इतिहास को देखने का नजरिया

Afeias
30 Jul 2020
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Date:30-07-20

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हर युग में इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया है। ऐतिहासिक तथ्य का वास्ता देते हुए किसी की प्रतिमा को तोड़-फोड़ देना आसान है , परन्तु इतिहास की व्याख्या को पलटकर प्रस्तुत करने की हिम्मत कोई नहीं करता। हाल ही में ब्रिटिश लेखक विलियम डालरिम्ल ने लिखा है , “ब्रिटेन में , साम्राज्य  के अध्ययन को पाठ्यक्रम का हिस्सा अभी भी नहीं बनाया जा सका है। इतिहास में अधिकांश के लिए हम एक आक्रामक नस्लवादी और विस्तारवादी ताकत थे , जो हर महाव्दीप पर हिंसा , अन्याय और युद्ध अपराधों के लिए जिम्मेदार थे।’’ यहीं एक चुनौती खड़ी हो जाती है। लगभग हर एक जाति या समूह या सभ्यता , अपने अतीत के पापों को मिटाने या स्वायं को महिमामंडित करने के लिए इतिहास को जोड़-तोड़कर प्रस्तुत करती है।

इतिहास को हमेशा ही लिबरल आर्टस् का विषय माना जाता रहा है। लिबरल का अर्थ है ‘स्वतंत्र’ । द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में पश्चिमी देशों ने स्वयं को लिबरल देश का तमगा दे दिया। इसके मूल्य व्यक्तिगत अधिकार , प्रजातंत्र, मुक्त बाजार , अभिव्यक्ति की स्वातंत्रता , धार्मिक स्वातंत्रतावाद , लैंगिक समानता , जातीय समानता और धर्मनिरपेक्षता से जुड़े हुए थे। लिबरल आर्टस् का अंग होते हुए भी इतिहास ने इसमें निहित विरोधाभासों को कभी उद्घाटित नहीं होने दिया।

अपने देश में स्वतंत्रता का प्रचार करने वाला अमेरिका , मध्य-पूर्व के उन राजतंत्रों और तानाशाही का समर्थन करता रहा , जो स्त्रियों के अधिकारों के विरोधी थे। इसके अलावा भी ये उदार दृष्टिकोण के नहीं थे। भारत का शोषण करने वाला ब्रिटेन , दुनिया को स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाता रहा। यही हाल फ्रांस का भी रहा। समानता और धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था। कुल-मिलाकर स्वतंत्रता के पक्षधर उदारवादियों ने ही ‘उदारवाद’ या ‘लिब्रिज्म’ को नीचे गिरा दिया।

कट्टरपंथी राह के समाधान के रूप में उदारवाद को लाया गया था। दुर्भाग्यवश , उदारवादियों ने अपने ही कट्टरपंथी उत्पन्न कर लिए। इतिहास को दूसरे दृष्टिकोण से देखने पर पाबंदी लगाना भी एक प्रकार से कट्टरवाद है।

इतिहास के हर सोपान को एक पर्यवेक्षक अपनी नजर से देखता है , और उसका अपना ही एक आख्यान तैयार कर लेता है। इतना ही नहीं , वह पहले से प्रतिपादित दृष्टिकोण को गलत भी सिद्ध कर देता है। इसका समाधान यही है कि सभी को अपना नजरिया रखने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

यह संभव है कि चर्चिल ने इंग्लैण्ड को फासीवाद से बचाया हो , परन्तु  यह भी उतना ही सच है कि चर्चिल ने ही बंगाल की जनता को अकाल में भूखा मरने के लिए छोड़ दिया था। मुगलों के काल के भी ऐसे भिन्न-भिन्न रूप हैं।

यहाँ समस्या चयन की कही जा सकती है। एक ओर तो हम कहते हें ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ , और दूसरी ओर फेयरनेस क्रीम का इस्तेमाल करते हैं। मुसलमान का भीड़ द्वारा मारा जाना हमारी उतनी सहानुभूति नहीं ले पाता , जितना कि एक हिन्दू फकीर का मारा जाना। जब कश्मीर का मामला तो समस्या लगाता है , परन्तु उइगर मुसलमानों का मारा जाना नहीं लगता , तब मुद्दा चयन का होता है।

जार्ज ऑरवेल ने कहा है , “जो अतीत को नियंत्रित करता है , वही भविष्य  को भी नियंत्रित करता है। वह जो वर्तमान को नियंत्रित करता है , वही अतीत को नियंत्रित करता है।’’ राजनीति वर्तमान का नियंत्रण निर्धारित करती है , इतिहास अतीत के नियंत्रण को निर्धारित करता है। भलाई इसी में है कि इतिहास के विभिन्न आख्यानों को पनपने दिया जाए। लेकिन हमने उसे एकतरुा दृष्टिकोण से पढ़े जाने के लिए सौंप दिया है। हेगेल का कथन सत्य  ही लगता है कि हमने इतिहास से सिर्फ यही सीखा है कि अतीत से कुछ सीखा नहीं जा सकता।

“द टाइम्स ऑफ इंडिया” में प्रकाशित अश्विन सांघी के लेख पर आधारित। 6 जुलाई 2020

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