तीन नोबेल विजेता अर्थशास्त्री और उनसे जुड़ी क्रांति

Afeias
02 Dec 2021
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इस वर्ष अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार गाइडो इमबेंस डेविड कार्ड और जोशुआ एंग्रिस्ट को दिया गया है। इन तीनों अर्थशास्त्रियों ने अपने रिसर्च और प्रयोगो के जरिए महत्वपूर्ण मान्याताओं को परखने और गलत प्रामाणित करने की दिशा में बड़ा काम किया है।

मुख्य बातें –

  • इन तीनों पुरस्कार विजेताओं से जुड़ी ‘विश्वसनीयता क्रांति’ या ‘क्रेडिबिलीटी रेवल्यूशन’ का लक्ष्य अर्थशास्त्र पर लगाए गए सिद्धांतों के बंधनों से उसे मुक्त करना है। अतः इनका लक्ष्य तथ्यों को इस तरह से स्थापित करने का रहा, जो आर्थिक सिद्धांत के भवन पर निर्भर न हों।
  • अर्थशास्त्रियों ने अपना ध्यान वास्तविक जगत में विशेष नीतिगत हस्तक्षेपों के प्रभावों पर रखा, क्योंकि वे चाहते थे कि इन प्रभावों का उपयोग, दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए किया जा सके।
  • डेविड कार्ड ने अपने दिवंगत सहयोगी एलन क्रुएगर के साथ मिलकर, बेरोजगारी पर न्यूनतम वेतन के प्रभाव का अध्ययन किया।

अभी तक के हाईस्कूल स्तर के अर्थशास्त्र से हम सबको यही पता था कि न्यूनतम वेतन को बढ़ाने से बेरोजगारी बढ़ती है। इसको परखने के लिए उन्होंने दो पड़ोसी राज्यों के रेस्टॉरेंट में प्रयोग किये। परिणामतः एक में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

अपने करियर के दौरान, डेविड कार्ड ने ऐसे कई परिणामों का खुलासा किया है, जिन्होंने अर्थशास्त्र के ‘सामान्य ज्ञान’ को चुनौती दी है।

  • डेविड कार्ड के ही एक छात्र जोशुआ एंग्रीस्ट ने उनके इन्हीं प्रयोगों को आगे बढ़ाया है।

उदाहरण के तौर पर जोश ने महिलाओं की श्रमआपूर्ति पर प्रजनन क्षमता के प्रभाव को मापने के लिए इस तथ्य का इस्तेमाल किया कि अमेरिकी परिवारों में बच्चों की विविधता को प्राथमिकता दी जाती है। एक ही लिंग के दो बच्चे जनने वाली माता के घर से बाहर काम की संभावना कम होती है, क्योंकि उसे तीसरे बच्चे के लिए तैयार होना है।

  • जोश और गाइडो इम्बेन्सन ने प्राकृतिक प्रयोग, उनका विश्लेषण और व्याख्या पर काम किया। दोनों ने हमें दिखाया कि एक आदर्श अनियमित प्रयोग के लेंस से दुनिया की व्याख्या करना तब भी उपयोगी सिद्ध हुआ, जब यह प्रयोग लागू नहीं किया जा सका था।

इन विद्वानों की विरासत के रूप में हमें चौंकाने वाले डेटा अक्सर मिलते रहेंगे। महामारी के दौरान रोजगार खो देने वाले लोगों पर किए गए एक प्रयोग से कुछ ऐसे ही तथ्य सामने आए। पाया गया कि लोगों को बेरोजगार रहकर अधिक धन लेने के बजाय काम करना पसंद है।

यह प्रयोग इतना हैरान करने वाला साबित हुआ कि कुछ नेताओं और पत्रकारों ने इस पर विश्वास करने से मना कर दिया। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इसे ‘अर्थशास्त्र बनाम सामान्य ज्ञान’ बताया।

लोगों को यह समझाने के लिए अभी भी कुछ काम किया जाना है कि यदि डेटा उनके सिद्धांत के अनुकूल नहीं हैं, तो उनके सिद्धांत को बदलने की आवश्यकता हो सकती है। इस यात्रा में अर्थशास्त्र का क्षेत्र सही बैठता है। इसके लिए हम सब तीनों अर्थशास्त्रियों के ऋणी हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित एस्थर डफलो और अभिजीत बनर्जी के लेख पर आधारित। 15 अक्टूबर, 2021

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