संघवाद की आत्मा के विरूद्ध संशोधन अधिनियम

Afeias
02 May 2022
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हाल ही में संसद ने दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम, 2022 पारित किया है। देखने में तो ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने तीन भागों में बंटे हुए दिल्ली नगर निगमों को एकीकृत करने का प्रयास किया है। परंतु वास्तव में केंद्र ने राज्य के नगर निगम अधिकारों पर नियंत्रण बनाने के लिए यह कदम उठाया है। केंद्र सरकार के इन परिवर्तनों की शुरूआत से संघवाद का घोर नुकसान होने की आशंका है।

कुछ बिंदु –

  • केंद्र सरकार का कहना है कि संशोधन को संविधान के अनुच्छेद 239एए के अनुसार पारित किया गया है। 239 एए (3)(बी) प्रावधान के अनुसार संसद को दिल्ली राज्य के लिए ‘किसी भी’ मामले पर कानून बनाने का अधिकार है।
  • संशोधित कानून के अनुसार वार्डों की संख्या, प्रत्येक वार्ड की सीमा, सीटों का आरक्षण, निगम की सीटों की संख्या, पार्षदों की संख्या जैसे कई महत्वपूर्ण मामले अब केंद्र के अधीन होंगे।

संघीय ढांचे में सेंध –

  • इस संशोधन कानून में केंद्र सरकार ने जानबूझकर संविधान के भाग-9ए को नजरअंदाज किया है। इस भाग में स्पष्ट कहा गया है कि राज्य के विधानमंडल को नगरपालिकाओं से संबंधित कानून बनाने का अधिकार होगा। केंद्र का यह तर्क कि संविधान के भाग 9ए के ऊपर, अनुच्छेद 239 एए को लागू किया जा सकता है, सही नहीं है। भाग 9ए को संविधान में 74वें संशोधन के माध्मय से शामिल किया गया था।
  • दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में बांटने के लिए विभिन्न स्तर पर विचार-विमर्श किए गए थे। अनेक समितियां बनाई गई थीं। अंततः 2011 में इसे अमल में लाया गया। केंद्र सरकार ने इसे फिर से एक करने से पहले किसी प्रकार का अध्ययन या विचार-विमर्श नहीं किया है।
  • ज्ञातव्य हो कि अनुच्छेद 239 एए अपने अधिनिमयन के बाद से ही विवादों में रहा है। उच्चतम न्यायालय ने 2018 के स्टेट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली बनाम भारत सरकार मामले में इसका दायरा निर्धारित किया था।

न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि – “संविधान ने एक संघीय संतुलन को स्थापित किया है, जिसमें राज्य सरकारों को एक निश्चित डिग्री की स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया है।’’ इस मामले में दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 भी है, जिसमें संशोधन से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य, केंद्र सरकार के नगर निगम संशोधन कानून को चुनौती दे सकता है।

बहरहाल, नगरपालिका जैसे मामलों में केंद्र का हस्तक्षेप, संघवाद और विकेंद्रीकरण के भारतीय मॉडल के खिलाफ एक प्रहार है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित मुकुंद पी. उन्नी के लेख पर आधारित। 21 अप्रैल, 2022

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