पश्चिमी घाट की रक्षा की जानी चाहिए

Afeias
06 Oct 2020
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Date:06-10-20

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दक्षिण-पश्चिम मानसून अपने अवसान की तरफ है , और इसके साथ ही वह भारत के कई राज्यों में विकरालता और विनाश की एक लंबी कतार छोडे़ जा रहा है। केरल , तमिलनाडु , कर्नाटक , गोवा , महाराष्ट्र और गुजरात जैसे भारत के छः राज्य , जो पश्चिमी समुद्री तट से जुड़े हैं , जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित नजर आ रहे हैं। इन राज्यों के न केवल नगर और कस्बे ही प्रभावित हुए हैं , बल्कि पर्वतश्रृंखलाएं भी प्रभावित हैं। इस वर्ष कोंकण तट से शुरू हुए निसर्ग तूफान ने रायगढ़ और रत्नागिरी जिलों को तहस-नहस कर दिया। केरल जैसे तटीय राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की विकरालता पाँच वर्षों से महसूस की जा रही है।

पश्चिम घाट क्षेत्र में जलवायु से जुड़ी अनिश्चितता को कुछ तथ्यों से समझा जा सकता है –

  • पश्चिमी घाटों में सम वर्षा की प्रकृति बदल गई है।
  • यहाँ होने वाली मध्यम वर्षा के दिनों में कमी आ गई है।
  • अल्प या अति वृष्टि के दिनों में बढ़ोत्तरी हो गई है
  • बड़ी संख्या में भूस्खलन की घटनाएं होने लगी हैं।

हालांकि इनका मुख्य कारण प्राकृतिक परिदृश्य में मानव का हस्तक्षेप माना जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन के अलावा पश्चिमी घाट में होने वाले अनेक प्राकृतिक परिवर्तन का कारण मानवजन्य है –

  • गोवा में 2006-11 तक पैंतीस हजार करोड़ के करीब का अवैध खनन किया गया। इसमें अनेक वन बर्बाद हुए।
  • वनों की कटाई , खनन , बहुमंजिला इमारतों के निर्माण के लिए पहाड़ियों को अवैज्ञानिक आकार देना , एक-फसलीय कृषि चक्र आदि ऐसे कारण हैं , जिनसे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं।
  • इसरो के एक अध्ययन के अनुसार 1920-2013 की अवधि में पश्चिमी घाट का 35% क्षेत्र नष्ट हो चुका है।
  • अवैध और अवैज्ञानिक गतिविधियों के चलते इस क्षेत्र में सूखा , अकाल , पानी की कमी , तथा उपज में कमी आदि बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
  • इस क्षेत्र से बहने वाली 58 नदियों का पानी प्रदूषित हो गया है। इससे देश की लगभग एक चैथाई आबादी प्रभावित हो रही है।

समाधान

  • इस पूरे क्षेत्र में सरकार को भूस्खलन संबंधी विस्तृत ऑडिट कराना चाहिए। प्रवण क्षेत्रों की जनता को पुनरूथापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • ऐसे ही नदियों का ऑडिट करके बाढ़-क्षेत्र की पहचान की जानी चाहिए।
  • अति वर्षा की चेतावनी का तंत्र विकसित किया जाए।
  • पारिस्थितिकी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में खनन को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
  • कृषक और आदिवासी समुदाय को धारणीय कृषि के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • प्रस्तावित जल परियोजनाओं की पुनः समीक्षा की जानी चाहिए।

नीति निर्माताओं और पश्चिमी घाट से जु़ड़े छः राज्यों की सरकारों को एकजुट होकर अतिप्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र को लोप होने से बचाने के प्रयास के लिए आगे आना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित लेख पर आधारित । 17 सितंबर , 2020

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