‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस’ में सुधार की जरूरत

Afeias
06 Feb 2020
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Date:06-02-20

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आर्थिक सर्वेक्षण 2020 के दूसरे भाग में ‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस’ के बारे में जो बातें कही गईं हैं, वे काफी मायने रखती हैं। यह ठीक है कि भारत ने ‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस’ रैंकिंग में काफी उछाल भरी है, जो 2014 के 142वें स्थान से उछलकर 2019 में 63वें पर पहुँच गई है। लेकिन अभी भी ऐसी बहुत सी कमियाँ हैं, जिन्हें बहुत आसानी के साथ दूर करके इसे और बेहतर बनाया जा सकता है। खासकर विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कुछ देशों के बीच जो प्रतिस्पर्धा चल रही है, उसे देखते हुए यह बहुत आवश्यक है कि सरकार उन कमियों को पहचानकर उन्हें दूर करने का हरसंभव प्रयास करे, जो इसे इन मायने में बेहतर बना सकते हैं।

इसके लिए निर्धारित 10 मुख्य विषयों में से मूलतः 2-3 विषय ऐसे हैं, जिसमें भारत की स्थिति विश्व के कई देशों की तुलना में काफी खराब है और आर्थिक सर्वेक्षण ने सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया भी है। इसमें सबसे पहली कमी है- संविदा को लागू करने की। इस बिन्दु पर भारत 190 देशों की सूची में 163वें स्थान पर है। कांट्रेक्ट इनफोर्समेंट के लिए भारत में औसतन 1445 दिन लगते हैं। इंडोनेशिया में 403, चीन में 496 दिन, ब्राजील में 801 दिन तथा न्यूजीलैण्ड में तो केवल 216 दिन ही लगते हैं।

लगभग यही स्थिति सम्पत्ति के पंजीकरण, करों के भुगतान तथा व्यवसाय शुरू करने के मामले में भी है। आर्थिक सर्वेक्षण ने केस स्टडी के द्वारा इस पर भी विस्तार से चर्चा की है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई चीन या सिंगापुर में रेस्टारेन्ट खोलना चाहता है, तो उसे केवल 4 लाइसेंस लेने होते हैं, जबकि भारत के किसी शहर में रेस्टारेन्ट खोलने के लिए 12 से 16 बड़े लाइसेंस तथा अनेक छोटे लाइसेंस लेने पड़ते हैं। भारत के राष्ट्रीय रेस्टारेन्ट एसोसिएशन के अनुसार बंगलूरू में रेस्टारेन्ट खोलने के लिए 36, दिल्ली के लिए 26 तथा मुम्बई के लिए 21 लाइसेंस की जरूरत पड़ती है।

लाजिस्टिक प्रक्रिया की केस स्टडी के अन्तर्गत आर्थिक सर्वेक्षण ने चैंकाने वाली बात कही है। इसमें बताया गया है कि दिल्ली से अमेरीका के गोदाम तक किसी भी सामान के पहुँचने में 41 दिन लग जाते हैं। इसमें 5 दिन दिल्ली से मुम्बई के बंदरगाह तक पहुँचने में और फिर 14 दिन केवल उस सामान के उतरने, कस्टम मंजूरी, उसकी पैकिंग तथा जहाज पर चढ़ाने में लग जाते हैं।

एक अन्य केस स्टडी में बताया गया है कि उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर से अमेरीका में गलीचा पहुँचाने के लिए 40 दिनों की जरूरत पड़ती है। इनमें से 13 दिन व्यर्थ में भारत में लग जाते हैं। जबकि यदि इटली के मिलान शहर से कोई सामान राजस्थान आ रहा हो, तो उसे इटली में 1 दिन, जबकि भारत में 8 दिन लग जाते हैं।

एक अच्छी बात यह है कि इस स्थिति में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिल रहा है। अब बन्दरगाहों की कार्यक्षमता में थोड़ी कुशलता आई है और यह सन् 2010-11 के 4.67 दिन से घटकर 2018-19 में 2.4 दिन हो गई है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि हमें आयात-निर्यात के क्षेत्र में विश्व प्रतिस्पर्धा में टीके रहना है, तो इस लाजिस्टीक प्रक्रिया को सरल और तीव्र बनाना होगा, क्योंकि इसकी जटिलता और सुस्ती के कारण अन्तरराष्ट्रीय बाजार में हमारी वस्तुओं की कीमत अनावश्यक ही बढ़ जाती है। साथ ही ये जटिलताएं विदेशी निवेशकों को भी भारत में उद्योग लगाने को हतोत्साहित करती हैं।

‘इकोनामिक टाइम्स‘ में प्रकाशित संजीव सान्याल के लेख पर आधारित, 1 फरवरी, 2020

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