सहकारिता की आत्मा की रक्षा जारी रहे

Afeias
30 Jul 2021
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Date:30-07-21

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देश के विकास में सहकारी क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। परंतु इसे नीतिगत योजनाओं में कभी विशेष महत्व नहीं दिया गया है। हाल ही में हुए मंत्रिपरिषद् के विस्तार में सहकारिता से संबंधित नवीन मंत्रालय बनाया गया है। केंद्र का मानना है कि इस माध्यम से सहकारिता क्षेत्र को उपेक्षा से बचाया जा सकेगा।

इस क्षेत्र की वैधानिक शुरूआत वर्ष 1904 में औपनिवेशिक शासन के दौरान ही कर दी गई थी। वर्ष 2002 में मल्टी स्टेट कॉपरेटिव सोसायटी एक्ट पारित किया गया। इसका उद्देश्य आर्थिक उदारवाद से उपजी चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटना था।

सहकारी संघों का अस्तित्व कृषि में अधिक है। खाद से जुड़े एक तिहाई बाजार का नियंत्रण इफ्को जैसे सहकारी संघ के पास है। दूध, कपास, हस्तशिल्प, खाद्य तेल, चीनी और मत्स्य पालन आदि क्षेत्रों में सहकारी संघों की अच्छी पकड़ है। केरल राज्य में तो सहकारी संघों ने अपने आई टी पार्क और मेडिकल कॉलेज भी बना लिए हैं। बीमा जैसे क्षेत्र में भी सहकारिता की मांग की जा रही है।

सहकारिता का उद्देश्य अधिकतम लाभ की बाजार-अर्थव्यवस्था से संचालित होना नहीं है, बल्कि सभी हितधारकों को समान रूप से लाभ साझा करना है। सहकारी समितियों ने गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। परंतु इस क्षेत्र की स्थिति संपूर्ण भारत में एक समान नहीं है। कुछ राज्यों में यह क्षेत्र कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार का केंद्र बन गया है।

राजनीतिक नियंत्रण के एक उपकरण के रूप में सहकारी समितियों की शक्ति को प्रभारी मंत्री, अमित शाह अच्छी तरह से जानते हैं। एक समय पर वे स्वयं जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष थे। मुख्य धारा से पिछड़े इलाकों और क्षेत्रों की सेवा करने के अलावा, सहकारी समितियां स्थानीय स्तर पर राजनीति में मध्यस्थता करने में भी प्रभावी हैं।

आरबीआई और राज्यों द्वारा नियामक निरीक्षण के बावजूद, इस क्षेत्र को काफी स्वायत्तता दी गई है, जिसका अक्सर दुरूपयोग किया जाता है। इसका उपाय इसे केंद्रीय मंत्री के अधीन लाना नहीं है। इस क्षेत्र में पारदर्शिता और दक्षता का मामला मजबूत है। अतः लक्ष्य का पीछा क्षेत्र की आत्मा को भयभीत करके नहीं, बल्कि सहकारी भावना को आगे बढ़ाकर किया जाना चाहिए। नियुक्त मंत्री भले ही उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन उन्हें कमांड आथॉटिटी की भूमिका में नहीं दिखना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 12 जुलाई, 2021