रूस की अक्टूबर क्रांति

Afeias
23 Nov 2017
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Date:23-11-17

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1917 में हुई रूस की अक्टूबर क्रांति की चर्चा के बिना 20वीं शताब्दी का इतिहास लिखा नहीं जा सकता। 7 नवम्बर को रूसी समाजवादी क्रांति की शताब्दी पूर्ण हुई। एक देश के लिए यह ऐसी कहानी है, जिसने उसे बहुत ही कम समय में एक गरीब कृषि प्रधान देश से सैनिक और औद्योगिक ताकत बना दिया। इसे रूसी लोगों के साहस, त्याग और पीड़ा की कथा भी कहा जा सकता है। क्रांति के इस शताब्दी वर्ष में ऐसे भी कई विद्वान हैं, जो इसे विफल मानते हुए, उस दृष्टिकोण से इसका अध्ययन करना चाहते हैं। परन्तु तथ्य कुछ और ही बयां करते हैं।

अक्टूबर क्रांति का विचार इतना शक्तिशाली था कि इसने विश्व के अधिकांश दमित लोगों के दिलों को छू लिया। शोषण एवं गुलामी से मानव मात्र को स्वतंत्र करना ही क्रांति का मुख्य लक्ष्य था। इसने ऐसे पूंजीवाद को नकारकर समाजवाद की स्थापना की, जिसमें एक मानव दूसरे का शोषण करता है। इस क्रांति ने प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को सद्भावपूर्ण बनाया एवं हर व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक सोपान के लिए तैयार कर दिया।अक्टूबर क्रांति ने पूरे विश्व के ऐतिहासिक एवं वैचारिक परिदृश्य को ही बदलकर रख दिया। इसने न केवल जार के शासन को परिवर्तित किया, बल्कि समस्त विश्व पर दूरगामी प्रभाव डाला।

  • अक्टूबर क्रांति का एशिया एवं भारत पर प्रभाव

समस्त विश्व के स्वतंत्रता आंदोलनों पर क्रांति का व्यापक प्रभाव पड़ा। इसमें भारत भी शामिल था। भारतीय स्थितियों में आज भी इसका उतना ही प्रभाव है। वर्तमान के समाजवादी एवं माक्र्सवादी दल इसका उदाहरण हैं। हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रणेताओं ने भी रूसी क्रांति के विचारों का समर्थन किया था।अक्टूबर क्रांति के नेता लेनिन ने एशियाई देशों के समाजवादियों से अपील की थी कि वे अपने देश के अनुभवों एवं जरूरतों के अनुसार क्रांति की नई विचारधारा बनाएं। यद्यपि रूसी समाजवादी अतिवादी थे, लेकिन उन्होंने बाकी देशों को रूसी क्रांति की नकल न करने की ही सलाह दी। ‘‘काँक्रीट एनालिसिस ऑफ़ काँक्रीट कंडीशन्स’’ (ठोस परिस्थितियों का यथार्थपूर्ण विवेचन), यही लेनिन के द्वंद्ववाद की परिभाषा थी।

दरअसल, एशियाई देशों की परिस्थितियाँ काफी जटिल रही हैं। इसकी सामाजिक-आर्थिक संरचना की ऐतिहासिक परंपरा है। माक्र्स ने भी कहा था कि एशिया के सामाजिक एवं आर्थिक संबंध एक- दूसरे पर आरोपित हैं। माक्र्स ने इसे ‘‘एशियाटिक मोड ऑफ़ प्रोडक्शन’’ का नाम दिया था। लेनिन ने इन देशों के माक्र्सवादियों को अपने यहाँ की स्थितियों का विवेचन करके रणनीति बनाने को कहा था। भारत में जातिभेद और लिंगभेद जैसी जटिल संरचना रही है।

लेनिन के साम्राज्यवाद के विचार ने भी एशियाई देशों के समाज को समझने में सहयोग दिया। पूर्वी देशों में पूंजीवाद का स्वरूप जटिल है। पूंजीवाद की पश्चिमी अवधारणा पूर्वी देशा में विध्वंसक साबित हो रही है। इसने इन देशों की जैव विविधता, प्राकृतिक संसाधनों, आदिवासियों, कृषकों एवं पर्यावरण के लिए संवेदनशील तंत्र को नष्ट कर दिया है। पूंजीवाद पर आधारित विकास का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण ने किसानों को कंगाल कर दिया है। यही कारण है कि वे आत्महत्या करने को मजबूर हो गए हैं। रासायनिक खाद के अत्याधिक प्रयोग से खाद्यान्न, दूध, सब्जी का दूषित होना प्राणघातक बीमारियाँ तथा आए दिन होने वाले सड़क हादसे भी अन्य ऐसे ही उदाहरण हैं, जो भारत में पूंजीवादी विकास का नमूना पेश करते हैं।

पूंजीवादी-साम्राज्यवादी विकास का ही नया नाम नवउदारवाद है। इसने समाज में बहुत अधिक असमानता उत्पन्न कर दी है। सामाजिक मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। अपनी राजनीतिक शक्ति को सुरक्षित रखने के लिए सत्ताधारी दक्षिणपंथी वर्ग और  अधिक फासीवादी होता जा रहा है, और वह प्रजातंत्र तथा उससे संबंद्ध संसद जैसी प्रजातांत्रिक संस्थाओं में सेंध लगा रहा है।अक्टूबर क्रांति  पूर्वी देशों में पूंजीवाद को बेहतर समझने में हमारी मदद कर सकती है। भारत में धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र, सामाजिक न्याय एवं समाजवाद की रक्षा के लिए सभी शोषित एवं दमित वर्गों को एकजुट होना होगा। यह अनिवार्य हो गया है कि भारतीय परिस्थितियों में समाजवादी माक्र्सवाद को वैज्ञानिक विचारधारा के रूप में सामने रखें। अभी मानवता को कई अक्टूबर क्रांतियों की आवश्यकता है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित डी. राजा के लेख पर आधारित।

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