संघवाद का दोतरफा स्वरूप

Afeias
07 Feb 2020
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Date:07-02-20

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भारतीय लोकतंत्र समयतागत संस्कारों का उत्पाद है, जिसने देश के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया था। इस प्रतिबद्धता की संविधान में पुष्टि मिलती है, और इसे बनाए रखने का दायित्व संवैधानिक पदाधिकारियों पर है। संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को राज्यों का एक संघ कहा गया है। यह इसकी सभ्यता के चरित्र को मान्यता देता है।

सदियों से, इस भारत भूमि ने संसार के कुछ हिस्सों से उत्पीड़ित लोगों को आश्रय दिया है। ऐसे ही सताए हुए लोगों को शरण देने के लिए हमारी सभ्यता की प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 एक और कदम है। यह अधिनियम 1950 के नेहरू-लियाकत समझौते के तहत की गई प्रतिबद्धता को भी पूरा करता है।

यह अधिनियम एक तार्किक वर्गीकरण के अंतर्गत तीन इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न को ध्यान में रखती है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि केरल के मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी को ऐसा कानून दोषपूर्ण लग रहा है, जो अनेक असहाय आत्माओं, जिनमें अधिकांश दलित शामिल हैं, की मदद करने को बनाया गया है। पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री होने के बावजूद जोगेंद्र नाथ मंडल जैसे दलितों को भारत वापस आने के लिए मजबूर होना पड़ा था। पाकिस्तान में पीछे रह गए दलितों को धार्मिक उत्पीड़न सहना पड़ा था।

नागरिकता अधिनियम, 2019 के लिए केरल के मुख्यमंत्री का विरोध, केवल वामपंथियों और कांग्र्रेस की हृदयहीन राजनीति को उजागर करता है। पश्चिम बंगाल की माक्र्सवादी सरकार ने भी बांग्लादेश से आए और सुंदरवन में बसे हिंदू शरणार्थियों की निर्मम हत्या के दौरान ऐसी ही हृदयहीनता का परिचय दिया था।

संवैधानिक स्थिति

संविधान के अनुच्छेद 256 के तहत अधिनियम को लागू करना, प्रत्येक राज्य के लिए अनिवार्य है। केरल सरकार ने इस संवैधानिक बाध्यता को स्वीकार करने की बजाय अनुच्छेद 131 के अंतर्गत इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य राज्यों और केंद्र के बीच विवादों का निपटारा करना है। इसे केंद्र और किसी भी राज्य या राज्यों के बीच विवाद के मामले में एक विवादित पक्ष होने और दूसरी ओर एक या अधिक राज्यों के होने; दो या अधिक राज्यों के बीच विवाद होने की स्थिति में भी लागू किया जा सकता है। विवाद का आधार ऐसा कानून या तथ्य हो सकता है, जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्व या सीमा निर्भर करती है।

केरल सरकार के कदम पर कौन से कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है ? संघीय सूची की 17वीं प्रविष्टि ने सातवीं अनुसूची का उल्लेख करते हुए नागरिकता को एक समीकरण बताया है। केवल संसद ही इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार रखती है। संघवाद तो दो तरफा मार्ग है। यहाँ राज्यों को केंद्र या संसद के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।

उम्मीद की जा सकती है कि केरल के साथ-साथ अन्य राज्य सरकारें भी संघवाद के इस स्वरूप का सम्मान करेंगी।

‘द इंडियन एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित वी मुरलीधरन के लेख पर आधारित। 22 जनवरी, 2020

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