कृषि वानिकी से आर्थिक क्रांति की ओर

Afeias
02 Jan 2020
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Date:02-01-20

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देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान लगभग 15 प्रतिशत है। देश का 50 प्रतिशत कार्यबल अभी भी कृषि-कर्म में ही लगा हुआ है। अतः कृषि और उससे जुड़े कार्यबल को साथ लिए बिना हम अर्थव्यवस्था का समुचित विकास नहीं कर सकते। इसके लिए कृषि को लाभ का सौदा बनाने की आवश्यकता है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए कृषिवानिकी जैसी तकनीकों का सहारा लिया जाना चाहिए।

कृषि वानिकी कोई नया या अनोखा विचार नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जो पेड़ों, झाड़ियों, जड़ी-बूटियों आदि के पॉलीकल्चर को प्रोत्साहित करता है, मृदा को उपजाऊ रखता है, तथा जल की मात्रा पर्याप्त रखता है। इस प्रकार इस विज्ञान से पारिस्थीकी और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे के परिपूरक बन जाते हैं। स्थिरता या धारणीयता जीवन का एक तरीका था। अगर हम इसे किसानों के जीवन में फिर से ले आएं, तो कृषि क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था में एक क्रांति आ सकती है।

  • नदियों की बाढ़ भूमि की रक्षा के लिए एक मुहिम चलाई गई है। इससे मृदा की गुणवत्ता तथा जल के स्तर को यथावत बनाए रखा जा सकता है। नदियों के किनारे पेड़ लगाकर और क्षेत्रीय जलवायु के अनुसार कृषि के तरीके में परिवर्तन करके, कृषि वानिकी के माध्यम से सफलता पाई जा सकती है। इसके साथ ही बाजार की मांग तथा सिंचाई के विकल्पों पर भी काम करना होगा। इससे पॉलीकल्चर को प्रोत्साहन मिलता है। किसानों की आय बढ़ती है। महाराष्ट्र, ओड़ीशा, झारखंड, उत्तराखंड और कर्नाटक ने इस प्रकार की नीति बनानी प्रारंभ कर दी है।
  • विश्व के अवैध इमारती लकड़ी बाजार में भारत तीसरा बड़ा आयातक देश है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार यह बाजार प्रतिवर्ष 20 प्रतिशत की दर से बढ़ने वाला है।

भारतीय किसानों की आय बढ़ाने के लिए यह उपयुक्त क्षेत्र है। अपने खेतों में किसान पेड़ लगाएं। इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि की जा सकती है। मुसीबत के समय ये पेड़ किसानों के लिए बीमा का काम करेंगे।

कृषि वानिकी से जुड़ा अभियान ‘कावेरी-कॉलिंग’ है, जो हमारी मृदा और जल को बचाए जाने का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। पिछले पाँच दशकों में कावेरी नदी का जल 40 प्रतिशत कम हो गया था, तथा हरित क्षेत्र भी 87 प्रतिशत घट गया था। इस अभियान के माध्यम से अनेक किसानों की जान बचाई जा सकी है। कावेरी बेसिन क्षेत्र के खेतों में अनेक पेड़ लगाकर किसानों की आय का साधन जुटाया गया है। इससे आर्थिक, पारिस्थितीकी और जैव-विविधता के क्षेत्र में अद्भुत सफलता प्राप्त की जा सकी है।

कृषि में एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, और इसी के माध्यम से हम इसमें लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित किरण मजूमदार शॉ के लेख पर आधारित। 11 दिसम्बर, 2019

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