कृषि क्षेत्र की चुनौतियां और जीन क्रांति

Afeias
23 Oct 2019
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Date:23-10-19

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देश कृषि संकट से गुजर रहा है। गुजरात में पानी की कमी के कारण बुवाई पर रोक है। तो कहीं अधिक पैदावार की वजह से उपज की पर्याप्त कीमत नहीं मिल पा रही है। हरित क्रांति ने उपज तो बढ़ा दी है, लेकिन बदलते वक्त में खेती के सामने अलग चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं। ऐसी खोज जरूरी है, जो क्लाइमेटिक जोन और पानी की उपलब्धता को देखते हुए कृषि उत्पादकता को बढ़ा सके। पिछले दो दशकों में भारत में इससे संबंधित ‘जीन क्रांति’  पर कोई काम नहीं हुआ है।

घटते प्राकृतिक संसाधनों और बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा को देखते हुए कृषि क्षेत्र की चुनौतियां बढ़ गई हैं।

  • देश का 53 प्रतिशत क्षेत्रफल असिंचित है।
  • जरूरत के मुताबिक छोटे व सीमांत किसानों को न तो उन्नत बीज और न ही उन्नत तकनीक मिल पा रही है।
  • उचित फर्टिलाइजर, कीटनाशक और एग्रो मशीनरी तैयार करने की कोशिश तो हुई है, लेकिन इसके आगे की जीन तकनीक भारत में उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
  • करीब 40 वर्ष पहले तैयार गेहू की दो-तीन प्रजातियों का कब्जा देश की दो-तिहाई खेती पर है। गेहूं की लगभग साढ़े चार सौ प्रजातियां तैयार की जा चुकी हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर की सिंचाई छः या अधिक बार करनी पड़ती है।
  • नीतिगत स्तर पर कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में बजटीय आवंटन बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल कृषि अनुसंधान पर कुल सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.3 प्रतिशत खर्च हो रहा है। इसे बढ़ाकर एक प्रशित करने की आवश्यकता है।

हरित क्रांति से भिन्न जीन क्रांति

हरित क्रांति पारंपरिक प्रजनन विधियों पर निर्भर एक गहन पादप प्रजनन कार्यक्रम है। जबकि जीन क्रांति सूक्ष्मजीव विज्ञानी तकनीक के आधार पर हेरफेर की गई फसल विशेषताओं का परिणाम है।
हरित क्रांति की शुरूआत मैक्सिको के नए गेहूं और फिलीपींस के चावल से हुई थी। जबकि जीन क्रांति की शुरूआत अमेरीका में हर्बिसाइड-प्रतिरोधी तम्बाकू के पहले ट्रांसजेनिक प्लांट के उत्पादन से हुई।
हरित क्रांति में क्रॉसब्रीडिंग, टिशू कल्चर और भू्रण स्थानांतरण जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। जबकि जीन क्रांति जैव प्रौद्योगिकी पर आधारित जीन गन जैसी तकनीकों पर आधारित है।

जीन क्रांति का प्रसार और भारत

अमेरिका, कनाड़ा और पड़ोसी देश चीन में इस तकनीक का प्रयोग तेजी से किया जा रहा है। इससे उन देशों में फसलों की उत्पादकता कई गुना तक बढ़ गई है।
भारत में इसके प्रयोग पर परोक्ष-पाबंदी लगी हुई है। बायो तकनीक विधेयक संसद में लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ है। इसके बगैर इस दिशा में आगे बढ़ना संभव नहीं हो पा रहा है।
1990 में शुरू हुई इस क्रांति पर 1999 तक ब्रिटेन और कई अन्य देशों में आनुवांशिक रूप से संशोधित भोजन के पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य प्रभावों पर ध्यान केन्द्रित करने वाली एक प्रमुख बहस छिड़ गई है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आनुवांशिक रूप से संशोधित उत्पादों पर भारी प्रभाव पड़ा है।
भारत में फिलहाल इस तकनीक से बीटी-कपास का उत्पादन किया जा रहा है। बीटी बैंगन को लेकर काफी विवाद हो चुका है, क्योंकि इसके स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को नकारा नहीं जा सका। यही कारण है कि अन्य देशों में बीटी-मक्का, सोयाबीन आदि के बंपर उत्पादन के बाद भी भारत इस दिशा में पहल नहीं कर पा रहा है।

विभिन्न स्रोतों पर आधारित।

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