अन्य सदस्यों से आयात का पक्ष लेंगे। इसलिए भारत के निर्यात को उनके बाजारों तक पहुंच बनाना कठिन होगा।
  • दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी एशियाई देशों को शामिल करने वाले किसी भी आर्थिक समूह में भारत के अनुपस्थित रहने से और चीन के रक्षा खर्च की बराबरी कर पाने में भारत की असमर्थता के चलते, ये देश भारत के वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में स्वयं को प्रचारित करने का स्वागत नहीं करेंगे।

भारत को अपनी अर्थव्यवस्था और व्यापार प्रथा को उदार बनाने के लिए रणनीति तैयार करनी चाहिए। संरक्षणवाद और भूलभुलैया नियमों से निर्यात स्तरीय उत्पाद और अमेरिका, एशियाई और यूरोपीय मित्र राष्ट्रों के साथ किए गए व्यापार वाणिज्य समझौते हतोत्साहित होते हैं।

आर सी ई पी के सभी देश कोरोना महामारी के बावजूद आर्थिक प्रगति के चिन्ह दिखा रहे हैं। केवल यही नहीं, बल्कि आज विश्व का अधिकांश व्यापार बड़े-बड़े विश्वस्तरीय समझौते के माध्यम से ही किया जा रहा है। भारत, इन सबसे अलग जाने का प्रयत्न कर रहा है। इससे वह विश्व अर्थव्यवस्था से अलग हो जाएगा, और भविष्य में वंचित अनुभव कर सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अनिता इंदर सिंह के लेख पर आधारित। 19 नवम्बर, 2020

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