कमजोरों की भी सुनी जाए

Afeias
04 Jan 2021
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Date:04-01-21

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सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए सरकार ने कृषि कानूनों में संशोधन करते हुए इसे बाजार प्रवण बना दिया है। लेकिन देश के कृषकों में सबसे धनी माने जाने वाले उत्तर भारतीय किसान ही इसका विरोध कर रहे है। जबकि सरकार का कहना है कि किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। कृषि के बारे में कुछ तथ्यों को जानकर ही किसानों के विरोध की सच्चाई को परखा जा सकता है –

  • अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत के कृषि क्षेत्र में 57% कार्यबल संलग्न है, जबकि यह केवल 17% कार्यबल को रोजगार देने की क्षमता रखता है।
  • इसके लिए 20 करोड़ श्रमिकों को अन्य क्षेत्रों में पलायन करना होगा। इस कार्यबल को रोजगार देने के लिए अन्य क्षेत्रों; विशेषकर विनिर्माण में रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। समस्या यह है कि उत्पादकता की गति मंद होने से विनिर्माण का क्षेत्र भी यह नहीं कर पा रहा है।
  • कृषि उत्पादों की कम कीमत और मजदूरी में वेतन कम होने के पीछे राजनीतिक-आर्थिक कारण हैं। अनियमित बाजारों में हमेशा की तरह व्यापार की शर्तें, छोटे की तुलना में बड़े समूहों के पक्ष में रहती हैं। ‘खुले बाजारो’ में बड़े लोग अपने पक्ष में कीमत तय कर देते हैं, और छोटे किसानों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
  • उत्तर भारत के धनी किसान पुरानी व्यवस्था के लाभार्थी हैं। वे इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध इसलिए कर रहे हैं कि इससे अभी तक सरकारी नीतियों के लाभ से वंचित गरीब किसानों को खुले बाजार का लाभ न मिल सके।
  • मुख्य मुद्दा यह है कि अभी तक देश के जिन भागों में सरकार की कृषि नीति की पहुँच कम रही है, वहाँ के किसानों की आय में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य भी कुछ ही फसलों पर दिया जाता है, जो लगभग 10% ही कवर करता है।
  • ए पी एम सी मंडी केवल 17% बाजारों तक पहुँच रखती है। अभी तक 7000 से कम ऐसी मंडियां हैं, जबकि 42000 की जरूरत है। ऐसे में अविनियमन किसानों की मदद कैसे कर सकता है?

भारत की प्रगति को न्यायपूर्ण और समावेशी बनाने के लिए तीन मूलभूत सुधार किए जाने चाहिए –

  1. नीति निर्माता, बाजार में काम करने वाले कमजोर वर्ग की बात सुनें। इनका प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों, कृषक संघों, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों और छोटे उद्यमियों को दबाया न जाए, वरन् सशक्त बनाया जाए।
  1. श्रमिकों और उत्पादकों के सहकारी संघ बनाए जाएं। जब ये छोटे और कमजोर लोग एक बड़े उद्यम में परिवर्तित होंगे, तो वे खरीददारों, आपूर्तिकर्ताओं और सरकार से मोलभाव करके अपनी आय बढ़ा सकेंगे।
  1. बाजार में सुधार करने वालों को बाजार की वास्तविक शक्ति को पहचानना होगा।

सरकार को चाहिए कि वह जिस वर्ग के लिए कानून बनाना चाहती है, उसे धरातल पर जाने-समझे और उनकी बातें सुनें। कमजोरों को अपनी बात सरकार तक पहुँचाने के लिए एक संगठन या संघ की आवश्यकता है। कृषि और श्रम कानूनों में सुधार के माध्यम से सरकार उनके सामूहिक प्रतिनिधित्व के मूलभूत अधिकार को कमजोर करना चाहती है, जो न केवल श्रमिकों-कृषकों बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अरूण मायरा के लिख पर आधारित। 11 दिसम्बर, 2020

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