संस्थान के ‘अल्पसंख्यक’ चरित्र का निर्धारण कैसे हो ?
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हाल ही में सात जजों की संविधान पीठ ने 57 वर्ष पुराने एक निर्णय को रद्द कर दिया है। उस निर्णय में कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत हुई है।
रद्द करने के कारण –
- विश्वविद्यालय का दर्जा देने के लिए एक कानून बनाए जाने से पहले से मौजूद संस्थान का अल्पसंख्यक चरित्र खत्म नहीं हो जाता।
- कोई कानून; जो शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना या प्रशासन में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों के विरूद्ध भेदभाव करती है, वह संविधान के अनुच्छेद 30(1) के प्रावधानों के खिलाफ है।
- किसी संस्थान के दर्जे की पहचान करने का मुख्य मानदंड यह होगा कि किसने इसकी स्थापना की, और किस उद्देश्य से की। न्यायालय की पूरी जांच के बाद यदि एएमयू अल्पसंख्यक समुदाय की ओर संकेत करता है, तो उसे अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक दर्जा पाने का अधिकार है।
महत्वपूर्ण यह है कि राष्ट्रीय महत्व के किसी संस्थान को अल्पसंख्यक टैग दिया जाना चाहिए या नहीं। विशिष्ट शैक्षिक और सांस्कृतिक लोकाचार की पहचान रखने वाले एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के मूल चरित्र को छीन लिया जाना कितना सही है?
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 नवंबर, 2024
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