कृषि को व्यवसाय की नजर से देखें

Afeias
27 Jan 2021
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Date:27-01-21

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वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने नए कृषि कानूनों पर रोक लगाने हेतु सरकार को आदेश दिया है। किसानों ने इस आदेश का स्वागत किया है। परंतु वे धरने से तब तक उठने को तैयार नहीं हैं, जब तक कि इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाता। किसानों की आशंका, निर्मूल नहीं कही जा सकतीं और उन्हें धैर्य के साथ सुनने-समझने की जरूरत है।

सरकार का सोचना है कि बाजार आधारित कीमतों से किसानों की आय को दोगुना किया जा सकता है। अपनी इस सोच में वह गलत भी हो सकती है कि ए पी एम सी या कृषि उपज बाजार समिति के एकाधिकार को समाप्त करके वह किसानों की आय में वृद्धि कर सकेगी। ऐसा लगता है कि सरकार कृषि-संकट की बुनियाद तक पहुंचकर उसका समाधान ढूंढने की अनदेखी कर रही है।

  • कृषि संकट का सबसे पहला कारण यह है कि इसमें जरूरत से ज्यादा कार्यबल संलग्न है।
  • दूसरे, देश की कृषि नीति 1950-60 के दशक की देन है, जब हमारा देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। इसके चलते ‘हरित क्रांति’ की शुरूआत हुई। किसानों को गेहूं और चावल की फसलों के लिए प्रोत्साहित किया गया। अब कृषि में बागवानी लाभ का व्यवसाय है। जबकि सरकार 23 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देती है। इनमें गेहूं और चावल ही मुख्य हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे समर्थन तंत्र के बिना किसान अपनी उपज का पैटर्न बदलने का खतरा नहीं उठा सकते।

समाधान क्या हैं ?

खेती में संकट का समाधान करने के किसी भी प्रयास को पहले यह पहचानना होगा कि भारतीय किसानों की एक बड़ी संख्या लघु और सीमांत किसानों की है। अतः इनकी समस्या के समाधान के रूप में जब भी कोई उपाय किए जाएं , तो छोटे और सीमांत किसानों को ध्यान में रखकर किए जाएं ।

  1. ऐसा करने के लिए भंडारण, सिंचाई और रसद में निवेश बढ़ाने के उपाय करने होगे। यह कुछ तत्वों के जोखिम को कम करेगा।
  1. दूसरा, किसानों को अधिक मूल्यवर्धित फसलों में विविधता लाने और उत्पादक निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।

किसी भी व्यावसायिक उद्यम की तरह, कृषि के बुनियादी ढांचे में जोखिम को कम करने और सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है। जैसे, चैबीस घंटे बिजली और परिवहन कनेक्टिविटी की सुविधा दी जानी चाहिए। सच्चाई यह है कि इस समय कृषि में निवेश की मात्रा बहुत कम है, और इसके परिणाम सामने हैं।

कृषि को एक बड़े सुधार की सख्त जरूरत है। इसके केंद्र बिंदु में छोटे और सीमांत किसानों को रखते हुए साहसिक और नई दृष्टि अपनाई जानी चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अनिल पद्मनाभन के लेख पर आधारित। 5 जनवरी, 2021

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