मीथेन-उत्सर्जन में कमी की ओर
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अमेरिका-यूरोपीय संघ के नेतृत्व में ग्लासगो में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन में मीथेन गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए उठाया गया कदम उल्लेखनीय है। इस दूरदर्शी कदम में दशक के अंत तक उत्सर्जन को एक तिहाई कम करने का लक्ष्य रखा गया है। मीथेन गैस की वार्मिंग क्षमता, कार्बन डाइ ऑक्साइड से 80-85 गुना अधिक होती है।
भारत की भूमिका –
भारत भी ग्लोबल मीथेन इनिशिएटिव (जीएमआई) के लिए एक भागीदार देश है। हमें मीथेन उत्सर्जन में कमी के माध्यम से नकारात्मक लागत और उपायों की संभावना का पता लगाना चाहिए। इससे धन और संसाधन की बचत होगी।
हमारे धान के खेतों में पानी का उपयोग दो से चार गुना अधिक है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने कथित तौर पर गोजातीय (बोवीन) चारा विकसित किया है, जो मीथेन उत्सर्जन को कम करता है, और दूध उत्पादन में वृद्धि करता है। इसके अलावा, हमें ईंधन के रूप में उपयोग के लिए कृषि और नगरपालिका के कचरे से निकलने वाली मीथेन का दोहन करना चाहिए। 5,000 बायोगैस संयंत्र लगाने की योजना में तेजी लाने की जरूरत है। फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उनसे प्राप्त मीथेन को उपयोगी ऊर्जा में परिवर्तित करने का प्रयत्न करना चाहिए।
ग्लोबल वार्मिंग के एक चौथाई के लिए मीथेन गैस जिम्मेदार है। इसमें भारत की हिस्सेदारी 14% है। इसका प्रमुख कारण गैस पाइप में रिसाव है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान से पता चलता है कि लक्षित उपायों में से 50% से अधिक की नकारात्मक लागत है, जिसका अर्थ है- तेजी से भुगतान। विश्व स्तर पर 32% मानवजनित मीथेन उत्सर्जन पशुधन से है। भारतीय आहार मुख्य रूप से पौधों पर आधारित है। इसलिए हमें गैस-रिसाव, धान की खेती और कचरे के उत्पादक उपयोग पर ध्यान देना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 13 नवम्बर, 2021