संघवाद की रस्सी पर केंद्र और राज्य की रस्साकशी

Afeias
08 Jul 2021
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Date:08-07-21

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हमारे संविधान निर्माताओं ने अखिल भारतीय सेवाओं की कल्पना केंद्र और राज्य, दोनों में एकरूपता और सार्वजनिक सेवा के उच्च मानकों को स्थापित करने के साथ, हमारे विविध और बहुलवादी समाज में प्रशासनिक एकता लाने के लिए की थी। गुणवत्ता सुनिश्चित करने और सुविधा की दृष्टि से आई ए एस अधिकारियों की भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है, और औपचारिक रूप से वे भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। लेकिन उनका सेवाकाल अधिकांशतः राज्यों में बीतता है। इस प्रकार वे संबंधित राज्य सरकारों के नियंत्रण के अधीन भी होते हैं।

हाल ही में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलप्पन बंदोपाध्याय के कुछ कदमों ने सिविल सेवा अधिकारियों के माध्यम से अनेक राजनीतिक और प्रशासनिक सवालों के साथ, हमारे लोकतंत्र के संघीय स्वरूप के स्वास्थ के भविष्य की ओर ध्यान खींचा है। पश्चिम बंगाल में हुए पूरे घटनाक्रम के मद्देनजर दो तत्वों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

पहला यह कि भारत एक ‘राज्यों का संघ’ है। इस संघ में राज्य सरकारें, केंद्र सरकार की अधीनस्थ नहीं हैं। हमारे संविधान में ऐसे उल्लिखित मामले हैं, जहाँ केंद्र के फैसलों को राज्य सरकारों पर प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन यह बैठकों के आयोजन पर लागू नहीं होता, भले ही ये प्रधानमंत्री द्वारा क्यों न बुलाई गई हो। किसी राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक पदाधिकारियों से ऐसी बैठकों में भाग लेने का अनुरोध किया जा सकता है या सलाह दी जा सकती है। इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से शिष्टाचार और विचार की आवश्यकता होती है। पश्चिम बंगाल के मामले में इन विचारों को छोड़ दिया गया, जिसके कारण अनुचित विवाद ने जन्म लिया।

दूसरे, किसी प्राकृतिक आपदा के प्रबंधन में राहत-कार्य सामान्यतः जिला, संभाग या ग्राम स्तर पर लिया जाता है, जो राज्य सरकार के अधीन ही चलाया जाता है। समय के साथ-साथ बढ़ती आपदाओं के मद्देनजर; वित्तीय, तकनीकी व लाजिस्टिक सहायता हेतु राज्य सरकारें, केंद्र सरकार पर भी निर्भर रहने लगी हैं। प्रधानमंत्री ने बैठक बंगाल में आने वाले यास तूफान के संदर्भ में बुलाई थी, जिसे मुख्यमंत्री के साथ-साथ उनके मुख्य सचिव ने बीच में छोड़ दिया और चले गए।

इस प्रकरण में मुख्य सचिव का व्यवहार प्रशासनिक सेवा की आचरण शैली के विपरीत, राजनीतिक और प्रशासनिक अहंकारयुक्त एवं प्रतिहिंसक रहा। इस पर केंद्र ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भेज दिया।

  • गौरतलब है कि आई ए एस अधिकारी केंद्रीय सेवा अधिकारी होते हैं, जो प्रतिनियुक्ति पर संबंधित राज्यों में अपनी सेवाएं देते हैं। राज्य के अधीन काम करते हुए, अगर वे केंद्र सरकार के प्रति अपेक्षाकृत वफादारी दिखाते हैं, तो यह उनके प्रति विश्वास की कमी को जन्म देगा, क्योंकि उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। चूंकि मुख्य सचिव उस समय मुख्यमंत्री के साथ थे (जो उनकी बॉस हैं) , इसलिए उनका आचरण अपने स्तर पर ठीक कहा जाना चाहिए।
  • इस घटना के बाद ही केंद्र सरकार ने मुख्य सचिव को प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली बुलाने का आदेश जारी कर दिया। इसके लिए संबद्ध राज्य सरकार से कोई मंत्रणा नहीं की गई, जबकि ऐसा किया जाना चाहिए था। ऐसा करके केंद्र सरकार ने राज्यों से अपने संबंधों की गरिमा को खत्म किया।

पूरे मामले में मुख्य सचिव बंदोपाध्याय पर लगाई गई धाराएं आदि व्यर्थ हैं। मुख्य मुद्दा केंद्र-राज्य संबंधो के तादात्म्य और गरिमा को बनाए रखने का है , जिसमें मुख्य सचिव को मोहरे के रूप में इस्तेमाल में लाया गया। ऐसी तुच्छ राजनीति भारत जैसे संघीय ढांचे को चोटिल करती ही प्रतीत होती है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित निरंजन पटनायक के लेख पर आधारित। 11 जून, 2021

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