सहकारी समितियों के संबंध में अहम् फैसला

Afeias
06 Aug 2021
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Date:06-08-21

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संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में भाग IX (ए) के ठीक बाद एक नया भाग IX (बी) जोड़ा है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय –

  • भारतीय संविधान के अर्द्ध-संघीय रूप को मजबूती देते हुए संघीय सर्वोच्चता सिद्धांत के संदर्भ में राज्यों की तुलना में केंद्र को प्रमुखता दी।
  • नवगठित केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के कामकाज के दायरे को स्पष्ट किया।
  • 2013 के गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय को यथावत् रखा और फैसला सुनाने वाले तीनों न्यायाधीशों ने संशोधन को अवैध मानते हुए सहकारी समितियों पर कानून बनाने के राज्यों के अधिकार के संबंध में सहमति व्यक्त की।
  • दो न्यायाधीशों ने फैसला दिया कि अमूल, इफ्को और कृभको जैसी बहु-राज्यीय सहकारी समितियों को अभी भी संशोधन अधिनियम के दायरे में रहना होगा। इसकी विधायी शक्तियां भारत संघ की होगी।
  • संविधान का भाग IXबी तभी तक प्रभावी होगा , जब तक वह विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बहु-राज्य सहकारी समितियों से संबंधित है।

न्यायालय का यह निर्णय संघवाद को बढ़ावा देता है, क्योंकि 97वें संशोधन ने सहकारी समितियों पर राज्यों के असीमित अधिकार को सीमित कर दिया था।

अब संशोधन की पुष्टि के लिए केंद्र सरकार, कम-से-कम 15 राज्यों से प्रक्रिया की शुरूआत कर सकती है। इस बीच वह बहु-राज्यीय सहकारी समितियों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।

बड़े सहकारी बैंकों को विनियमित करने का आरबीआई का अधिकार यथावत् है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 जुलाई, 2021

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