यूनिकॉर्न की सफलता का सच
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- गत वर्ष, भारतीय यूनिकॉर्न पारिस्थितिकी तंत्र ने 100 यूनिकॉर्न का लक्ष्य प्राप्त करके अद्भुद सफलता का आंकड़ा पार कर लिया है।
- यह एक बड़ी उपलब्धि है। इसने भारत को अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे स्थान पर ला खड़ा किया है।
- लेकिन इन यूनिकॉर्न के बारे में कहानी कुछ और भी है। ये कितने असली या नकली हैं?
यहाँ हम इंटरनेट आधारित ई.कॉमर्स, ऑनलाइन यात्रा पोर्टल, फूड डिलीवरी व्यवसाय आदि के बारे में बात कर रहे हैं।
- 1990 के उत्तरार्द्ध में इन कंपनियों का लक्ष्य वेबसाइट विजिटर प्राप्त करना था। लेकिन धीरे से यह कंपनी के राजस्व पर शिफ्ट हो गया।
- ये कंपनियां हर साल घाटे में चलने लगीं। लेकिन निवेशक पर्याप्त मिलते रहे और ये खुशी से कंपनी को फंड भी करते रहते हैं।
- घाटे के बावजूद वेंचर कैपिटलिस्ट इन्हें फंड करके वैल्यूएशन को ऊंचा और ऊंचा करते रहे हैं और करते जा रहे हैं।
इसका कारण यह है कि आज व्यवसायों को भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। इंटरनेट की दुनिया में आप कहीं से कहीं का व्यवसाय संभाल सकते हैं। जब तक आपकेपास पैसा है, और आप मार्केटिंग पर खर्च कर सकते हैं, आप जितनी तेजी से चाहते हैं, उतनीतेजी से बढ़ सकते हैं। इस तरह से भारी धन की व्यवस्था कर सकने वाले व्यवसाय प्रमुख खिलाड़ी बन गए हैं।
जो ऐसा नहीं कर सकते, उन्हें ये दिग्गज खरीद लेते हैं या फिर वे वहीं खत्म हो जाते हैं। अमेजन, मेक माइ ट्रिप जैसे बड़े खिलाड़ियों के नाम आपने सुने ही होंगे। इनका ही बाजार में बोलबाला है, और इसलिए वेंचर कैपिटलिस्ट इन्हें फंडिंग देना जारी रखते हैं। उन्हें बाजार में प्रमुख खिलाड़ी बनने देते हैं। एक बार ऐसा हो जाने पर वे मुनाफे की दिशा में काम करते हैं।
इस प्रकार निवेशक, किसी भी कीमत पर राजस्व से आगे बढ़कर लाभ की राह की ओर देख रहे हैं। यह बदलाव पूरे विश्वस्तर पर लागू हो रहा है। सवाल यह है कि क्या स्थिरता पर रखा जाने वाला फोकस बना रहेगा? क्या हम किसी भी कीमत पर राजस्व वाली स्थिति पर वापस जाएंगे ?
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित ध्रुव नाथ के लेख पर आधारित। 27 अगस्त, 2022