सहकारी संघवाद की धज्जियां उड़ाता केन्द्र

Afeias
29 Jul 2020
A+ A-

Date:29-07-20

To Download Click Here.

स्वतंत्रता पश्चात् से ही भारतीय सरकार का स्वरूप ‘संघीय’ रहा है। देश के विकास के लिए भी राज्यों और केन्द्र  के बीच एक सामंजस्यपूर्ण सहभागिता का होना आवश्यक माना गया है। अभी तक जितनी भी पूर्ण बहुमत वाली सरकारें रही हैं , उन्होंने राज्यों को समय-समय पर नियंत्रित करने का प्रयत्न किया है। इसके लिए वे संविधान की धारा 356 का इस्तेमाल करती रही हैं। परन्तु वर्तमान सरकार के पास न केवल धारा 356 बल्कि 14वें वित्त आयोग जैसे कई हथियार हैं। इनके माध्यम से वह राज्य सरकारों की या तो अनदेखी कर देती है या उनके प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है। सरकार के कुछ कदमों से इस बात को आसानी से समझा जा सकता है।

  • 14वें वित्त आयोग में राज्यों को निधि हस्तांतरण का वायदा किया गया। दो वर्ष पश्चात् राज्यों की आय का जरिया बताते हुए वस्तु एवं सेवा कर लगा दिया गया। परन्तु कर हस्तांतरण भी राज्यों के लिए एक छलावा रहा। इसका कारण केन्द्र सरकार की नीतियों के चलते आई आर्थिक सुस्ती थी। वस्तु एवं सेवा कर भी अनुमान से कम इकट्ठा हुआ। इसके चलते राज्यों को निधि हस्तांतरण भी देर से किया गया।
  • सरकार ने अनेक प्रकार के कर लगाए , जिनसे राज्यों की कोई हिस्सेदारी नहीं थी।
  • राज्यों को मिलने वाली वास्तविक राशि और अनुमानित राशि में 6.84 लाख करोड़ रुपये का अंतर रहा। इस बीच राज्यों ने अनेक कार्यक्रमों और योजनाओं पर व्यय किया। इसके बावजूद केन्द्र का राजकोषीय घाटा समेकित राज्य घाटे से 14% अधिक है।
  • स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौर में राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद में 303 लाख करोड़ रुपये या 135% की हानि हुई है। राज्यों ने अपने नागरिकों की आजीविका और देखभाल के लिए बड़ी राशि लगाई है। इन सबमें केन्द्र का योगदान नगण्य रहा है।

इस दौरान सभी केन्द्रीय मंत्रालयों को व्यय में कटौती करने का आदेश दिया गया है। इसका सीधा प्रभाव राज्यों  पर पड़ता है। इस कारण अनेक ग्रामीण विकास कार्यक्रम रुक गए हैं।

राजकोषीय उत्तरदायित्व  एवं बजट प्रबंधन अधिनियम के अनुसार राज्यों के 3% राजकोषीय घाटे को वहन किया जा सकता है , परन्तु महामारी के दौर में इसके अधिक होने की आशंका बनी हुई है। इस अधिनियम में 0.5% की छूट का प्रावधान है। परन्तु स्थिति इससे ऊपर जा रही है। नीति-निर्माताओं का मानना है कि 0.5% के सुरक्षा खंड की सीमा को लचीला बनाया जाना चाहिए। वैसे सरकार ने राज्यों के लिए 3% को सैद्धांतिक रूप से 5% कर दिया है। परन्तु व्यावहारिकता के स्तर पर इसमें ऐसी शर्तें जोड़ दी गई हैं , जिन्हें वास्तव में पूरा नही किया जा सकता।

अगर सरकार को राज्यों के सहयोग से देश को चलाने की मंशा है , तो उसे सहकारी संघवाद की दिशा में अपनी नीतियां तय करनी चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित डेरेक ओ. ब्रायन के लेख पर आधारित।

Subscribe Our Newsletter