लद्दाख की आवाज सुनी जानी चाहिए

Afeias
27 Feb 2024
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हाल ही में लद्दाख को राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से ही लद्दाखवासी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लूटा हुआ महसूस कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर को विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है, लेकिन लद्दाख आज बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है। स्थानीय निवासियों की आशंकाओं और मांगों से जुड़े कुछ बिंदु –

  • प्रारंभ में, लद्दाख ने केंद्र शासित दर्जे का स्वागत किया था, क्योंकि यहाँ के निवासी राज्य प्रशासन पर सेवाओं और प्रतिनिधित्व के मामलों में भेदभाव का आरोप लगाते रहे थे।
  • जम्मू-कश्मीर विधानसभा में लद्दाख की चार सीटें और विधान परिषद में दो सदस्य थे। अब घटते प्रतिनिधित्व के कारण यह डर पैदा हो गया है कि बाहरी लोग लद्दाख के लिए निर्णय लेंगे। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में प्रवासियों के आगमन की भी आशंका हो गई है।
  • इन सबको लेकर मुस्लिमबहुल कारगिल और बौद्धबहुल लेह की चार मांगें सामने आई हैं –

1] राज्य का दर्जा,

2] छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करना,

3] स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण और

4] कारगिल और लेह के लिए एक-एक संसदीय सीट।

  • स्थानीय निवासियों के अनुसार नई दिल्ली के उपराज्यपाल के अधीन लद्दाख स्वायत्तता पर्वतीय विकास परिषदों में नौकरशाही शासन होने लगा है। इसके तहत अगर औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास किया गया, तो पर्यावरणीय आपदाएं हो सकती हैं।
  • दूसरी ओर, लद्दाख की सीमा चीन और पाकिस्तान दोनों से लगती है। चीन-पाकिस्तान धुरी से निपटने के लिए स्थानीय समर्थन के साथ स्मार्ट बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता है।
  • यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों में बेदखली की भावनाएं एक सुरक्षा मुद्दा पैदा करती हैं। यहां के स्थानीय लोगों को निर्णय लेने में भागीदारी के माध्यम से सशक्त महसूस करने की आवश्यकता है।

अतः जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में तेजी लाई जानी चाहिए। लद्दाख को एक निर्वाचित विधायिका वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना चाहिए। केंद्र की सुरक्षा रणनीति में लद्दाख का पर्याप्त लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व शामिल होना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 फरवरी, 2024

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